Neelkantheshwar Temple: इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शन से दूर होता है शत्रु भय, समुद्र मंथन से जुड़ा है कनेक्शन
मध्य प्रदेश प्राचीन विशेषता के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इस प्रदेश में स्थित उज्जैन शहर आस्था का केंद्र है। उज्जैन में विश्व प्रसिद्धि महाकालेश्वर ...और पढ़ें

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Neelkantheshwar Mahadev Temple: सावन का पावन महीना देवों के देव महादेव को समर्पित होता है। इस महीने में श्रद्धा और भक्ति भाव से महादेव और मां पार्वती की पूजा की जाती है। साथ ही सावन सोमवार और मंगलवार के दिन मंगला गौरी व्रत रखा जाता है। सावन सोमवार व्रत करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही जीवन में खुशियों का आगमन होता है। इस अवसर पर देशभर में स्थित सभी बड़े एवं छोटे मंदिर में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। इस समय भगवान शिव का जलाभिषेक एवं रुद्राभिषेक किया जाता है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि भगवान शिव जलाभिषेक से शीघ्र प्रसन्न होते हैं। उनकी कृपा से मनचाही मुराद पूरी होती है। लेकिन क्या आपको पता है कि देश में एक ऐसा भी शिव मंदिर है, जहां ब्रह्म मुहूर्त में ग्यारह प्रकांड पंडित मंत्रोउच्चारण कर महादेव का अभिषेक करते हैं ? आइए, इस मंदिर के बारे में जानते हैं-
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कहां है नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर ?
भगवान शिव को समर्पित नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर मध्य प्रदेश स्थित बाबा की नगरी उज्जैन के पिपली नाका चौराहा पर स्थित है। इतिहासकारों की मानें तो यह मंदिर सदियों पुराना है। तत्कालीन समय में बाबा की नगरी महाकाल वन नाम से प्रसिद्ध था। इस वन में चौरासी भगवान शिव (मंदिर) हैं। इनमें उज्जैन के पीपलीनाका चौराहा पर स्थित नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर 54 वे हैं। इस मंदिर में देवों के देव महादेव (स्वयंभू शिवलिंग), मां पार्वती, भगवान गणेश, भगवान कार्तिकेय एवं बाबा की सवारी नंदी जी की प्रतिमा स्थापित हैं।
क्या है कथा ?
स्कंद पुराण में नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर की महिमा का वर्णन है। इस पुराण के अनुसार, प्राचीन समय में सत्यविक्रम नामक राजा शत्रुओं से पराजित होने के बाद वन की ओर कूच कर गए। सत्यविक्रम महाकाल वन में विचरण कर रहे थे। उसी समय उनकी भेंट एक तपस्वी से होती है। तपस्वी ने अपने तपोबल से राजन को पहचान लिया। तब राजा सत्यविक्रम ने अपनी आपबीती सुनाई। उस समय तपस्वी ने राजा को भगवान शिव की आराधना करने की सलाह दी। कालांतर में राजा सत्यविक्रम ने भगवान शिव की तपस्या की। कठिन भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने राजा सत्यविक्रम को अजेय होने का वरदान दिया। इसके लिए कहा जाता है कि नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव के दर्शन से शत्रुओं पर विजयश्री प्राप्त होती है।
पूजा-अभिषेक
ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव ने महाकाल वन (तत्कालीन) में ही समुद्र मंथन के समय विषपान किया था। नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर सदियों पुराने पौराणिक महत्व को संजोए रखे हैं। इस मंदिर में स्थित शिवलिंग स्वयंभू हैं। नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर में सोमवार, कृष्ण एवं शुक्ल की त्रयोदशी एवं सावन माह में प्रतिदिन ब्रह्म बेला में भगवान शिव का भक्ति भाव से अभिषेक किया जाता है। इसके साथ ही सामान्य दिनों में भी भगवान शिव की विधि विधान से पूजा की जाती है। धार्मिक मत है कि नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर में बाबा के दर्शन करने से कुंडली में व्याप्त अशुभ ग्रहों का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
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