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Mahalakshmi Temple, Kolhapur: शरद पूर्णिमा के दिन जानें महालक्ष्मी के कोल्हापुर में स्थित इस प्राचीन मंदिर के बारे में

Mahalakshmi Temple Kolhapur आज शरद पूर्णिमा है और आज शुक्रवार भी है। दोनों ही दिन मां लक्ष्मी को समर्पित हैं। इसी के चलते हम आपको आज मां लक्ष्मी के एक प्राचीन मंदिर की जानकारी दे रहे हैं। मां लक्ष्मी का एक प्राचीन मंदिर महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में स्थित है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Fri, 30 Oct 2020 11:00 AM (IST)Updated: Fri, 30 Oct 2020 11:09 AM (IST)
Mahalakshmi Temple, Kolhapur: शरद पूर्णिमा के दिन जानें महालक्ष्मी के कोल्हापुर में स्थित इस प्राचीन मंदिर के बारे में
Mahalakshmi Temple, Kolhapur: शरद पूर्णिमा के दिन जानें महालक्ष्मी के कोल्हापुर में स्थित इस प्राचीन मंदिर के बारे में

Mahalakshmi Temple, Kolhapur: आज शरद पूर्णिमा है और आज शुक्रवार भी है। दोनों ही दिन मां लक्ष्मी को समर्पित हैं। इसी के चलते हम आपको आज मां लक्ष्मी के एक प्राचीन मंदिर की जानकारी दे रहे हैं। मां लक्ष्मी का एक प्राचीन मंदिर महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में स्थित है। इसका नाम महालक्ष्मी मंदिर है। मान्यता के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण चालुक्य शासक कर्णदेव ने 7वीं शताब्दी में करवाया था। इसके बाद इस मंदिर का पुनर्निर्माण शिलहार यादव ने 9वीं शताब्दी में करवाया था। बता दें कि महालक्ष्मी मंदिर के मुख्य गर्भगृह में मां लक्ष्मी की 40 किलो की प्रतिमा स्थापित है। इस मूर्ति की लंबाई 4 फीट है। यह करीब 7,000 वर्ष पुरानी है।

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महालक्ष्मी मंदिर की विशेषता:

ऐसी मान्यता है कि देवी सती के इस स्थान पर तीन नेत्र गिरे थे। यहां भगवती महालक्ष्मी का निवास माना जाता है। इस मंदिर की एक खासियत यह भी है कि वर्ष में एक बार मंदिर में मौजूद देवी की प्रतिमा पर सूर्य की किरणें सीधे पड़ती हैं। कहा जाता है कि महालक्ष्मी अपने पति तिरुपति यानी विष्णु जी से रूठकर कोल्हापुर आईं थीं। यही कारण है कि तिरुपति देवस्थान से आया शाल उन्हें दीपावली के दिन पहनाया जाता है।

यह भी कहा जाता है कि किसी भी व्यक्ति की तिरुपति यात्रा तब तक पूरी नहीं होती है जब तक व्यक्ति यहां आकर महालक्ष्मी की पूजा-अर्चना ना कर ले। यहां पर महालक्ष्मी को अंबाबाई नाम से भी जाना जाता है। दीपावली की रात मां की महाआरती की जाती है। मान्यता है कि यहां पर आने वाले हर भक्त की मुराद पूरी होती है।

महालक्ष्मी मंदिर की प्रचलित कथा:

केशी नाम का एक राक्षस था जिसके बेटे का नाम कोल्हासुर था। कोल्हासुर ने देवताओं को बहुत परेशान कर रखा था। इसके अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवगणों ने देवी से प्रार्थना की थी। तब महालक्ष्मी ने दुर्गा का रूप धारण किया और ब्रह्मशस्त्र से कोल्हासुर का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन कोल्हासुर ने मरने से पहले मां से एक वरदान मांगा। उसने कहा कि इस इलाके को करवीर और कोल्हासुर के नाम से जाना जाए। यही कारण है कि मां को यहां पर करवीर महालक्ष्मी के नाम से जाना जाता है। फिर बाद में इसका नाम कोल्हासुर से कोल्हापुर किया गया। इस मंदिर में

जानें मंदिर की बनावट के बारे में:

इस मंदिर में दो मुख्य हॉल हैं जिसमें पहला दर्शन मंडप और दूसरा कूर्म मंडप है। दर्शन मंडप हॉल की बात करें तो यहां श्रद्धालु जन माता के दिव्य स्वरूप का दर्शन करते हैं। वहीं, कूर्ममंडप में भक्तों पर पवित्र शंख द्वारा जल छिड़का जाता है। यहां मौजूद माता की प्रतिमा के चार हाथ हैं और उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल का पुष्प है। मां चांदी के भव्य सिंहासन पर विराजमान हैं। इनका छत्र शेषनाग का फन है। मां को धन-धान्य और सुख-संपत्ति की अधिष्ठात्री माना जाता है।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। '  


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