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    किवदंती है कि यहां पर हृदय से जो मांगता है, उसकी मुरादें पूरी होती है

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Mon, 19 Oct 2015 12:14 PM (IST)

    बलोदा बाजार क्षेत्र के व्यापारिक केन्द्र सरसीवां में 15वीं शताब्दी की आदि शक्ति मां महामाया दुर्गा की भव्य एवं विशाल प्रस्तर प्रतिमा स्थापित है। मां महामाया दुर्गा इस अंचल की सर्व शक्तिमान व एक मात्र उपास्य देवी है। किवदंती है कि यहां पर हृदय से जो मांगता है, उसकी मुरादें

    सरसीवां।बलोदा बाजार क्षेत्र के व्यापारिक केन्द्र सरसीवां में 15वीं शताब्दी की आदि शक्ति मां महामाया दुर्गा की भव्य एवं विशाल प्रस्तर प्रतिमा स्थापित है। मां महामाया दुर्गा इस अंचल की सर्व शक्तिमान व एक मात्र उपास्य देवी है। किवदंती है कि यहां पर हृदय से जो मांगता है, उसकी मुरादें पूरी होती है।

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    यहां अन्य देवी मंदिरों की तरह सैकड़ों ज्योति कलश नहीं जलाए जाते बल्कि श्रद्धालु भक्तों द्वारा दिए गए सामानों को एक साथ मिलाकर एक ही ज्योति कलश जलाया जाता है। माता का दर्शन करने लोग सुबह 4 बजे से ही जमीन नापते आते हैं।

    मां महामाया दुर्गा के सरसीवां में आगमन एवं स्थापना के संबंध में जनश्रुति के आधार पर कथा इस प्रकार बताया जाता है कि संबलपुर (वर्तमान में ओडिशा) के महाराजा चौहान शिकार खेलने के लिए पूरे लाव-लश्वर के साथ प्रतिवर्ष क्षेत्र में फैले सघन, विशाल एवं बियाबान जंगल की ओर आते थे।

    एक बार महाराजा चौहान शिकार खेलने के लिए आए थे और एक शेर का पीछा करते हुए भटगांव एवं बिलाईगढ़ के मध्य सघन एवं बियाबान जंगल में जा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि शेर तो अदृश्य हो गया था लेकिन यहां से कुछ दूर सुंदर स्त्रियां झूला झूल रही थीं।

    महाराजा चौहान यह देख कर आश्चर्यचकित रह गए कि ये महिलाएं साधारण मानव न होकर देवियां हैं। महाराजा चौहान ने उन देवियों से प्रार्थना की, कि वे उनके साथ राजमहल में चलकर उन्हें नित्य सेवा करने का अवसर प्रदान करें। तब वहां आकाशवाणी हुई 'हे राजन्‌! हम कोई सधारण स्त्रियां न होकर साक्षात श्री महामाया दुर्गा हैं जो अपनी इच्छा से विभिन्ना वेशों में वन संचरण करती रहती हैं। अतः हम लोग तुम्हारे साथ नहीं जाएंगी।

    महाराजा चौहान ने बहुतेरी अनुनय-विनय की, तब मां महामाया दुर्गा इस शर्त के साथ जाने के लिए तैयार हो हुई कि वे अपने मनपंसद जगहों पर रुक जाएंगी। तब उन्हें आगे चलने के लिए बाध्य न किया जाए। महाराजा का रथ जब वर्तमान सरसीवां ग्राम में पहुंचा उस समय यहां कोई गांव नहीं था। यह स्थान उस समय टीले के रूप में था। तब यहीं वर्तमान सरसीवां ग्राम में अष्टभुजी श्री मां महामाया दुर्गा रुक गईं और महाराजा चौहान को अपनी पूजापाठ तथा मंदिर बनाने के लिए कहा। मां महामाया दुर्गा की आज्ञा शिरोधार्य कर महाराजा चौहान ने मंदिर का निर्माण कराया तथा इसकी पूजा पाठ के लिए ब्राम्हणों की खोज की।

    उस समय मां के वर्तमान पुजारी पं. ईश्वरी प्रसाद दुबे के पूर्वज महानदी के किनारे स्थित जैतपुर नामक गांव में रहते थे। महाराजा चौहान ने उन्हें बुलाकर मां महामाया दुर्गा की पूजापाठ करने का आग्रह किया। तब से लेकर आज तक उनके पीढ़ी पूजा पाठ करते आ रहे हैं।