कुम्भलगढ़ परशुराम मंदिर: यहां चढ़ाया गया जल शिवलिंग में समा जाता
अरावली की सुरम्य पहाडिय़ो में स्थित गुफा (वर्तमान में परशुराम महादेव मंदिर) में विष्णु के छठे अवतार परशुराम ने भगवान शिव की कई वर्षो तक कठोर तपस्या की ...और पढ़ें

कुंभलगढ़। अरावली की सुरम्य पहाडिय़ो में स्थित गुफा (वर्तमान में परशुराम महादेव मंदिर) में विष्णु के छठे अवतार परशुराम ने भगवान शिव की कई वर्षो तक कठोर तपस्या की थी। तपस्या के बल पर उन्होंने भगवान शिव से धनुष, अक्षय तूणीर एवं दिव्य परसा प्राप्त किया। वह राम से परशुराम बन गए।
दुर्गम पहाड़ी, घुमावदार रास्ते, प्राकृतिक शिवलिंग, कल-कल करते झरने एवं प्राकृतिक सौंदर्य से ओत-प्रोत कुम्भलगढ़ के पास स्थित प्राचीन परशुराम महादेव मंदिर को भक्तो ने मेवाड़ के अमरनाथ नाम भी दे दिया।
जन्म की मान्यता-भगवान परशुराम महादेव के जन्मस्थल को लेकर अलग-अलग मत हैं, लेकिन पुजारी भगवतपुरी गोस्वामी की पुस्तक के मुताबिक त्रेतायुग में भगवान राम से पहले ब्रह्मवंश भृगु कुल में महर्षि जमदग्नि ऋषि एवं माता रेणुका के यहां काशी वाराणसी में वैशाख शुक्ला अक्षय तृतीया को मध्याह्न काल में भगवान परशुराम ने अवतार लिया था।
यहां दी थी कर्ण को शिक्षा-
महाभारत कालीन धार्मिक व एतिहासिक महत्व का स्थान व बनास नदी का उद्गम स्थल वीरो का मठ भगवान परशुराम महादेव का तपस्यास्थल माना जाता है। कर्ण को यहीं पर परशुराम ने शिक्षा दी थी, लेकिन यहां सूतक होने से परशुराम महादेव वर्तमान तीर्थस्थल की गुफा मे चले गए, जहां आज भी शिवलिंग विराजमान है।
गुफा मन्दिर-
गुफा मंदिर प्राकृतिक छटा से ओतप्रोत है। पुजारी कैलाशपुरी बताते हैं, हैरतअंगेज है कि पूरी एक ही चट्टान में गुफा बनी है। ऊपर का स्वरूप गाय के थन जैसा है। प्राकृतिक स्वयं-भू लिंग के ठीक ऊपर गोमुख बना है, जिससे शिवलिंग पर अविरल प्राकृतिक जलाभिषेक हो रहा है। गुफा में कालाजी-गोराजी के अलावा गंगा-जमुना भी प्रतीक रूप में मौजूद है। मान्यता है कि मुख्य शिवलिंग के नीचे बनी धूणी पर कभी भगवान परशुराम ने शिव की कठोर तपस्या की थी। प्रसन्न होकर परशुराम को ह्वदयस्थल में सपरिवार दर्शन दिए। यहां आज भी परशुराम का प्राकृतिक स्वयंभू शिवलिंग अर्द्धनारीश्वर के रूप में है, जहां शिव परिवार विराजित है।
वही खोल सकता है कपाट-
मान्यता है कि भगवान बद्रीनाथ के कपाट वही व्यक्ति खोल सकता है, जिसने परशुराम महादेव के दर्शन कर रखे हों। एक और मान्यता है कि माता रेणुका स्नान के लिए नदी पर गई। राजा चित्ररथ भी स्नान करने आए थे। रेणुका की आसक्ति, ऋषि जमदग्नि के आदेश पर परशुराम द्वारा मां के सिर काटने व तीन मांगने का वृतांत भी मातृकुण्डिया से जुड़ा है। भगवान परशुराम से मातृहत्या का पाप छुड़ाने यहां बने सौभाग्य कुंड में स्नान किया था। यहां आज भी पवित्र स्नान के लिए भीड़ लगती है।
कुम्भलगढ़ में प्रतिवर्ष श्रावणी छठ को फूटा मन्दिर पर विशाल मेला एवं भजन संध्या होती है। एक माह तक लाखो भक्त भगवान के दर्शन करते हैं। अक्षय तृतीया को गुफावाली पहाड़ी की परिक्रमा लगाकर भील-भीलनी की चट्टान एवं गुफा मन्दिर के ठीक ऊपर ध्वजा चढ़ाई जाती है।
परशुराम मंदिर एक प्राचीन गुफा के अंदर स्थित है एवं प्रसिद्ध संत परशुराम को समर्पित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार संत परशराम ने भगवान् राम का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यहां तपस्या की थी। पर्यटकों को गुफा तक पहुंचने के लिए 500 सीढिय़ां उतरनी पड़ती हैं। यात्री इस स्थान तक बसों द्वारा भी पहुंच सकते हैं। पर्यटक आकर्षणों जैसे कि उदयपुर, अजमेर, जोधपुर एवं पुष्कर से कुम्भलगढ़ जाने के लिए सरकारी एवं निजी बसें उपलब्ध हैं।
पाली से लगभग 110 कि.मी. दूर मेवाड़ के सुप्रसिद्ध स्थल कुंभलगढ़ से मात्र 10 कि.मी. दूर स्थित परशुराम महादेव मन्दिर समुद्र तल से 3600 फुट उंचाई पर बना हुवा हैं। यह मंदिर रामायण कालीन विष्णु अवतार भगवान परशुराम द्वारा बनाया गया बताया जाता हैं। दंभ और पांखड से धरती को त्रस्त करने वाले क्षत्रियों का संहार करने के लिये भगवान परशुराम ने इसी पहाड़ी पर स्थित स्वयंभू शिवलिंग के समक्ष बैठकर तपस्या करके शक्ति प्राप्त की थी, भगवान शिव का यह मन्दिर दूर दूर तक प्रसिद्ध हैं। परशुराम ने अपने परशे से पहाड़ी को काटकर एक गुफा का निर्माण किया जिसमें स्वयंभू शिव विराजमान है, जो अब परशुराम महादेव के नाम से जाने जाते हैं। इस मंदिर तक जाने के लिये सादड़ी होकर जाना सुगम रहता हैं, जो फालना रेलवे स्टेशन से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित है। सादड़ी से कुछ दूर चलने पर परशुराम महादेव की बगीची आती है,कहा जाता है कि यहां पर भी भगवान परशुराम नें शिवजी की आराधना की थी। परशे द्वारा काटकर बनायी गयी गुफा में स्थित मन्दिर में अनेकों मूर्तियां, शंकर, पार्वती और स्वामी कार्तिकेय की बनी हुई हैं। इसी गुफा में एक शिला पर एक राक्षस की आकृति बनी हुई हैं, जिसे परशुराम ने अपने फरशे से मारा था। परशुराम महादेव से लगभग 100 कि.मी. दूर महर्षि जमदग्नि की तपो भूमि है, जहां परशुराम का अवतार हुवा। कुछ ही मील दूर मातृकुन्डिया नामक स्थान है जहां परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा से माता रेणुका का वध किया था, प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ला षष्ठी एवं सप्तमी को यहां विशाल मेला लगता हैं। पाली नगर से लगभग 35 कि.मी. दूर दक्षिण पश्चिम दिशा मे शाली की पहाडिय़ों में स्थित गुफा मन्दिर में जमदग्नि ऋषि ने तपस्या की थी। जल प्रपात के समीप गुफा मे विराजे स्वंयभू शिवलिंग की प्रथम प्राण प्रतिष्ठा परशुराम के पिता जमदग्नि ने ही की थी, शिवलिंग पर एक छिद्र बना हुआ हैं जिसके बारे मे मान्यता है कि इसमें दूध का अभिषेक करने से दूध छिद्र में नहीं जाता जबकि पानी के सैकड़ों घड़े डालने पर भी वह नहीं भरता और पानी शिवलिंग में समा जाता हैं।

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