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    Konark Surya Mandir: हैरत में डाल देती है सूर्य मंदिर की वास्तुकला, श्रीकृष्ण जी के पुत्र से जुड़ा है इतिहास

    By Suman SainiEdited By: Suman Saini
    Updated: Tue, 13 Jun 2023 01:21 PM (IST)

    आपने 10 रुपये के नोट के पीछे कोणार्क सूर्य मंदिर का चित्र जरूर देखा होगा। यह भारत के मुख्य सूर्य मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को इस तरह से बनाया गया था कि सूरज की पहली किरणें पूजा करने की जगह और भगवान की मूर्ति पर ही पड़ें।

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    Konark Surya Mandir कोणार्क सूर्य मंदिर का पौराणिक इतिहास।

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Konark Surya Mandir: ओडिशा के पुरी जिले में स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से तो हैरान करता ही है। साथ ही इसका अध्यात्म की दृष्टि से भी विशेष महत्व है। यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित है। हिंदू धर्म में सूर्य देव को सभी रोगों का नाशक माना गया है। अपनी कई खासियत के चलते इस मंदिर ने यूनेस्को (UNESCO) की विश्व धरोहर स्थल में अपनी जगह बनाई है।

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    क्या है मंदिर की पौराणिक कथा

    इस मंदिर के इतिहास की बात करें तो पुराणों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने एक बार नारद मुनि के साथ अभद्र व्यवहार किया था। जिसकी वजह से नारद जी ने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दे दिया। श्राप के कारण साम्ब को कुष्ठ रोग (कोढ़ रोग) हो गया। साम्ब ने चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में, बारह वर्षों तक तपस्या की। जिसके चलते सूर्य देव प्रसन्न हो गए। सूर्यदेव, जो सभी रोगों के नाशक थे, ने इसके रोग का भी निवारण कर दिया। तभी साम्ब ने सूर्य भगवान का एक मंदिर बनवाने का निर्णय किया। अपने रोग-नाश के उपरांत, चंद्रभागा नदी में स्नान करते हुए, उसे सूर्यदेव की एक मूर्ति मिली। इस मूर्ति को लेकर माना जाता है कि यह मूर्ति सूर्यदेव के शरीर के ही एक भाग से, स्वयं देव शिल्पी श्री विश्वकर्मा ने बनायी थी। लेकिन अब यह मूर्ति पुरी के जगन्नाथ मंदिर में रख दी गई है।

    रथ का महत्व

    यह मंदिर समय की गति को दर्शाता है। इस मंदिर को सूर्य देवता के रथ के आकार का बनाया गया है। इस रथ में 12 जोड़ी पहिए लगे हुए हैं। साथ ही इस रथ को 7 घोड़े खींचते हुए नजर आते हैं। यह 7 घोड़े 7 दिन के प्रतीक हैं। यह भी माना जाता है कि 12 पहिए साल के 12 महीनों के प्रतीक हैं। कहीं-कहीं इन 12 जोड़ी पहियों को दिन के 24 घंटों के रूप में भी देखा जाता है। इनमें से चार पहियों को अब भी समय बताने के लिए धूपघड़ी की तरह इस्तेमाल किया जाता है। मंदिर में 8 ताड़ियां भी हैं जो दिन के 8 प्रहर को दर्शाते हैं।

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'