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Dakshineswar Kali Temple: तो इस तरह हुआ था दक्षिणेश्वर काली मंदिर का निर्माण, पढ़ें यह कथा

Dakshineswar Kali Temple दक्षिणेश्वर काली मंदिर पश्चिम बंगाल के हुगली नदी तट पर बेलूर मठ के दूसरी तरफ स्थित है। यह बंगालियों के अध्यात्म का प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर के पीछे बहुत बड़ा इतिहास है। काफी कम लोग ही यह जानते हैं कि दक्षिणेश्वर मंदिर की स्थापना कैसे हुई...

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Sun, 18 Oct 2020 08:00 AM (IST)Updated: Sun, 18 Oct 2020 12:28 PM (IST)
Dakshineswar Kali Temple: तो इस तरह हुआ था दक्षिणेश्वर काली मंदिर का निर्माण, पढ़ें यह कथा
Dakshineswar Kali Temple: तो इस तरह हुआ था दक्षिणेश्वर काली मंदिर का निर्माण, पढ़ें यह कथा

Dakshineswar Kali Temple: दक्षिणेश्वर काली मंदिर पश्चिम बंगाल के हुगली नदी तट पर बेलूर मठ के दूसरी तरफ स्थित है। यह बंगालियों के अध्यात्म का प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर के पीछे बहुत बड़ा इतिहास है। काफी कम लोग ही यह जानते हैं कि दक्षिणेश्वर काली मंदिर की स्थापना कैसे हुई थी। अगर आपको भी इस मंदिर का इतिहास नहीं पता है तो यहां हम आपको इस मंदिर के बनने के पीछे का राज बता रहे हैं।

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कथाओं के अनुसार, यब बात तब की है जब सन् 1847 में जब देश में अंग्रेजों का शासन था। पश्चिम बंगाल में रानी रासमनी नाम की एक महिला थी। वह बहुत अमीर थी और विधवा भी। उनके पास सबकुछ था लेकिन पति सुख नहीं था। जब रानी रासमनी की उम्र का चौथा पड़ाव चल रहा था तब उसके मन में ख्याल आया कि वो सभी तीर्थों का दर्शन करे। रानी को देवी मां में बहुत श्रद्धा थी। उसने सोचा की वो तीर्थ की शुरुआत वाराणसी से करेगी। वह वाराणसी में रहकर ध्यान करना चाहती थी। उस समय वाराणसी और कोलकाता के बीच कोई भी रेड लाइन नहीं थी। ऐसे में इन दो शहरों के बीच नाव से ही आया-जाया जाता था। और वहीं रहकर देवी का कुछ दिनों तक ध्यान करेंगी।

उन दिनों वाराणसी और कोलकाता के बीच कोई रेल लाइन की सुविधा नहीं थी। कोलकाता से वाराणसी जाने के लिए लोग नाव से जाया करते थे। दोनों शहरों के बीच गंगा नदी का रास्ता है और इसी से एक शहर से दूसरे शहर जाते थे। रानी रासमनी ने भी यही रास्ता अपनाया। वह अपना काफिला लेकर वाराणसी जाने के लिए तैयार हो गईं। लेकिन जिस दिन उन्हें जाना था उससे ठीक एक दिन पहले उनके साथ अजीब घटना हुई।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, उस रात वो देवी का ध्यान कर सो गईं। उन्हें सपना आया और उनके सपने में काली मां प्रकट हुईं। उन्होंने कहा कि उसे वाराणसी जाने की जरूरत नहीं है। वह गंगा के किनारे ही उनकी प्रतिमा को स्थापित कर दें। फिर एक सुंदर मंदिर का निर्माण कराए। उस मंदिर में स्थापित प्रतिमा वो खुद प्रकट होंगी और भक्तों की पूजा स्वीकार करेंगी। यह सपना देखने के बाद रानी की आंख खुल गई।

रानी रासमनी ने वाराणसी जाना रद्द कर दिया और काली मां के लिए गंगा किनारे स्थान खोजना शुरू किया। जब रानी मंदिर के लिए जगह खोज रही थीं तब उन्होंने गंगा के किनारे मां काली के मंदिर के लिए जगह की खोजना शुरू कर दिया गया। कहते हैं कि जब रानी इस घाट पर गंगा के किनारे जगह की तलाश करते करते आईं तो उनके अंदर से एक आवाज आई कि हां इसी जगह पर मंदिर का निर्माण होना चाहिए।

फिर सुबह होते ही रानी का वाराणसी जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया और गंगा के किनारे मां काली के मंदिर के लिए जगह की तलाश शुरू कर दी गई। मायता है कि जब रानी इस घाट पर गंगा के किनारे जगह की तलाश कर रही थीं तब उन्हें एक आवाज आई जो उनके अंदर से ही आ रही थी कि हां इसी जगह पर मंदिर का निर्माण होना चाहिए। इसके बाद रानी ने वो जगह खरीद ली। इसके बाद मंदिर बनने का काम तेज हो गया। मंदिर का काम 1855 में पूरा हुआ यानी कुल 8 वर्षों में।

दक्षिणेश्वर काली मंदर से विवेकानंद जी के गुरु रामकृष्ण परमहंस का भी बहुत गहरा संबंध है। माना जाता है कि रामकृष्ण परमहंस ने दक्षिणेश्वर काली के दर्शन किए थे। इस मंदिर से लगा हुआ परमहंस देव का एक कमरा है। इसमें उनका पलंग और कुछ स्मृतिचिन्ह हैं।  

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। '  


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