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Gushmeshwar Jyotirling : घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग, संतानप्राप्ति की मनोकामना होती है पूर्ण

Gushmeshwar Jyotirling घुश्मा पर भगवान शिव की कृपा हुई और उसे पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। ब्राह्मण के घर में बच्चे आने की खुशी और उल्लास साफ-साफ दिखाई पड़ता था। लेकिन घुष्मा की बड़ी बहन सुदेहा को सबकी खुशी रास नहीं आ रही थी।

By Ritesh SirajEdited By: Published: Mon, 12 Jul 2021 05:29 PM (IST)Updated: Mon, 12 Jul 2021 05:29 PM (IST)
Gushmeshwar Jyotirling : घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग, संतानप्राप्ति की मनोकामना होती है पूर्ण
Gushmeshwar Jyotirling : घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग, संतानप्राप्ति की मनोकामना होती है पूर्ण

Gushmeshwar Jyotirling : हिंदू धर्म में ज्योतिर्लिंग का विशेष स्थान है। शिवलिंग को भगवान शिव के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। पुराणों के अनुसार, शिवलिंग में भगवान शिव का वास माना जाता है। श्रावण माह में भगवान शिव की विशेष रूप से पूजा की जाती है। देश भर में शिव के कई ज्योतिर्लिंग हैं, लेकिन 12 ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्व दिया गया है। इन्हीं ज्योतिर्लिंग में एक है घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग, जो महाराष्ट्र में दौलताबाद से लगभग 18 किलोमीटर दूर बेरूलठ गांव के पास स्थित है। इस स्थान को लोग शिवालय भी कहते हैं। इस मंदिर का निर्माण अहिल्याबाई होल्कर द्वारा करवाया गया था। आज हम इस मंदिर के कथा के बारे में विस्तार से जानेंगे।

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घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा

दक्षिण देश में देवागिरि पर्वत के पास एक ब्राह्मण सुधर्मा अपनी पत्नी सुदेहा के साथ निवास करते थे। पति और पत्नी के जीवन में बहुत कष्ट थे, इसके अलावा उन्हें संतान सुख की प्राप्ति नहीं हुई थी। इस संतान सुख के लिए सुदेहा ने अपनी बहन घुश्मा की शादी अपने पति से करा दी। घुश्मा शिव भक्त थी। वह प्रतिदिन 100 पार्थिव शिव बनाकर सच्ची निष्ठा से भगवान शिव की पूजा करती थी।

घुष्मा पर भगवान शिव की कृपा हुई और उसे पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। ब्राह्मण के घर में बच्चा आने की खुशी और उल्लास साफ-साफ दिखाई पड़ता था। लेकिन घुश्मा की बड़ी बहन सुदेहा को सबकी खुशी रास नहीं आ रही थी। घुश्मा का पुत्र उसे खटकने लगा। नफरत इतनी बढ़ गई कि एक दिन सुदेहा ने उसके पुत्र को मारकर उसे तालाब में फेंक दिया।

ब्राह्मण परिवार में दुखों का पहाड़ टूट पड़ा और पूरे घर में मातम का माहौल था, लेकिन घुश्मा को अपनी भक्ति पर पूरा विश्वास था। वह बिना मातम किये भगवान शंकर की पूजा करती रही थी। वह पहले की तरह ही तालाब में 100 शिवलिंग की पूजा करती थी। एक दिन तालाब में से उसका पुत्र जीवित आता दिखाई दिया। शिव की कृपा से घुश्मा को उसका पुत्र जीवित मिला। ठीक इसी समय भगवान शिव स्वयं वहां प्रकट हुए और बड़ी बहन सुदेहा को दंड देना चाहा, लेकिन घुश्मा ने अपने स्वभाव के अनुसार भगवान शिव से उसे माफ करने की विनती करती है। 

भगवान शिव ने अपने अनन्य भक्त से खुश होकर वरदान मांगने को कहा। तब घुश्मा ने कहा कि जगत कल्याण के लिए आप यहां पर बस जाएं। भगवान शिव ने कहा कि मैं तैयार हूँ और इसे मेरे परम भक्त के नाम से घुश्मेश्वर से जाना जाऊंगा। तब से इस ज्योतिर्लिंग को घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से पूजा जाता है।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


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