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एक ही नाम के चार गणेश मंदिर जाने इन्‍हीं में से एक की कहानी

पूरे देश भोपाल, उज्जैन, गुजरात और रणथंभौर में कुल चार चिंतामन मंदिर हैं। आइये जाने भोपाल में स्‍थित सिहोर के चिंतामन गणेश मंदिर के बारे में।

By Molly SethEdited By: Published: Wed, 25 Apr 2018 09:47 AM (IST)Updated: Wed, 25 Apr 2018 09:47 AM (IST)
एक ही नाम के चार गणेश मंदिर जाने इन्‍हीं में से एक की कहानी
एक ही नाम के चार गणेश मंदिर जाने इन्‍हीं में से एक की कहानी

 अदभुद कहानी 

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भोपाल से 2 किलोमीटर की दूरी पर सीहोर में स्थित चिंतामन गणेश मंदिर की दंतकथा बेहद रोचक है। माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना विक्रमादित्य ने की थी लेकिन इसकी मूर्ति उन्हें स्वयं गणपति ने दी थी। प्रचलित कहानी के अनुसार एक बार राजा विक्रमादित्य के स्वप्न में गणपति आए और पार्वती नदी के तट पर पुष्प रूप में अपनी मूर्ति होने की बात बताते हुए उसे लाकर स्थापित करने का आदेश दिया। राजा विक्रमादित्य ने वैसा ही किया। पार्वती नदी के तट पर उन्हें वह पुष्प भी मिल गया और उसे रथ पर अपने साथ लेकर वह राज्य की ओर लौट पड़े। रास्ते में रात हो गई और अचानक वह पुष्प गणपति की मूर्ति में परिवर्तित होकर वहीं जमीन में धंस गया। राजा के साथ आए अंगरक्षकों ने जंजीर से रथ को बांधकर मूर्ति को जमीन से निकालने की बहुत कोशिश की पर मूर्ति निकली नहीं। तब विक्रमादित्य ने गणमति की मूर्ति वहीं स्थापित कर इस मंदिर का निर्माण कराया।

भगवान को मिली नई आंख

मंदिर में स्थापित गणपति की मूर्ति की आंख चांदी की बनी है। वास्तविक मूर्ति की आंख हीरे की थी। स्थानीय लोगों के अनुसार आज मंदिर और मूर्ति की सुरक्षा के लिए रात के समय मंदिर परिसर में ताला लगाया जाता है लेकिन पहले ऐसा नहीं था। 150 साल पहले इस खुले परिसर में मूर्ति की हीरे की आंख चोरी हो गई। कई दिनों तक आंख की जगह से दूध की धार टपकती रही और आखिरकार मुख्य पुजारी के स्वप्न में गणपति जी ने आकर इस जगह चांदी की आंख लगाने का आदेश दिया। पुजारी ने इसे चिंतामन मंदिर में स्थापित गणपति के नए जन्म के रूप में माना और चांदी की आंख लगाने के अवसर पर भंडारा किया। तब से हर साल उस दिन की याद में यहां मेला लगता है।

उल्‍टे स्‍वास्तिक की कथा

यहां हर माह गणेश चतुर्थी पर भंडारा करने की प्रथा है। स्थानीय लोगों के अनुसार 60 साल पहले यहां प्लेग की बीमारी फैली थी। तब इसी मंदिर में लोगों ने इसके ठीक होने की प्रार्थना की और प्लेग के खत्म हो जाने पर गणेश चतुर्थी मनाए जाने की मन्नत रखी। प्लेग ठीक हो गया और तब से हर माह गणेश चतुर्थी पर भंडारे की यह प्रथा चली आ रही है। यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर के पिछले हिस्से में उल्टा स्वास्तिक बनाकर मन्नत रखते हैं और पूरी हो जाने पर दुबारा आकर उसे सीधी बनाते हैं।


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