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Khatu Shyam Lakhi Mela 2024: खाटू श्याम लक्खी मेला के लिए भव्य सजा मंदिर, जानें क्या है इस बार खास

राजस्थान के सीकर जिले में स्थित बाबा खाटू श्याम मंदिर में अधिक संख्या में भक्त बाबा श्याम के दर्शन करने के लिए आते हैं और अपनी मनोकामनाओं को पूरी करने के लिए प्रार्थना करते हैं। फाल्गुन माह में खाटू श्याम मंदिर में लक्खी मेला का आयोजन किया जाता है। इस बार लक्खी मेला की शुरुआत 12 मार्च से हुई है और इसका समापन 21 मार्च 2024 को होगा।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Published: Wed, 13 Mar 2024 05:06 PM (IST)Updated: Wed, 13 Mar 2024 05:06 PM (IST)
Khatu Shyam Lakhi Mela 2024: खाटू श्याम लक्खी मेला के लिए भव्य सजा मंदिर, जानें क्या है इस बार खास
Khatu Shyam Lakhi Mela 2024: खाटू श्याम लक्खी मेला के लिए भव्य सजा मंदिर, जानें क्या है इस बार खास

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Khatu Shyam Lakhi Mela 2024: देशभर में प्रसिद्ध खाटू श्याम मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है। यहां हर दिन अधिक संख्या में भक्त बाबा श्याम के दर्शन करने के लिए आते हैं और अपनी मनोकामनाओं को पूरी करने के लिए प्रार्थना करते हैं। फाल्गुन माह में खाटू श्याम मंदिर में लक्खी मेला का आयोजन किया जाता है। इस बार लक्खी मेला की शुरुआत 12 मार्च से हुई है और इसका समापन 21 मार्च 2024 को होगा। बाबा श्याम के इस मेले में शामिल होने के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं।

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लक्खी मेला को लेकर खाटू श्याम मंदिर को फूलों से बेहद सुंदर तरीके से सजाया गया है और श्याम नगरी बाबा श्याम के रंग में रंग गई है। भक्त बाबा श्याम के दर्शन करने के लिए पहुंच रहे हैं। बाबा श्याम का विशेष श्रृंगार किया गया है। उनका श्रृंगार चमेली, गुलाब और गेंदे के फूलों किया गया है और मनमोहक वस्त्र पहनाएं गए हैं। बता दें कि लक्खी मेला एक धार्मिक और सामाजिक उत्सव है, जो लोगों को एक-दूसरे के साथ जुड़ने और धार्मिक संगठन को समर्थन देने का अनुभव प्रदान करता है।

हर साल लक्खी मेला का आयोजन होली के आसपास होता है। ऐसे में बाबा श्याम अपने भक्तों के साथ होली का पर्व मनाते हैं। बाबा श्याम के जन्मदिन के अवसर पर उन्हें गुलाल अर्पित किया जाता है।  

ये है मान्यता

धार्मिक मान्यता है कि जब  श्री कृष्ण ने बर्बरीक से शीश मांगा था, तो बर्बरीक ने पूरी रातभर भजन किया और फाल्गुन माह के शुक्ल द्वादशी तिथि को स्नान कर से विधिपर्वक पूजा-अर्चना की। इसके बाद बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण को अपना शीश काटकर दे दिया। मान्यता है कि इसलिए प्रत्येक वर्ष लक्खी मेला लगता है।

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डिसक्लेमर: ''इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।''


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