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    Khatu Shyam Ji: खाटू श्याम जी का शीश कुरुक्षेत्र से कैसे पहुंचा सीकर? जानिए इससे जुड़ी कथा

    Updated: Tue, 12 Mar 2024 02:38 PM (IST)

    राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम मंदिर काफी लोकप्रिय है और इसकी काफी मान्यता भी है। यहां आए दिन भक्तों को तांता बंधा रहता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार खाटू श्याम जी भगवान कृष्ण के ही कलयुगी अवतार माने गए हैं। खाटू श्याम जी को हारे का सहारा और तीन बाण धारी जैसे कई नामों से जाना जाता है।

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    Khatu Shyam Mandir खाटू श्याम जी का शीश कुरुक्षेत्र से कैसे पहुंचा सीकर?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Khatu Shyam Mandir: खाटू श्याम जी की कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। उन्हें तीन बाण धारी भी कहा जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि वह ऐसे ही योद्धा थे, जो केवल तीन बाण से पूरे युद्ध पर विजय प्राप्त कर सकते थे। आपके मन में भी यह सवाल जरूर उठा होगा कि कुरुक्षेत्र से खाटू श्याम जी का शीश राजस्थान के सीकर जिले में कैसे पहुंचा। आईए जानते हैं इससे जुड़ी पौराणिक कथा।  

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    शीश से जुड़ी पौराणिक कथा

    पौराणिक कथा के अनुसार, बर्बरीक, घटोत्कच के पुत्र और भीम के पोते थे। वह महाभारत के युद्ध में भाग लेना चाहते थे। इसपर उनकी माता ने उनसे कहा कि तुम युद्ध में हारे का सहारा बनना। श्री कृष्ण यह जानते थे कि यदि बर्बरीक कौरव सेना को हारता हुआ देखकर, उनका साथ देते हैं, तो युद्ध कौरवों के पक्ष में चला जाएगा। ऐसे में भगवान कृष्ण ने बर्बरीक का शीश दान में मांग लिया। तब बर्बरीक जी ने श्री कृष्ण के चरणों में अपना शीश अर्पित भी कर दिया। इस पर भगवान कृष्ण अति प्रसन्न हुए। युद्ध समाप्त होने के बाद श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को आशीर्वाद देते हुए रूपावती नदी में बहा दिया था।

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    यहां मिला था शीश

    माना जाता है कि कलयुग शुरू होने के बाद, बर्बरीक जी का शीश सीकर के खाटू गांव में धरती में दफन मिला। जब एक गाय इस स्थान से गुजर रही तो उसके थनों से अपने आप दूध बहने लगी। यह देखकर गांव वाले चकित हो गए और  उन्होंने उसे जगह पर खुदाई करवाई। खुदाई में बर्बरीक जी का शीश प्राप्त हुआ।

    वहीं, दूसरी ओर खाटू गांव के राजा रूप सिंह को एक सपना आया जिसमें उन्हें मंदिर बनाकर वह शीश उसमें स्थापित करवाने का आदेश मिला और राजा ने ऐसा ही किया। माना जाता है कि जहां आज खाटू श्याम का कुंड है, वहीं पर बर्बरीक जी का शीश भी मिला था। इसी कारण इस कुंड की भी विशेष मान्यता है।

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