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    Kedarnath Yatra 2023: 'हर हर महादेव' के उद्घोष के बीच खोले गए केदारनाथ धाम के कपाट

    By Shantanoo MishraEdited By: Shantanoo Mishra
    Updated: Tue, 25 Apr 2023 09:57 AM (IST)

    Kedarnath Yatra 2023 आज सुबह तड़के 06 बजकर 30 मिनट पर मेघ लग्न में केदारनाथ धाम के कपाट मंत्रोच्चारण के बीच खोल दिए गए हैं। आइए जानते हैं केदारनाथ धाम से जुड़ी रोचक बातें और धाम से जुड़ी पौराणिक कथा।

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    Kedarnath Yatra 2023 इस शुभ मुहूर्त में खोले गए केदारनाथ धाम के कपाट।

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Kedarnath Yatra 2023, Char Dham Yatra Update: आज यानी 25 अप्रैल 2023, मंगलवार के दिन केदारनाथ धाम के कपाट खोल दिए गए हैं। केदारनाथ धाम के कपाट खुलते ही भक्तों की भीड़ भगवान शिव के दर्शन के लिए उमड़ रही है। बता दें कि बाबा केदारनाथ धाम के कपाट सुबह 06 बजकर 30 मिनट पर मेघ लग्न में मंत्रोच्चारण और 'हर हर महादेव' के उद्घोष के बीच खोले गए। केदारनाथ धाम में अधिक ठंड होने के बावजूद भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु, बाबा केदारनाथ के दर्शन के लिए मौजूद रहे। मंदिर के कपाट धाम के मुख्य पुजारी जगद्गुरु रावल भीमशंकर लिंग शिवाचार्य द्वारा खोले गए।

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    6 महीने ही होते हैं भगवान केदारनाथ के दर्शन (Kedarnath Yatra Darshan)

    द्वादश ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ ज्योतिर्लिंग भी शामिल है। साथ ही यह पंच केदार में भी सम्मिलित हैं। ठंडी के मौसम में यहां -1 से भी कम तापमान हो जाने के कारण मंदिर के कपाट 6 महीने के लिए बंद कर दिए जाते हैं। कपाट बंद करने से पहले यहां पुजारी एक दीपक जलाते हैं, जो 6 महीने के बाद कपाट खुलने जलता हुआ ही मिलता है। प्रत्येक वर्ष बाबा भैरव की पूजा के बाद ही मंदिर के कपाट बंद किए जाते हैं और खोले जाते हैं। मान्यता है कि भगवान भैरव इस मंदिर और इस धाम की रक्षा करते हैं।

    जानिए केदारनाथ धाम से जुड़ी कथा (Kedarnath Dham Katha)

    महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों पर भाइयों और सगे संबंधियों के हत्या का दोष लग गया था। इस पाप से मुक्ति प्राप्त करने के लिए सभी भाई भगवान शिव से क्षमा मांगने कैलाश पहुंचे। लेकिन भगवान शिव उन्हें क्षमा नहीं करना चाहते थे। तब उन्होंने बैल का रूप धारण कर लिया और पहाड़ों में मौजूद मवेशियों में छिप गए।

    पांडव उन्हें नहीं पहचान पाए, लेकिन गदाधारी भीम ने उन्हें देखते ही पहचान लिया और शिवजी का भेद सबके सामने आ गया। पांडवों की इस भक्ति को देख शिवजी अत्यंत प्रसन्न हुए और सभी को पापों से मुक्त कर दिया। तब से ही यहां बैल के पीठ की आकृति के पिंड की शिव रूप में पूजा की जाती है।

    डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।