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    यहां मौत के देवता का है एकमात्र मंदिर

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Thu, 11 Jun 2015 02:28 PM (IST)

    जीते जी नहीं, तो मौत के बाद यहां हर किसी को हाजिरी भरनी ही पड़ेगी। बकायदा कचहरी लगेगी और जीवन में कमाए पाप-पुण्यों का हिसाब-किताब देना पड़ेगा। मौत के देवता का फैसला आने के बाद ही तय होगा कि किस दरबार से होकर स्वर्ग या नरक में जाना है। चंबा

    जीते जी नहीं, तो मौत के बाद यहां हर किसी को हाजिरी भरनी ही पड़ेगी। बकायदा कचहरी लगेगी और जीवन में कमाए पाप-पुण्यों का हिसाब-किताब देना पड़ेगा। मौत के देवता का फैसला आने के बाद ही तय होगा कि किस दरबार से होकर स्वर्ग या नरक में जाना है। चंबा जिले के जनजातीय क्षेत्र भरमौर स्थित चौरासी मंदिर समूह में संसार के एकमात्र धर्मराज या मौत के देवता के मंदिर को लेकर कुछ ऐसी ही मान्यता है। मंदिर में एक खाली कमरा है जिसे चित्रगुप्त का कमरा माना जाता है। चित्रगुप्त जीवात्मा के कर्मो का लेखा-जोखा रखते हैं।

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    मान्यता है कि जब किसी प्राणी की मृत्यु होती है तब धर्मराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को पकड़ कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं। चित्रगुप्त जीवात्मा को उनके कर्मों का पूरा लेखा-जोखा देते हैं। इसके बाद चित्रगुप्त के सामने के कक्ष में आत्मा को ले जाया जाता है। इस कमरे को धर्मराज की कचहरी कहा जाता है। यहां पर यमराज कर्मों के अनुसार आत्मा को अपना फैसला सुनाते हैं।

    पूजा का समय

    सर्दियों के मौसम में सुबह चार से साढ़े पांच और गर्मियों से सुबह तीन से साढ़े पांच बजे तक।

    कैसे पहुंचें व कहां ठहरें

    जिला मुख्यालय चंबा से भरमौर करीब 70 किलोमीटर दूर हैं। चंबा से भरमौर बस, निजी वाहन या टैक्सी में भी जा सकते हैं। भरमौर में होटल या विश्राम गृहों में ठहर सकते हैं।मंदिर में चार अदृश्य द्वार मान्यता है इस मंदिर में चार अदृश्य द्वार हैं, जो स्वर्ण, रजत, तांबा और लोहे के बने हैं। धर्मराज का फैसला आने के बाद यमदूत आत्मा को कर्मों के अनुसार इन्हीं द्वारों से स्वर्ग या नर्क में ले जाते हैं। गरुड़ पुराण में भी यमराज के दरबार में चार दिशाओं में चार द्वार का उल्लेख किया गया है। मेरू वर्मन ने बनवाई सीढ़ियां हालांकि मंदिर की स्थापना के बारे में किसी को भी सही जानकारी नहीं है। इतना जरूर है कि चंबा रियासत के राजा मेरू वर्मन ने छठी शताब्दी में इस मंदिर की सीढ़ियों का जीर्णोद्धार करवाया था। इसके अलावा इस मंदिर की स्थापना को लेकर अभी तक किसी को भी कोई जानकारी नहीं है।

    250 वर्षों से अखंड धूना धर्मराज मंदिर के भीतर 250 वर्षों से अखंड धूना भी लगातार चल रहा है। चैरासी मंदिर परिसर में स्थित सभी मंदिरों की पूजा-सामग्री भी इसी मंदिर से जाती है। मंदिर के ठीक सामने चित्रगुप्त की कचहरी है और यहां पर आत्मा के उलटे पांव भी दर्शाए गए है।

    पंडदान व गोदान करें

    यहां पर अढ़ाई पौढ़ी भी है। मान्यता है कि अप्राकृतिक मौत होने पर यर्हां ंपड दान किए जाते हैं। साथ ही परिसर में वैतरणी नदी भी है, जहां पर गोदान किया जाता है। सदियों पूर्व चैरासी मंदिर समूह का यह मंदिर झाड़ियों से घिरा था और दिन के समय भी यहां कोई जाने हिम्मत नहीं जुटा पाता था। मंदिर में पूजा को लेकर भी नियम तय है। सबसे पहले धर्मराज महाराज के मंदिर में पूजा-अर्चना होती है।

    -पं. लक्ष्मण दत शर्मा, मंदिर के पुजारी।