Hassanamba Temple: वर्ष में दीवाली पर ही खुलता है ये मंदिर, साल भर जलता रहता है दीया
कार्तिक माह में कई पर्व मनाए जाते हैं जिनमें दीवाली (Diwali 2024) का पर्व भी शामिल है। कार्तिक महीने में आने वाली अमावस्या पर दीवाली धूमधाम के साथ मनाई जाती है। वहीं दीवाली के दिन का श्रद्धालु हसनंबा मंदिर (Hassanamba Temple) के कपाट खुलने का बेसब्री से इंतजार करते हैं क्योंकि यह मंदिर वर्ष में दीवाली के दिन ही खुलता है। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। दीवाली को रोशनी के पर्व के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन दीपक जलाने का विधान है। साथ ही शुभ मुहूर्त में धन की देवी मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा-अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इससे साधक को धन की प्राप्ति होती है। वहीं, इस खास अवसर पर हसनंबा मंदिर के कपाट खुलते हैं। यह मंदिर साल में एक बार दीवाली (Diwali 2024) के दिन ही खुलता है। दीवाली के शुभ अवसर पर मंदिर को केवल 7 दिनों के लिए खोला जाता है और बाकी के दिन मंदिर बंद रहता है। ऐसे में आइए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों के बारे में।
बेहद प्राचीन है मंदिर
यह मंदिर कर्नाटक के हासन जिले में स्थित है। इस मंदिर का नाम हसनंबा मंदिर है, जो देवी अम्बा को समर्पित है। ऐसा बताया जाता है कि इस मंदिर को 12वीं शताब्दी में बनाया गया था। इस शहर का नाम हसन देवी के नाम पर ही रखा गया है। जब मंदिर खुलता है, तो अधिक संख्या में श्रद्धालु मां जगदम्बा के दर्शन कर उनकी पूजा-अर्चना करते हैं।
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हसनंबा मंदिर से जुड़ी है ये कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन समय में एक राक्षस था, जिसका नाम अंधकासुर था। उसने अपनी तपस्या से ब्रह्मा जी को अदृश्य होने वरदान प्राप्त कर लिया था, जिसकी वजह से उसने चारों लोकों में अत्याचार मचा रखा था। इसकी वजह से देवी-देवता परेशान हो गए थे। ऐसे में महादेव ने राक्षस का अंत करने का सोचा। राक्षस बेहद शक्तिशाली था, जिसकी वजह से जब भगवान शिव उसे मारने की कोशिश करते, तो उसके रक्त से राक्षस बन जाती। ऐसे में देवों के देव महादेव ने योगेश्वरी देवी का प्रकट किया। इसके बाद योगेश्वरी देवी ने अंधकासुर राक्षस का अंत कर दिया।
(Pic Credit- Freepik)
वर्ष में एक बार ही खुलता है मंदिर
हसनंबा मंदिर के कपाट दीवाली (Hassanamba Temple Opening Days) से सात दिनों के लिए खोले जाते हैं और बालीपद्यमी के उत्सव के 3 दिन के बाद मंदिर को बंद कर दिया जाता है। मंदिर को बंद करने के दौरान अंदर एक दीपक जलाया जाता है और फूल रखें जाते हैं। ऐसा बताया जाता है कि जब अगले साल यानी दीवाली के दिन मंदिर को खोला जाता है, तो दीपक जलता रहता है और फूल ताजा देखने को मिलते हैं।
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