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Gurudwara Hemkund Sahib: दो से अधिक सदियों तक गुमनामी में रहा हेमकुंड साहिब, लक्ष्मण जी से भी जुड़ा है इतिहास

हेमकुंड साहिब को सिक्ख तीर्थों की सबसे कठिन तीर्थ यात्रा भी कहा जाता है। क्योंकि यह करीब 15 हजार 200 फीट ऊंचे ग्लेशियर पर स्थित हैं। इसके बावजूद भक्त पूरी श्रद्धा के साथ कठिन यात्रा पार करके यहां पहुचते हैं।

By Suman SainiEdited By: Suman SainiPublished: Sun, 04 Jun 2023 02:42 PM (IST)Updated: Sun, 04 Jun 2023 02:42 PM (IST)
Gurudwara Hemkund Sahib क्या है हेमकुंड साहिब का लक्ष्मण जी से भी जुड़ा है इतिहास

नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क। Gurudwara Hemkund Sahib: हिमालय की हसीन वादियों में स्थित गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब सिखों के सबसे पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है। इसकी सुंदरता किसी का भी मन मोह सकती है। माना जाता है कि यहाँ पर सिखों के दसवें और अंतिम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह ने अपने पिछले जीवन में ध्यान साधना की थी और वर्तमान जीवन लिया था।

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क्यों पड़ा हेमकुंड नाम

हेमकुंड एक संस्कृत नाम है जो दो शब्दों हेम अर्थात बर्फ और कुंड अर्थात कटोरा को मिलाकर बना है। गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा रचित दसम ग्रंथ के अनुसार, यह वह जगह है जहां पांडु राजा अभ्यास योग करते थे। इसके अलावा यह कहा गया है कि जब पाण्डु हेमकुंड पहाड़ पर गहरे ध्यान में थे तो भगवान ने उन्हें सिख गुरु गोबिंद सिंह के रूप में यहाँ पर जन्म लेने का आदेश दिया था।

कैसे हुई हेमकुंड की खोज

हेमकुंड की खोज के पीछे भी एक रोचक कथा छिपी हुई है। श्री हेमकुंड साहिब के बारे में कहा जाता है कि यह जगह दो से अधिक सदियों तक गुमनामी में रही, गुरु गोबिंद सिंह जी ने आत्मकथा बिचित्र नाटक में इस जगह के बारे में बताया, तब यह अस्तित्व में आई। पंडित तारा सिंह नरोत्तम हेमकुंड की भौगोलिक स्थिति का पता लगाने वाले पहले सिख थे। श्री गुड़ तीरथ संग्रह में उन्होंने इसका वर्णन 508 सिख धार्मिक स्थलों में से एक के रूप में किया है। इसके बहुत बाद में चलकर प्रसिद्ध सिख विद्वान भाई वीर सिंह ने हेमकुंड के विकास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल की।

कैसे जुड़ा है लक्ष्मण जी से इसका इतिहास

इस क्षेत्र को बहुत ही पवित्र माना जाता है। पहाड़ों से घिरी इस जगह पर एक बड़ा तालाब भी है, जिसे लोकपाल कहते हैं। लोकपाल का अर्थ है लोगों का निर्वाहक। सात पर्वत चोटियों की चट्टान पर एक निशान साहिब सजा हुआ है। इसके इतिहास की बात करें तो इस पवित्र स्थल को रामायण में भी इसका वर्णन मिलता है। इसके पीछे कई मान्यताएं मौजूद हैं। यह वही जगह है जहां पर लक्ष्मण जी ध्यान पर बैठते थे। इसलिए यहां भगवान लक्ष्मण का एक मंदिर भी मौजूद है। एक अन्य मान्यता के मुताबिक, लक्ष्मण का पुराना अवतार शेषनाग थे। माना जाता है कि शेषनाग लोकपाल झील में तपस्या करते थे और विष्णु भगवान उनकी पीठ पर आराम करते थे। वहीं दूसरी स्थानीय मान्यता के अनुसार, मेघनाथ के साथ युद्ध में घायल होने पर लक्ष्मण को लोकपाल झील के किनारे लाया गया था। यहां हनुमान ने उन्हें संजीवनी बूटी दी और वे ठीक हो गए। इसके बाद देवताओं ने आसमान से फूल बरसाए, जिसके बाद यहां फूलों की घाटी बनी। ये जगह आज 'वैली ऑफ फ्लॉवर्स' के नाम से जानी जाती है।

डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


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