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गणपति को सपरिवार देना हो बुलावा तो इस मंदिर में भेजें आमंत्रण

श्री गणेश का एकमात्र त्रिनेत्र स्‍वरूप मंदिर रणथम्भौर में है। मंदिर की खासियत ये भी है यहां भक्‍त मांगलिक कार्यों में शामिल होने का बाकायदा निमंत्रण भेजते हैं।

By Molly SethEdited By: Published: Wed, 14 Feb 2018 11:03 AM (IST)Updated: Wed, 14 Mar 2018 09:50 AM (IST)
गणपति को सपरिवार देना हो बुलावा तो इस मंदिर में भेजें आमंत्रण

विराजमान है गणपति का पूरा परिवार

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रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश मंदिर भारत के राजस्थान प्रांत में सवाई माधोपुर जिले में निर्मित है। यह मंदिर विश्व धरोहर में शामिल रणथम्भौर दुर्ग के भीतर बना हुआ है। अरावली और विन्ध्याचल पहाड़ियों के बीच स्थित रणथम्भौर दुर्ग में त्रिनेत्र गणेश मंदिर प्रकृति व आस्था का अनूठा संगम है। भारत के कोने-कोने से लाखों की तादाद में दर्शनार्थी यहां पर उनके दर्शन हेतु आते हैं और कई मनौतियां मांगते हैं। बताते हैं इस गणेश मंदिर का निर्माण महाराजा हम्मीरदेव चौहान ने करवाया था लेकिन मंदिर के अंदर भगवान गणेश की प्रतिमा स्वयंभू है। इस मंदिर में भगवान गणेश त्रिनेत्र रूप में विराजमान है जिसमें तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। पूरी दुनिया में यह एक ही मंदिर है जहाँ भगवान गणेश जी अपने पूर्ण परिवार, दो पत्नी- रिद्दि और सिद्दि एवं दो पुत्र- शुभ और लाभ, के साथ विराजमान है।

त्रिनेत्र का महत्‍व

रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी दुनिया के एक मात्र गणेश है जो तीसरा नयन धारण करते है। गजवंदनम् चितयम् में विनायक के तीसरे नेत्र का वर्णन किया गया है, लोक मान्यता है कि भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र उत्तराधिकारी स्वरूप सौम पुत्र गणपति को सौंप दिया था और इस तरह महादेव की सारी शक्तियां गजानन में निहित हो गई। महागणपति षोड्श स्त्रौतमाला में विनायक के सौलह विग्रह स्वरूपों का वर्णन है। महागणपति अत्यंत विशिष्ट व भव्य है जो त्रिनेत्र धारण करते है, इस प्रकार ये माना जाता है कि रणथम्भौर के रणतभंवर महागणपति का ही स्वरूप है।

पधारो हमारे घर

आपको बतायें कि त्रिनेत्र गणेश कुछ उन मंदिरों में से है जहां भगवान के नाम डाक भी आती है। देश भर से भक्‍त अपने घर में होने वाले हर मंगल कार्य का पहला निमंत्रण यहां भगवान गणेश के लिए भेजते हैं। इन निमंत्रण पत्रों पर ये पता लिखा जाता है श्री गणेश जी, रणथंभौर का किला, जिला- सवाई माधोपुर (राजस्थान), और निमंत्रण आराम से गणपति के पास पहुंच जाता है। इतना ही नहीं मंदिर के पुजारी इन निमंत्रण पत्रों को भगवान को पढ़ कर सुनाते भी हैा ताकि भगवान को भेजने वाले के कार्यक्रम की सूचना मिल जाये। 


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