जाने दुर्गा जी के आदि मंदिर दुर्गा कुंड के बारे में
वाराणसी में दुर्गा कुंड, दुर्गा मंदिर पर भक्तों की बेहद आस्था है। ऐसा माना जाता कि ये शक्ति के आदि मंदिरों में से एक है।
प्राचीन मंदिर
दुर्गा मंदिर काशी के पुरातन मंदिरों मे से एक है। इस मंदिर का उल्लेख " काशी खंड" में भी मिलता है। यह मंदिर वाराणसी कैन्ट से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर है। लाल पत्थरों से बने इस भव्य मंदिर के एक तरफ दुर्गा कुंड है। इस मंदिर में माता दुर्गा यंत्र के रूप में विराजमान है। मंदिर के निकट ही बाबा भैरोनाथ, लक्ष्मीजी, सरस्वतीजी, और माता काली की मूर्तियां अलग से मंदिरों में स्थापित हैं। इस मंदिर के अंदर एक विशाल हवन कुंड है, जहां रोज हवन होते हैं। कुछ लोग यहां तंत्र पूजा भी करते हैं।
अदृश्य रूप में विराजित हैं माता
ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में दुर्गा माता आद्य शक्ति स्वरूप में अदृश्य रूप से विराजमान हैं। ये मंदिर शिव की नगरी काशी के प्राचीनतम मंदिरों में से एक माना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि ये देवी का आदि मंदिर है, इसके अतिरिक्त वाराणसी में केवल दो ही मंदिर काशी विश्र्वनाथ और मां अन्नपूर्णा मंदिर ही प्राचीनतम हैं।
अदभुद कहानी
इस मंदिर से जुड़ी एक अदभुद कहानी सुनाई जाती है। कहते हैं कि अयोध्या के राजकुमार सुदर्शन का विवाह काशी नरेश सुबाहु की बेटी से करवाने के लिए माता ने सुदर्शन के विरोधी राजाओं का वध करके उनके रक्त से कुंड को भर दिया वही रक्त कुंड कहलाता है। बाद में राजा सुबाहु ने यहां दुर्गा मंदिर का निर्माण करवाया और 1760 ईस्वी में रानी भवानी ने इसका जीर्णेद्धार करवाया।
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