सृष्टि में अष्टम् बैकुंठ बद्रिकाश्रम
जगत नियंता की सृष्टि में बद्रिकाश्रम को अष्टम् बैकुंठ के रूप में जाना जाता है। यह अनादि क्षेत्र है और इसके अधिष्ठाता स्वयं भगवान विष्णु हैं। कहते हैं कि सतयुग में भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन होने से यह धाम 'मुक्तिप्रदा' के नाम से प्रसिद्ध रहा। त्रेतायुग में योगाभ्यासरत रहकर कुछ काल में भगवान के दर्शन का लाभ होने से इस धाम को 'योगसिद्धिदा' और द्वापर मे
जगत नियंता की सृष्टि में बद्रिकाश्रम को अष्टम् बैकुंठ के रूप में जाना जाता है। यह अनादि क्षेत्र है और इसके अधिष्ठाता स्वयं भगवान विष्णु हैं। कहते हैं कि सतयुग में भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन होने से यह धाम 'मुक्तिप्रदा' के नाम से प्रसिद्ध रहा। त्रेतायुग में योगाभ्यासरत रहकर कुछ काल में भगवान के दर्शन का लाभ होने से इस धाम को 'योगसिद्धिदा' और द्वापर में भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन की आशा में बहुजन संकुल होने के नाते 'विशाला' के नाम से जाना गया।
कलियुग में बद्रिकाश्रम, बदरीनाथ आदि नामों से इस धाम की प्रसिद्धि सर्वविदित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब गंगाजी का धरती पर अवतरण हुआ तो वह 12 धाराओं में बंट गईं। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से जानी गई और यह स्थान बदरीनाथ, भगवान विष्णु का वास बना। भगवान विष्णु की प्रतिमा वाला वर्तमान मंदिर 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। माना जाता है कि जगदगुरु शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में इसका निर्माण कराया था। वर्तमान में शंकराचार्य की निर्धारित परंपरा के अनुसार उन्हीं के वंशज 'नंबूदरीपाद' ब्राह्मण भगवान बदरीविशाल की पूजा-अर्चना करते हैं। मंदिर में भगवान की जिस मूर्ति की पूजा होती है, उसे देवताओं ने नारदकुंड से निकालकर स्थापित किया था।
सिद्ध, ऋषि, मुनि इसके प्रधान अर्चक थे। जब बौद्धों का प्राबल्य हुआ, तो उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति मानकर पूजा आरंभ की। शंकराचार्य की प्रचारयात्रा के समय बौद्ध तिब्बत भागते हुए मूर्ति को अलकनंदा में फेंक गए। शंकराचार्य ने पुन: बाहर निकालकर उसकी स्थापना की।
बदरीनाथ मंदिर-
कपाट खुलने की तिथि: 5 मई
मौसम: ग्रीष्मकाल में मई से अगस्त तक दिन के समय मनोरम व रात में ठंडा।
सितंबर से नवंबर में मंदिर के कपाट बंद होने तक तेज सर्दी। दिसंबर से मार्च तक हिमाच्छादित।
पहनावा: जून से सितंबर तक हल्के ऊनी वस्त्र। अप्रैल-मई,अक्टूबर-नवंबर में भारी ऊनी वस्त्र।
यात्री सुविधा: सभी प्रमुख स्थानों पर श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति व जीएमवीएन के विश्राम गृह, निजी विश्राम गृह, धर्मशाला आदि।
वायुमार्ग: देहरादून स्थित जौलीग्रांट हवाई अड्डा। यहां से बदरीनाथ की दूरी 317 किमी है।
रेल मार्ग: अंतिम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश से 300 किमी व कोटद्वार स्थित अंतिम रेलवे स्टेशन से 327 किमी।
सड़क मार्ग: हरिद्वार व ऋषिकेश के
अलावा देहरादून व कोटद्वार से भी यहां पहुंचा जा सकता है।
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