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    Baba Baidyanath Temple: रावण ने इस ज्योतिर्लिंग के लिए किया था घोर तप लेकिन नहीं ले जा पाया था लंका

    By Shilpa SrivastavaEdited By:
    Updated: Thu, 30 Jul 2020 06:56 AM (IST)

    Baba Baidyanath Temple भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक वैद्यनाथ भी है। यह झारखंड के सन्थाल परगने में स्थित है।

    Baba Baidyanath Temple: रावण ने इस ज्योतिर्लिंग के लिए किया था घोर तप लेकिन नहीं ले जा पाया था लंका

    Baba Baidyanath Temple: भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक वैद्यनाथ भी है। यह झारखंड प्रांत के सन्थाल परगने में स्थित है। मान्यता के अनुसार, इसकी प्रसिद्धि शास्त्र और लोक दोनों में ही है। पुराणों के अनुसार, जो मनुष्य इस ज्योतिर्लिंग का दर्शन करात है उसे हर पाप से छुटकारा मिल जाता है। साथ ही भगवान शिव की कृपा हमेशा बनी रहती है। हर ज्योतिर्लिंग की तरह इस ज्योतिर्लिंग के पीछे भी एक पौराणिक कथा है जिसका वर्णन हम यहां कर रहे हैं। तो चलिए जानते हैं इस कथा के बारे में।

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    एक बार राक्षसराज रावण ने भगवान शिव के दर्शन प्राप्त करने के लिए हिमालय पर जाकर घोर तपस्या की। शिव जी को प्रसन्न करने के लिए उसने अपने सिरों को एक-एक कर काटना शुरू कर दिया। इसी तरह रावण ने अपने सभी नौ सिरों को काटकर शिवलिंग पर चढ़ा दिया। जैसे ही रावण अपना अंतिम सिर यानी दसवां सिर काटने जा रहा था उसी समय भगवान शिव प्रसन्न होकर उसके समझ प्रकट हो गए और रावण को अपना दसवां सिर काटने से रोक लिया। यही नहीं, शिव जी ने उसके बाकी के नौ सिरों को भी पहले जैसा ही जोड़ दिया। साथ ही रावण से वर मांगने को कहा।

    रावण ने भगवान शिव से उनका शिवलिंग अपनी लंका में ले जाने की अनुमति मांगी। शिव जी ने उसे वरदान दे दिया। साथ ही एक शर्त भी रखी किलंका ले जाते समय शिवलिंग को घरती पर न रखा जाए। अगर रास्ते में कहीं पर भी शिवलिंग को भूमि पर ले जाया जाता है तो उसे फिर उठा नहीं पाओगे। रावण ने शिव जी की बात मानी और शिवलिंग लेकर लंका की ओर चल दिया। इसके बाद रास्ते में उसे लघुशंका जाना पड़ा। उसने एक व्यक्ति को शिवलिंग थमाया और लघुशंका चला गया। व्यक्ति को वह शिवलिंग बहुत भारी लगा। वह उसे संभाल नहीं पाया और विवश होकर उसने शिवलिंग को भूमि पर रख दिया।

    जब रावण वापस आया तक उसने शिवलिंग को जमीन पर रखा देखा। उसने शिवलिंग को उठाने की बहुत प्रयास किया लेकिन उठा न सका। आखिरी में थक हारकर उसने पवित्र शिवलिंग पर अपने अँगूठे का निशान बना दिया। इसके वो शिवलिंग को वहीं छोड़कर लंका लौट गया। इसके बाद ब्रह्मा, विष्णु आदि देवता वहां आए और उन सभी ने शिवलिंग का पूजन किया। तभी इसे इस ज्योतिर्लिंग को श्रीवैद्यनाथ के नाम से जाना जाता है।