श्री विट्ठल के विग्रह रूप में भगवान आज भी धरती पर विराजमान हैं
भगवान को पुंडलिक द्वारा दिए गए स्थान से भी बहुत प्रेम हो गया। उनकी कृपा से पुंडलिक को अपने माता-पिता के साथ ही ईश्वर से साक्षात्कार हो गया।
भगवान विट्ठल, श्री हरि के अवतार थे। उन्होंने यह अवतार क्यों लिया इसके बारे में एक पौराणिक कहानी में उल्लेख मिलता है। हुआ यूं था कि 6वीं सदी में संत पुंडलिक माता-पिता के परम भक्त थे।
एक दिन वे अपने माता-पिता के पैर दबा रहे थे कि श्रीकृष्ण रुक्मिणी के साथ वहां प्रकट हो गए। वे पैर दबाने में इतने लीन थे कि अपने इष्टदेव की ओर उनका ध्यान ही नहीं गया।
तब प्रभु ने उन्हें स्नेह से पुकार कर कहा, 'पुंडलिक, हम तुम्हारा आतिथ्य ग्रहण करने आए हैं।' पुंडलिक ने जब उस तरफ देखा, तो भगवान के दर्शन हुए। उन्होंने कहा कि मेरे पिताजी शयन कर रहे हैं, इसलिए आप इस ईंट पर खड़े होकर प्रतीक्षा कीजिए और वे पुन: पैर दबाने में लीन हो गए।
भगवान पुंडलिक की सेवा और शुद्ध भाव देखकर प्रसन्न हो गए और कमर पर दोनों हाथ धरकर और पैरों को जोड़कर ईंटों पर खड़े हो गए। कुछ देर बाद पुंडलिक ने फिर भगवान से कह दिया कि आप इसी मुद्रा में थोड़ी देर और इंतजार करें।
भगवान को पुंडलिक द्वारा दिए गए स्थान से भी बहुत प्रेम हो गया। उनकी कृपा से पुंडलिक को अपने माता-पिता के साथ ही ईश्वर से साक्षात्कार हो गया। ईंट पर खड़े होने के कारण श्री विट्ठल के विग्रह रूप में भगवान आज भी धरती पर विराजमान हैं। यही स्थान पुंडलिकपुर या अपभ्रंश रूप में पंढरपुर कहलाया।
कैसे पहुंचे पंढरपुर
रेल : पंढरपुर में कुर्दुवादि रेलवे जंक्शन से जुड़ा हुआ है। कुर्दुवादि जंक्शन से होकर लातुर एक्सप्रेस , मुंबई एक्सप्रेस, हुसैनसागर एक्सप्रेस , सिद्धेश्वर एक्सप्रेस समेत कई ट्रेने रोजाना मुंबई जाती हैं। पंढरपुर से भी पुणे के रास्ते मुंबई के लिए ट्रेन चलती है।
बस: महाराष्ट्र के कई शहरों से सड़क परिवहन के जरिए जुड़ा है पंढरपुर। इसके अलावा उत्तरी कर्नाटक और उत्तर-पश्चिम आंध्र प्रदेश से भी प्रतिदिन यहां के लिए बसें चलती हैं।
प्रमुख शहरों से दूरी
-संगोला से पंढरपुर की दूरी 32 किलोमीटर है।
-कुर्दुवादि जंक्शन की दूरी 52 किलोमीटर स्थित है।
-इसके अलावा सोलापुर 72 किलोमीटर, मिराज 128 किलोमीटर और अहमदनगर 196 किलोमीटर दूर स्थित है।