च्यवन के तप से मिली प्रसिद्धि
नारनौल से सात किलोमीटर दूर गांव कुलताजपुर के मध्य प्रसिद्ध ढोसी की पहाड़ी पर बना महर्षि च्वयन आश्रम जन-जन की आस्था का केंद्र बना हुआ है। च्यवन गुफा व चंद्रकूप भी सबको अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
हरियाणा में अनेक संत -महात्माओं व मुनियों का वास रहा है। संत नितानंद व सूरदास समेत अनेक ऐसे महान संत यहां हुए हैं जिन्होंने अपने महान कार्यो से जन-जन का कल्याण किया है। ऐसे ही एक संत हुए हैं महर्षि च्यवन, जिन्होंने अपनी तपस्या व साधना से मानव मात्र का कल्याण कर समाज को नई दिशा दी है। जिला महेंद्रगढ़ के मुख्यालय नारनौल नगर से सात कि.मी. की दूरी पर बसा है गांव कुलताजपुर। इसी गांव के मध्य स्थित प्रसिद्ध ढोसी की पहाड़ी पर अवस्थित है महर्षि च्वयन आश्रम।
इस आश्रम को महर्षि च्यवन की तपोस्थली माना जाता है। मान्यता है कि इसी आश्रम में उन्होंने विश्व प्रसिद्ध औषधि च्यवनप्राश का निर्माण किया था। आश्रम में सोमवती अमावस्या को विशाल मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें दूर-दराज से श्रद्धालु भाग लेते हैं। च्यवन ऋषि के आश्रम के संदर्भ में एक कथा प्रचलित है जिसका वर्णन धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। महाभारत के मुताबिक ढोसी की पहाड़ी को आर्चिक पर्वत कहा जाता था। आर्चिक का अर्थ वेदों की ऋचाओं से समझा जाता है। कहा जाता है कि पुरातन काल में इस पर्वत पर अनेक संत-मुनि तपस्या करते थे और वेदों की ऋचाओं का पाठ करते थे इसलिए इस पर्वत को आर्चिक पर्वत कहा जाता था। कालांतर में इसे ढोसी कहा जाने लगा। एक अन्य कथा के अनुसार महर्षि च्यवन ने इसी ढोसी की पहाड़ी को अपनी तपोस्थली बनाया। इस पहाड़ी की चोटी पर बैठकर वे गहन तपस्या में लीन हो गए। लगातार तप में लीन होने के कारण उनके शरीर पर मिट्टी का आवरण जमा हो गया था। एक दिन सूर्यवंशी राजा शर्याति ढोसी पर भ्रमण के लिए आए। उनकी पुत्री सुकन्या भी उनके साथ थी। सुकन्या मिट्टी से ढकी आकृति देखकर उससे खेलने लगी। इस दौरान उसने आकृति में सरकंडे घुसा दिए। ये सरकंडे महर्षि च्यवन की आंखों में घुस गए। आकृति से खून बहता देख सुकन्या डर गई और उसने अपने पिता को वहां बुलाया। जब राजा शर्याति ने वहां से मिट्टी को हटाकर देखा तो उन्हें वहां महर्षि च्यवन बैठे दिखाई दिए, जिनकी आंखें राजकुमारी सुकन्या ने अज्ञानवश फोड़ दी थीं।
सच्चाई जानकर सुकन्या आत्मग्लानि से भर गई। सुकन्या ने वहीं आश्रम में रहकर च्यवन ऋषि की पत्नी बनकर उनकी सेवा कर पश्चाताप करने का निर्णय लिया। धारणा है कि बाद में देवताओं के वैद्य आश्विन ने अपने आशीर्वाद से महर्षि च्यवन को युवा बना दिया। युवावस्था प्राप्त कर महर्षि च्यवन ने उस क्षेत्र को अपने तप के बल से दिव्य क्षेत्र बना दिया। आज महर्षि च्यवन आश्रम के कारण पूरा ढोसी क्षेत्र एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल के रूप में जाना जाता है। यहां महर्षि च्यवन का प्राचीन मंदिर है जिसमें महर्षि च्यवन, सुकन्या व भगवान विष्णु की मूर्तियां स्थापित हैं। यहीं पर एक गुफा है जिसे च्यवन गुफा कहते हैं। इसके अतिरिक्तयहां स्थित चंद्रकूप भी आकर्षण का केंद्र है। ढोसी की पहाड़ी के एक तल पर प्रसिद्ध शिवकुंड और शिवमंदिर भी है। ढोसी की पहाड़ी का जिक्र महाभारत के वन पर्व में भी मिलता है। महाभारत के अनुसार अज्ञातवास के दौरान पांडव ढोसी की पहाड़ी पर भी आए थे। इस पहाड़ी पर बड़े आकार के कुछ पदचिह्न भी हैं जो महाबली भीम के पदचिह्नों के रूप में प्रसिद्ध हैं। श्रावण मास में यहां शिव अभिषेक व अन्य धार्मिक कार्यक्रम किए जाते हैं। हरियाली से आच्छादित ढोसी की पहाड़ी की सुंदरता श्रद्धालुओं व पर्यटकों को अपनी ओर सहज ही आकर्षित कर लेती है।
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