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    छोटी काशी की शान मंदिर पंचमुखी हनुमान

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    Updated: Mon, 09 Apr 2012 01:07 PM (IST)

    भिवानी में पतराम गेट के बाहर स्थित पंचमुखी हनुमान मंदिर में पंचमुखी हनुमान की आकर्षक प्रतिमा के अलावा रामदरबार, सीताराम मंदिर, शिवपरिवार, शिवालय व दुर्गा माता भी प्रतिष्ठित हैं। बजरंग बली के शौर्य की प्रतीक पंचमुखी प्रतिमा के सामने उनकी छोटी प्रतिमा भी शोभायमान है जिसके दोनों तरफ सिंदूर व वर्क चढ़े हुए गदा रखे हुए हैं। मंदिर के प्रांगण में समय-समय पर यज्ञ व भंडारों का आयोजन भी किया जाता है।

    हरि के प्रदेश हरियाणा की पावन धरा पर नए और पुराने असंख्य धार्मिक स्थल बने हुए हैं। ये धार्मिक स्थल श्रद्धालुओं की इनके प्रति अगाध आस्था, अटूट विश्वास एवं अनन्य भक्ति के प्रतीक हैं। इनकी अपने-अपने परगने में बहुत अधिक मान्यता है। संपूर्ण हरियाणा में शायद ही कोई ऐसा गांव हो जहां कोई धार्मिक स्थल न हो।

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    हरियाणा के कई धार्मिक स्थल तो इतने प्राचीन हैं कि उनकी प्राचीनता का बोध मंदिर में प्रवेश करने पर स्वत: हो जाता है। देशभर में छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध हरियाणा के धार्मिक शहर भिवानी में भी अनेक प्राचीन धार्मिक स्थल हैं। इन्हीं के कारण भिवानी को छोटी काशी के नाम से पुकारा जाता है। भिवानी शहर में बने प्राचीन मंदिरों की मान्यता दूर-दराज तक है। भिवानी के पतराम गेट के बाहर स्थित पंचमुखी हनुमान मंदिर मनोकामना सिद्धि के लिए जाना जाता है जिससे भिवानी की शान दूर-दूर तक है। यह हनुमान मंदिर प्राचीन एवं ऐतिहासिक मंदिरों में शुमार है। भिवानी के अतिरिक्त आसपास के क्षेत्र के असंख्य श्रद्धालु इस मनोकामना सिद्ध श्री पंचमुखी हनुमान मंदिर में धोक लगाने आते हैं। हनुमान भक्तों का मानना है कि इस मंदिर में सच्चे मन से आराधना करने वाले व्यक्ति की बजरंग बली सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

    काफी सालों से पंचमुखी हनुमान मंदिर की देखभाल कर रहे महंत श्रीश्री1008 रामरतनदास का कहना है कि यह पंचमुखी हनुमान मंदिर लगभग 600 वर्ष पुराना है। इस मंदिर के गर्भगृह में पवनपुत्र हनुमान की पांच मुखों व दस भुजाओं वाली प्रतिमा विराजमान है जो श्रद्धालुओं की अगाध आस्था का केंद्र तो है ही, साथ ही साथ यह प्रतिमा सबके आकर्षण का केंद्र भी बनी रहती है। शौर्य की पराकाष्ठा दर्शाती यह प्रतिमा दानवों के संहार के लिए उद्यत दिखाई देती है। इस विशाल प्रतिमा में इतना अधिक आकर्षण है कि दूर-दराज के क्षेत्रों से भी श्रद्धालु इसके दर्शन करने आते हैं। इस ऐतिहासिक पंचमुखी हनुमान मंदिर का निर्माण लगभग 600 वर्ष पहले वैरागियों का अखाड़ा संप्रदाय के साधुओं ने करवाया था। इस संप्रदाय के साधु अलमस्त होते हैं और जीवनभर ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। बहुत पुराना होने के कारण यह स्थान जीर्ण-शीर्ण हो गया था। महंत रामरतनदास ने श्रद्धालुओं और भक्तों के सहयोग से इसका जीर्णोद्धार करवाया लेकिन मंदिर के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाती स्थिति ज्यों की त्यों रखी गई है।

    श्रद्धालुओं का मानना है कि पंचमुखी हनुमान की विशाल प्रतिमा के सामने खड़े होकर मांगी गई हर मुराद शीघ्र पूरी होती है। श्रद्धालुओं का यह भी मानना है कि इस मंदिर में आने से उनको असीम आनंद की अनुभूति होती है। मनोकामनाएं पूर्ण होने पर श्रद्धालु यहां आकर सवामणि लगाते हैं तथा ध्वजा व नारियल चढ़ाकर धोक लगाते हैं। मंगलवार व शनिवार के दिन यहां भीड़ का कोई पारावार नहीं रहता है। इन दो दिनों के दौरान मंदिर में उमड़ी भीड़ को देखकर ऐसा आभास होता है मानो यहां कोई मेला लगा हो।

    इस सिद्ध पंचमुखी हनुमान मंदिर की दूर-दराज तक व्याप्त प्रसिद्धि का सारा श्रेय इसके पांचवें महंत बाबा नारायणदास को जाता है। बाबा नारायणदास आजन्म ब्रह्मचारी रहे और वे बजरंग बली हनुमान के अनन्य भक्त थे। मात्र 15 वर्ष की आयु से ही वे दिन में सिर्फ दो बार गाय का दूध पीते थे। इस कारण वे बाबा दूधाधारी के नाम से जन-जन में विख्यात हुए। बाबा दूधाधारी हनुमान भक्त थे, इसलिए वे अपने तन पर केवल लाल लंगोट धारण करते थे।

    बाबा दूधाधारी के भिवानी में आकर इस मंदिर के महंत बनने की कथा अत्यंत रोचक है। वे बिहार के गांव लहरपुर के रहने वाले थे व अपने गुरु बाबा हीरादास महाराज के साथ मिलकर हजारों साधुओं की जमात घुमाया करते थे। देव योग से एक दिन वे विचरण करते-करते भिवानी की ओर आए व इस मंदिर में हनुमान के प्रत्यक्ष दर्शन के प्रभाव से यहीं के होकर रह गए। दूधाधारी महाराज के समय में मंदिर में प्रत्येक मंगलवार को प्रसाद के रूप में पांच किलो देसी चने उबालकर व भोग लगाकर श्रद्धालुओं में बांटे जाते थे। देर रात्रि मंदिर के कपाट बंद होने तक यह प्रसाद वितरित किया जाता था। वर्तमान में पंचमुखी हनुमान को प्रतिदिन मंदिर भवन में बना हुआ राजभोग का प्रसाद भोग के रूप में लगाया जाता है तथा शाम को मंदिर में दूध का भोग लगाया जाता है। मंदिर में प्रात: से ही श्रद्धालुओं का आवागमन शुरू हो जाता है। मंदिर में प्रात: और संध्याकाल के समय आरती उतारी जाती है। आरती के दौरान श्रद्धालु पवनपुत्र हनुमान की भक्ति में खो जाते हैं और काफी देर तक उनके जयकारे लगाते हैं।

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