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    Vrishchika Sankranti 2023: कार्तिक महीने में कब है वृश्चिक संक्रांति? जानें-शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व

    ज्योतिषियों की मानें तो कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि यानी 17 नवंबर को वृश्चिक संक्रांति है। इस दिन पुण्य काल प्रातः काल यानी सुबह 06 बजकर 45 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 06 मिनट तक है। इस अवधि में पूजा जप-तप और दान कर सकते हैं। वहीं महा पुण्य काल सुबह 06 बजकर 45 मिनट से लेकर 08 बजकर 32 मिनट तक है।

    By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 07 Nov 2023 04:16 PM (IST)
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    Vrishchika Sankranti 2023 Date: कार्तिक महीने में कब है वृश्चिक संक्रांति? जानें-शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली | Vrishchika Sankranti 2023 Date: ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है। सूर्य देव एक राशि में 30 दिनों तक रहते हैं। इसके पश्चात, एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश कर जाते हैं। वर्तमान समय में सूर्य देव तुला राशि में विराजमान हैं और आने वाले दिनों में सूर्य तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में प्रवेश कर जाएंगे। सनातन धर्म में संक्रांति तिथि पर स्नान-ध्यान, पूजा, जप-तप और दान किया जाता है। इस तिथि पर श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। साथ ही सूर्य देव की उपासना कर आर्थिक स्थिति के अनुरूप दान करते हैं। आइए, वृश्चिक संक्रांति की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि जानते हैं-

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    वृश्चिक संक्रांति तिथि

    ज्योतिषियों की मानें तो कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि यानी 17 नवंबर को वृश्चिक संक्रांति है। इस दिन पुण्य काल प्रातः काल यानी सुबह 06 बजकर 45 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 06 मिनट तक है। इस अवधि में पूजा, जप-तप और दान कर सकते हैं। वहीं, महा पुण्य काल सुबह 06 बजकर 45 मिनट से लेकर 08 बजकर 32 मिनट तक है। इस दौरान पूजा और दान करने से सूर्य देव की विशेष कृपा प्राप्त होगी।

    सूर्य राशि परिवर्तन

    कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को देर रात 01 बजकर 18 मिनट पर सूर्य देव तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे। इस दौरान 20 नवंबर को अनुराधा और 03 दिसंबर को ज्येष्ठा नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। इसके पश्चात, 16 दिसंबर को धनु राशि में गोचर करेंगे। इसी दिन मूल नक्षत्र में सूर्य देव गोचर करेंगे।

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    पूजा विधि

    वृश्चिक संक्रांति पर ब्रह्म बेला में उठकर घर की साफ-सफाई करें। नित्य कर्मों से निवृत्त होने के बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। अगर सुविधा है, तो निकटतम पवित्र नदी में स्नान करें। इस समय आचमन कर पीले रंग का नवीन वस्त्र धारण करें। अब सूर्य देव को जल का अर्घ्य दें। साथ ही बहती जलधारा में काले तिल प्रवाहित करें। इस समय निम्न मंत्र का उच्चारण करें-

    एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।

    अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर।।

    सूर्य देव की पूजा के समय सूर्य चालीसा और कवच का पाठ करें। अंत में आरती कर भगवान से सुख, शांति और समृद्धि की कामना करें। इसके पश्चात, आर्थिक स्थिति के अनुसार जरूरतमंदों को दान दें।

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'