Saphala Ekadashi Vrat Katha 2024: सफला एकादशी की पूजा में करें इस कथा का पाठ, श्रीहरि की बरसेगी कृपा
हर माह में 2 बार एकादशी व्रत किया जाता है। अगर आप भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो वर्ष 2024 की अंतिम सफला एकादशी के दिन भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करें। इससे कारोबार में वृद्धि होती है। पूजा के दौरान व्रत कथा (Saphala Ekadashi Vrat Katha 2024) का पाठ जरूर करना चाहिए। इससे व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Saphala Ekadashi 2024: प्रत्येक वर्ष पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर सफला एकादशी मनाई जाती है। साथ ही यह तिथि भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए बेहद शुभ मानी जाती है। पंचांग के अनुसार, साल 2024 की आखिरी सफला एकादशी व्रत 26 दिसंबर को किया जाएगा। इस व्रत को विधिपूर्वक करना चाहिए और अगले दिन यानी द्वादशी तिथि में व्रत का पारण करना चाहिए। साथ ही अन्न और धन का दान करना फलदायी माना गया है। ऐ
सा माना जाता है कि सफला एकादशी की पूजा के दौरान व्रत कथा (Saphala Ekadashi ki Kahani) पाठ न करने से जातक व्रत के पूर्ण फल की प्राप्ति से वंचित रहता है। इसलिए दिन व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। मान्यता है कि सच्चे मन से कथा (Saphala Ekadashi katha Path) पढ़ने से सभी पापों से छुटकारा मिलता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसे में आइए इस आर्टिकल में पढ़ते हैं सफला एकादशी की व्रत कथा (Saphala Ekadashi Vrat Katha 2024)।
सफला एकादशी व्रत कथा (Saphala Ekadashi Vrat Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार, एक चंपावती नाम का नगर था। इसमें एक राजा रहता था, जिसका नाम महिष्मान था। उसके 4 पुत्र थे। उसके सबसे बड़े बेटा दुष्ट और पापी था और देवी-देवता की निंदा करता था। एक बार ऐसा समय आया जब लुम्पक को राजा ने नगर से निकाल दिया, जिसके बाद वह जंगल में रहने लगा और मांस का सेवन करने लगा। उसको कुछ दिनों तक कुछ भी खाने को नहीं मिला। ऐसे में वह एकादशी तिथि के दिन एक संत के पास पहुंचा।
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संत ने लुम्पक का आदर-सम्मान किया और उसको खाने के लिए भोजन दिया। संत के इस व्यवहार को देख लुम्पक बेहद प्रसन्न हुआ, जिसके बाद साधु ने उसे अपना शिष्य बनाया। कुछ दिन के बाद लुम्पक के व्यवहार में बदलाव आया और संत ने उसे एकादशी व्रत करने की सलाह दी। लुम्पक ने साधु की आज्ञा का पालन किया। इसके बाद महात्मा ने उसके समक्ष अपना वास्तविक रूप प्रकट किया। महात्मा के स्वरुप में स्वयं लुम्पक के पिता महिष्मान खड़े थे। इसके बाद लुम्पक ने राजा का कार्यभार संभाला। लुम्पक पौष माह के कृष्ण पक्ष की सफला एकादशी का व्रत करने लगा।
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