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    धन प्राप्ति के लिए Devshayani Ekadashi पर करें कनकधारा स्तोत्र का पाठ, सभी कष्टों से भी मिलेगी मुक्ति

    सनातन शास्त्रों में निहित है कि देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi 2025) के दिन से जगत के पालनहार भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम करने चले जाते हैं। इसके बाद कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर जागृत होते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है। चातुर्मास के दौरान शुभ काम नहीं किया जाता है।

    By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 01 Jul 2025 06:30 PM (IST)
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    Devshayani Ekadashi 2025: देवशयनी एकादशी का धार्मिक महत्व

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में देवशयनी एकादशी का खास महत्व है। यह पर्व हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल 06 जुलाई को देवशयनी एकादशी मनाई जाएगी।

    धार्मिक मत है कि देवशयनी एकादशी के दिन लक्ष्मी नारायण जी की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही आय और सौभाग्य में वृद्धि होती है। अगर आप भी आर्थिक तंगी से निजात पाना चाहते हैं, तो देवशयनी एकादशी के दिन पूजा के समय कनकधारा और धनदा स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।

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    कनकधारा स्तोत्र

    अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्तीभृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम्।

    अङ्गीकृताऽखिल-विभूतिरपाङ्गलीलामाङ्गल्यदाऽस्तु मम मङ्गळदेवतायाः॥

    मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेःप्रेमत्रपा-प्रणहितानि गताऽऽगतानि।

    मालादृशोर्मधुकरीव महोत्पले यासा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः॥

    विश्वामरेन्द्रपद-वीभ्रमदानदक्षआनन्द-हेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि।

    ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणर्द्धमिन्दीवरोदर-सहोदरमिन्दिरायाः॥

    आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दआनन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम्।

    आकेकरस्थित-कनीनिकपक्ष्मनेत्रंभूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः॥

    बाह्वन्तरे मधुजितः श्रित कौस्तुभे याहारावलीव हरिनीलमयी विभाति।

    कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला,कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः॥

    कालाम्बुदाळि-ललितोरसि कैटभारे-धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव।

    मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्ति-भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः॥

    प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत् प्रभावान्माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।

    मय्यापतेत्तदिह मन्थर-मीक्षणार्धंमन्दाऽलसञ्च मकरालय-कन्यकायाः॥

    दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारामस्मिन्नकिञ्चन विहङ्गशिशौ विषण्णे।

    दुष्कर्म-घर्ममपनीय चिराय दूरंनारायण-प्रणयिनी नयनाम्बुवाहः॥

    इष्टाविशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र दृष्ट्यात्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।

    दृष्टिः प्रहृष्ट-कमलोदर-दीप्तिरिष्टांपुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः॥

    गीर्देवतेति गरुडध्वजभामिनीतिशाकम्भरीति शशिशेखर-वल्लभेति।

    सृष्टि-स्थिति-प्रलय-केलिषु संस्थितायैतस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै॥

    श्रुत्यै नमोऽस्तु नमस्त्रिभुवनैक-फलप्रसूत्यैरत्यै नमोऽस्तु रमणीय गुणाश्रयायै।

    शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्र निकेतनायैपुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तम-वल्लभायै॥

    नमोऽस्तु नालीक-निभाननायैनमोऽस्तु दुग्धोदधि-जन्मभूत्यै।

    नमोऽस्तु सोमामृत-सोदरायैनमोऽस्तु नारायण-वल्लभायै॥

    नमोऽस्तु हेमाम्बुजपीठिकायैनमोऽस्तु भूमण्डलनायिकायै।

    नमोऽस्तु देवादिदयापरायैनमोऽस्तु शार्ङ्गायुधवल्लभायै॥

    नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायैनमोऽस्तु विष्णोरुरसि स्थितायै।

    नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायैनमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै॥

    नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायैनमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै।

    नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायैनमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै॥

    सम्पत्कराणि सकलेन्द्रिय-नन्दनानिसाम्राज्यदान विभवानि सरोरुहाक्षि।

    त्वद्-वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानिमामेव मातरनिशं कलयन्तु नान्यत्॥

    यत्कटाक्ष-समुपासनाविधिःसेवकस्य सकलार्थसम्पदः।

    सन्तनोति वचनाऽङ्गमानसैःस्त्वां मुरारि-हृदयेश्वरीं भजे॥

    सरसिज-निलये सरोजहस्तेधवळतरांशुक-गन्ध-माल्यशोभे।

    भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञेत्रिभुवन-भूतिकरि प्रसीद मह्यम्॥

    दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्टस्वर्वाहिनीविमलचारु-जलप्लुताङ्गीम्।

    प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेषलोकाधिराजगृहिणीम मृताब्धिपुत्रीम्॥

    कमले कमलाक्षवल्लभेत्वं करुणापूर-तरङ्गितैरपाङ्गैः।

    अवलोकय मामकिञ्चनानांप्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः॥

    स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमीभिरन्वहंत्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।

    गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनोभवन्ति ते भुविबुधभाविताशयाः॥

    धनदा लक्ष्मी स्तोत्र (Dhanadalakshmi Stotram)

    ॥ धनदा उवाच ॥

    देवी देवमुपागम्य नीलकण्ठं मम प्रियम्।

    कृपया पार्वती प्राह शंकरं करुणाकरम्॥1॥

    ॥ देव्युवाच ॥

    ब्रूहि वल्लभ साधूनां दरिद्राणां कुटुम्बिनाम्।

    दरिद्र दलनोपायमंजसैव धनप्रदम्॥

    ॥ शिव उवाच ॥

    पूजयन् पार्वतीवाक्यमिदमाह महेश्वरः।

    उचितं जगदम्बासि तव भूतानुकम्पया॥

    स सीतं सानुजं रामं सांजनेयं सहानुगम्।

    प्रणम्य परमानन्दं वक्ष्येऽहं स्तोत्रमुत्तमम्॥

    धनदं श्रद्धानानां सद्यः सुलभकारकम्।

    योगक्षेमकरं सत्यं सत्यमेव वचो मम॥

    पठंतः पाठयंतोऽपि ब्रह्मणैरास्तिकोत्तमैः।

    धनलाभो भवेदाशु नाशमेति दरिद्रता॥

    भूभवांशभवां भूत्यै भक्तिकल्पलतां शुभाम्।

    प्रार्थयत्तां यथाकामं कामधेनुस्वरूपिणीम्॥

    धनदे धनदे देवि दानशीले दयाकरे।

    त्वं प्रसीद महेशानि! यदर्थं प्रार्थयाम्यहम्॥

    धराऽमरप्रिये पुण्ये धन्ये धनदपूजिते।

    सुधनं र्धामिके देहि यजमानाय सत्वरम्॥

    रम्ये रुद्रप्रिये रूपे रामरूपे रतिप्रिये।

    शिखीसखमनोमूर्त्ते प्रसीद प्रणते मयि॥

    आरक्त-चरणाम्भोजे सिद्धि-सर्वार्थदायिके।

    दिव्याम्बरधरे दिव्ये दिव्यमाल्यानुशोभिते॥

    समस्तगुणसम्पन्ने सर्वलक्षणलक्षिते।

    शरच्चन्द्रमुखे नीले नील नीरज लोचने॥

    चंचरीक चमू चारु श्रीहार कुटिलालके।

    मत्ते भगवती मातः कलकण्ठरवामृते॥

    हासाऽवलोकनैर्दिव्यैर्भक्तचिन्तापहारिके।

    रूप लावण्य तारूण्य कारूण्य गुणभाजने॥

    क्वणत्कंकणमंजीरे लसल्लीलाकराम्बुजे।

    रुद्रप्रकाशिते तत्त्वे धर्माधरे धरालये॥

    प्रयच्छ यजमानाय धनं धर्मेकसाधनम्।

    मातस्त्वं मेऽविलम्बेन दिशस्व जगदम्बिके॥

    कृपया करुरागारे प्रार्थितं कुरु मे शुभे।

    वसुधे वसुधारूपे वसु वासव वन्दिते॥

    धनदे यजमानाय वरदे वरदा भव।

    ब्रह्मण्यैर्ब्राह्मणैः पूज्ये पार्वतीशिवशंकरे॥

    स्तोत्रं दरिद्रताव्याधिशमनं सुधनप्रदम्।

    श्रीकरे शंकरे श्रीदे प्रसीद मयिकिंकरे॥

    पार्वतीशप्रसादेन सुरेश किंकरेरितम्।

    श्रद्धया ये पठिष्यन्ति पाठयिष्यन्ति भक्तितः॥

    सहस्रमयुतं लक्षं धनलाभो भवेद् ध्रुवम्

    धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।

    भवन्तु त्वत्प्रसादान्मे धन-धान्यादिसम्पदः॥

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