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    Rangbhari Ekadashi 2024: रंगभरी एकादशी पर जरूर करें ये आरती, मनचाही मनोकामनाएं होंगी पूरी

    Updated: Wed, 20 Mar 2024 08:00 AM (IST)

    फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रंगभरी एकादशी मनाई जाती है। यह एकादशी व्रत आज यानी 20 मार्च को किया जा रहा है। इस दिन भगवान विष्णु और भगवान महादेव की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि एकादशी पूजा के दौरान श्री हरि और भगवान महादेव की आरती करने से साधक की मनचाही मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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    Rangbhari Ekadashi 2024: रंगभरी एकादशी पर जरूर करें ये आरती, मनचाही मनोकामनाएं होंगी पूरी

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Lord Vishnu Aarti: हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का अधिक महत्व है। यह तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस खास अवसर पर भगवान विष्णु की पूजा-व्रत करने का विधान है। फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रंगभरी एकादशी मनाई जाती है। यह एकादशी व्रत आज यानी 20 मार्च को किया जा रहा है। इस एकादशी को आंवला एकादशी, आमलका एकादशी और आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है। बता दें कि इस दिन भगवान विष्णु और भगवान महादेव की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि रंगभरी एकादशी पूजा के दौरान श्री हरि और भगवान महादेव की आरती करने से साधक की मनचाही मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, तो चलिए आज भगवान विष्णु और भगवान महादेव की आरती से उन्हें प्रसन्न करते हैं, जो इस प्रकार है।

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    भगवान विष्णु जी की आरती

    ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे।

    भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।

    स्वामी दुःख विनसे मन का।

    सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।

    स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।

    तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।

    स्वामी तुम अन्तर्यामी।

    पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।

    स्वामी तुम पालन-कर्ता।

    मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।

    स्वामी सबके प्राणपति।

    किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।

    स्वामी तुम ठाकुर मेरे।

    अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा।

    स्वमी पाप हरो देवा।

    श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, सन्तन की सेवा॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।

    स्वामी जो कोई नर गावे।

    कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    शिव जी की आरती

    जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।

    ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥

    एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।

    हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥

    दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।

    त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥

    अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।

    चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥

    श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।

    सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥

    कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।

    जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥

    ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।

    प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥

    काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।

    नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥

    त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।

    कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥

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    डिसक्लेमर-'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'