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    Parivartini Ekadashi पर इस विधि से करें विष्णु जी की पूजा, यहां पढ़ें शुभ मुहूर्त और मंत्र

    Updated: Wed, 03 Sep 2025 09:13 AM (IST)

    भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini ekadashi 2025) के नाम से जाना जाता है आज 3 अगस्त को मनाई जा रही है। इस दिन भगवान व्रत और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसे में चलिए पढ़ते हैं भगवान विष्णु की पूजा विधि और मंत्र।

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    Parivartini Ekadashi 2025 विष्णु जी की पूजा विधि।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में एकादशी व्रत करने का विशेष महत्व बताया गया है। यह तिथि विष्णु जी के साथ-साथ मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए भी खास है। माना जाता है कि इस दिन व्रत और भगवान विष्णु को पूजा-अर्चना करने से साधक को शुभ फलों की प्राप्ति होती है। कुछ साधक निर्जला व्रत भी करते हैं, जो बहुत ही शुभफल दायक माना गया है।

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    एकादशी व्रत पूजा विधि

    एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें। स्नानादि से निवृत होने के बाद मंदिर की साफ-सफई कर गंगाजल का छिड़काव करें। अब पूजा स्थल पर एक चौकी पर आसन बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति या फोटो स्थापित करें। प्रभु श्रीहरि के समक्ष एक शुद्ध घी या फिर तेल का दीपक जलाएं।

    पूजा में धूप-दीप और कपूर जलाएं। भगवान विष्णु को भोग के रूप में फल, मिठाई, पंचामृत, पंजीरी गुड़ और चने आदि अर्पित करें। प्रभु श्रीहरि के भोग में तुलसी दल जरूर शामिल करें। एकादशी की कथा का पाठ करें और अंत में विष्णु जी की आरती करें। अंत में सभी में प्रसाद बांटें।

    इस समय करें पारण

    यदि संभव हो तो एकादशी की रात में भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करना चाहिए। एकादशी तिथि पर दान-दक्षिणा करने का भी काफी पुण्य माना गया है। अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर प्रात: भगवान विष्णु की पूजा करें और इसके बाद अपने व्रत का पारण करें। पारण के लिए शुभ मुहूर्त कुछ इस प्रकार रहेगा -

    पारण का समय - 4 सितंबर दोपहर 1 बजकर 36 मिनट से शाम 4 बजकर 7 मिनट तक

    विष्णु जी के मंत्र -

    एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु के मंत्रों का जप भी जरूर करना चाहिए। इससे आपको प्रभु श्रीहरि की कृपा की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि का वास बना रहता है।

    1. ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय नमः।

    2. ॐ वासुदेवाय विघ्माहे वैधयाराजाया धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||

    ॐ तत्पुरुषाय विद्‍महे अमृता कलसा हस्थाया धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||

    3. मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।

    मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥

    4. शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्

    विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।

    लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्

    वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।

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