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    Parivartini Ekadashi 2025: कब और कैसे करें परिवर्तिनी एकादशी व्रत का पारण? एक क्लिक में देखें सभी जानकारी

    Updated: Tue, 02 Sep 2025 01:26 PM (IST)

    वैदिक पंचांग के अनुसार 03 सितंबर को परिवर्तिनी एकादशी व्रत किया जाएगा। इस व्रत का पारण अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर किया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है और साधक पर भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है। ऐसे में चलिए जानते हैं परिवर्तिनी एकादशी पारण विधि (Parivartini Ekadashi 2025 Paran Vidhi) के बारे में।

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    Parivartini Ekadashi Vrat Paran Time: परिवर्तिनी एकादशी 2025 शुभ मुहूर्त

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi 2025) के नाम से जाना जाता है। इस व्रत का महत्व विष्णु पुराण में किया गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, परिवर्तिनी एकादशी व्रत को विधिपूर्वक करने से साधक को जीवन में सभी सुखों की प्राप्ति होती है और भगवान विष्णु की कृपा से जीवन खुशहाल होता है।

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    ऐसा माना जाता है कि परिवर्तिनी एकादशी व्रत का पारण न करने से साधक को व्रत का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है। इसलिए एकादशी के दिन अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर व्रत का पारण करें। इसके बाद श्रद्धा अनुसार मंदिर या गरीब लोगों में दान करें। धार्मिक मान्यता के अनुसार, शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण करने से साधक को शुभ फल की प्राप्ति होती है।

    परिवर्तिनी एकादशी 2025 डेट और शुभ मुहूर्त (Parivartini Ekadashi 2025 and Shubh Muhurat)

    परिवर्तिनी एकादशी तिथि की शुरुआत- 03 सितंबर को देर रात 03 बजकर 53 मिनट पर

    परिवर्तिनी एकादशी तिथि का समापन- 04 सितंबर को सुबह 04 बजकर 21 मिनट पर

    परिवर्तिनी एकादशी 2025 व्रत पारण टाइम (Parivartini Ekadashi 2025 Vrat Paran Time)

    एकादशी व्रत का पारण अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर किया जाता है। इस बार परिवर्तिनी एकादशी व्रत का पारण 04 सितंबर को किया जाएगा। इस दिन व्रत का पारण करने का समय दोपहर 01 बजकर 36 मिनट से लेकर 04 बजकर 07 मिनट तक है। इस दौरान किसी भी समय व्रत का पारण किया जा सकता है।

    कैसे करें पारण ( Parivartini Ekadashi Vrat Parana Vidhi)

    द्वादशी के दिन सुबह स्नान करने के बाद पीले रंग के कपड़े धारण करें। इसके बाद मंदिर की साफ-सफाई करें। सूर्य देव को अर्घ्य दें। देसी घी का दीपक जलाकर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की आरती करें। मंत्रों का जप करें। विष्णु चालीसा का पाठ करें। प्रभु को सात्विक भोजन का भोग लगाएं। भोग में तुलसी के पत्ते शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि भोग थाली में तुलसी के पत्ते शामिल न करने से प्रभु भोग को स्वीकार नहीं करते हैं। इसके बाद लोगों में प्रसाद का वितरण करें और स्वयं भी ग्रहण करें।

    करें इन मंत्रों का जप

    1. ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु ।

    यद्दीदयच्दवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्”।।

    2. वृंदा,वृन्दावनी,विश्वपुजिता,विश्वपावनी |

    पुष्पसारा,नंदिनी च तुलसी,कृष्णजीवनी ।।

    एत नाम अष्टकं चैव स्त्रोत्र नामार्थ संयुतम |

    य:पठेत तां सम्पूज्य सोभवमेघ फलं लभेत।।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।