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    Ekadashi vrat: साल की 24 एकादशी में से सबसे खास हैं ये 4 एकादशी, जानिए कारण

    हिंदू शास्त्रों में एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है। इस तिथि पर साधक व्रत रखकर और भगवान विष्णु जी की पूजा-अर्चना कर शुभ फलों की प्राप्ति कर सकते हैं। माना जाता है कि इस व्रत को करने वाले साधक को जीवन में कई तरह के अद्भुत लाभ मिल सकते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि साल की कौन-सी एकादशी सबसे अधिक महत्व रखती हैं।

    By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Sat, 09 Mar 2024 12:35 PM (IST)
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    Ekadashi vrat साल की 24 एकादशी में से सबसे खास एकादशी कौन-सी है?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Ekadashi vrat Significance: सनातन धर्म में भगवान विष्णु जी को समर्पित एकादशी तिथि विशेष महत्व रखती है। एक माह में दो बार एकादशी आती है, एक कृष्ण पक्ष की एकादशी और दूसरी शुक्ल पक्ष की एकादशी। इस तरह साल में कुल 24 एकादशी मनाई जाती हैं। लेकिन 24 एकादशियों में से कुछ एकादशी ऐसी हैं, जिन्हें सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं हिंदू धर्म में किन एकादशी को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है और क्यों?

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    निर्जला एकादशी

    हिंदू शास्त्रों में निर्जला एकादशी का सबसे अधिक महत्व माना गया है। माना जाता है कि इस एक व्रत से ही पूरे साल की एकादशी का फल प्राप्त किया जा सकता है। इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में किया जाता है। साथ ही यह भी माना जाता है कि इस एकादशी का व्रत करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।

    आमलकी एकादशी

    फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को आमलकी एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु के साथ-साथ विशेष तौर से आंवले के पौधे का पूजन किया जाता है, इसलिए इसे आंवला एकादशी भी कहते हैं। साथ ही इसे रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है। माना जाता है कि इस आमलकी एकादशी का व्रत करने से साधक को 100 गाय दान करने के बराबर का पुण्य मिलता है। यही कारण है कि इस एकादशी को इतना महत्वपूर्ण माना जाता है।

    पापमोचनी एकादशी

    पापमोचनी एकादशी, चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में मनाई जाती है। 24 एकादशी में से इस एकादशी का विशेष महत्व है। जैसा की नाम से ही स्पष्ट है, इस एकादशी का व्रत करने से साधक के सभी पाप दूर हो सकते हैं। साथ ही यह भी माना जाता है कि इस विशेष दिन पर भगवान विष्णु की आराधना करने से जाने-अनजाने में की गई गलतियों से मुक्ति मिल जाती है और साधक के सभी दुख-दर्द दूर हो जाते हैं।

    देवउठनी एकादशी

    कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। माना जाता है कि भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी से योग निद्रा में चले जाते हैं और 04 महीने बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर योग निद्रा से जागते हैं। इसलिए इसे देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। 04 महीनों के बाद इस तिथि पर पुनः शुभ व मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। देवउठनी या देव जागरण एकादशी पर भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप की पूजा की जाती है।

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'