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    ओवर न्यूट्रिशन भी है नुकसानदेह

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    Updated: Tue, 26 Jun 2012 02:42 PM (IST)

    अकसर लोग कुपोषण को खानपान में पौष्टिक तत्वों की कमी से जोड़कर देखते हैं, पर वास्तव में ऐसा नहीं है। कई बार स्वास्थ्यवर्धक चीजों की अधिकता भी हमारी सेहत के लिए नुकसानदेह साबित होती है, पर कैसे? कुछ विशेषज्ञों के साथ हम यही जानने की कोशिश कर रहे हैं यहां।

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    अति सर्वत्र वर्जयेत संस्कृत की इस सूक्ति में बिलकुल सही कहा गया है कि किसी भी चीज की अति हमेशा बुरी होती है। आजकल लोग सेहत के प्रति अति जागरूक हैं। इसलिए खानपान का विशेष ध्यान रखते हैं। ऐसे में कई बार उन्हें खुद अंदाजा नहीं होता और वे स्वास्थ्यवर्धक चीजों का सेवन अत्यधिक मात्रा में करने लगते हैं, जो उनकी सेहत के लिए नुकसानदेह साबित होता है। यहां दी जा रही है एक चेकलिस्ट। इसके माध्यम से आप यह जान सकते हैं कि आपको अपने खानपान में किन चीजों का इस्तेमाल कितनी मात्रा में करना चाहिए :

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    फाइबर

    इसमें कोई संदेह नहीं है कि फलों, सब्जियों और मोटे अनाजों में पाया जाने वाला फाइबर हमारे पाचन तंत्र को दुरुस्त रखते हुए कब्ज की समस्या से बचाव करता है, लेकिन अत्यधिक मात्रा में फाइबर युक्त चीजों के सेवन से पेट के निचले हिस्से में सूजन, दर्द और गैस्ट्रिक जैसी समस्याओं का सामना करना पड सकता है। अगर लंबे समय तक लगातार फाइबर का सेवन किया जाए तो इससे हमारे शरीर में आयरन, जिंक, कैल्शियम, मैग्नीशियम और फास्फोरस जैसे आवश्यक विटमिंस और मिनरल्स के अवशोषण की क्षमता कम हो जाती है। इनकी कमी की वजह से आगे चलकर कई तरह की गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं परेशान करने लगती हैं। डाइटीशियन डॉ. दीपाली खन्ना के अनुसार, मिसाल के तौर पर पपीता जैसे फाइबरयुक्त फल में पपीन नामक आवश्यक एंजाइम पाया जाता है, जो पाचन तंत्र को दुरुस्त रखते हुए कब्ज को दूर करता है, लेकिन इसकी अधिकता की वजह से लूज मोशन, सिर में दर्द, नॉजिया और उल्टियां आने जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

    किन्हें हो सकता है खतरा?

    ऐसे शाकाहारी लोग जो अति उत्साह में आकर अधिक मात्रा में हरी सब्जियों और फलों के सेवन के अलावा अतिरिक्त फाइबर सप्लीमेंट का सेवन करते हैं।

    कितनी है जरूरत : हमें प्रतिदिन 25 से 35 ग्राम फाइबर की जरूरत होती है। अगर प्रतिदिन अलग-अलग तरह की सब्जियों और फलों के अलावा चोकरयुक्त आटे से बनी रोटियों या दलिया का सेवन किया जाए तो शरीर को पर्याप्त फाइबर मिल जाता है।

    प्रोटीन

    टूटी-फूटी कोशिकाओं की मरम्मत और मांसपेशियों की मजबूती के लिए शरीर को प्रोटीन की जरूरत होती है, लेकिन अगर अत्यधिक मात्रा में इसका सेवन किया जाए तो यह सेहत के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। यह कार्बोहाइड्रेट या फैट की तरह शरीर में स्टोर नहीं हो पाता। अगर शरीर में इसकी मात्रा ज्यादा हो तो इसमें मौजूद एमिनो एसिड प्रोटीन को शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया को तेज कर देता है। इससे किडनी पर ज्यादा दबाव पडता है और उसकी कार्यक्षमता पर भी बुरा असर पडता है। अगर लंबे अरसे तक प्रोटीनयुक्त चीजों का सेवन अधिक मात्रा में किया जाए तो इससे शरीर में मेटाबॉलिज्म संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। इसके अलावा राजमा, सोयाबीन, लोबिया और पालक जैसी प्रोटीनयुक्त चीजों में प्यूरिन नामक तत्व पाया जाता है और इसकी अधिकता की वजह से ही यूरिक एसिड की समस्या होती है। प्रोटीन को पचाने के लिए हमारे डाइजेस्टिव सिस्टम को अतिरिक्त मेहनत करनी पडती है। इसीलिए दाल, पनीर या नॉनवेज के अधिक सेवन से लूज मोशन या उल्टियां आने जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं।

    किन्हें हो सकता है खतरा?

    अधिक मात्रा में नॉनवेज (खास तौर पर रेड मीट) और प्रोटीन सप्लीमेंट्स का सेवन करने वाले लोगों को ऐसी समस्याएं हो सकती हैं।

    कितनी है जरूरत : किसी भी सामान्य स्वस्थ व्यक्ति को उसके शरीर के वजन के प्रति किलोग्राम पर 1 ग्राम प्रोटीन की जरूरत होती है। मिसाल के तौर पर अगर किसी व्यक्ति का वजन 60 किलोग्राम है तो उसे प्रतिदिन 60 ग्राम प्रोटीन की जरूरत होती है। आमतौर पर दो उबले अंडे, एक कटोरी दाल और एक कटोरी पनीर से हमारे शरीर को इतना प्रोटीन मिल जाता है।

    पानी

    हम बचपन से यही सुनते आ रहे हैं कि अच्छी सेहत के लिए हमें खूब पानी पीना चाहिए। पर अब यह धारणा पुरानी पड चुकी है। पेंसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के किडनी एक्सपर्ट डॉ.स्टेनले गोल्डफैर्ब द्वारा किए गए एक शोध के मुताबिक अगर इंसान जरूरत से ज्यादा पानी पीता है तो उसकी किडनी और दिल पर अत्यधिक दबाव पडता है। इससे जरूरी डाइजेस्टिव एंजाइम्स काम करना बंद कर देते हैं और पाचन संबंधी समस्याएं भी परेशान करने लगती हैं। इस संबंध में वेलनेस एक्सपर्ट डॉ. इशी खोसला कहती हैं, दरअसल यह सलाह उस जमाने में दी जाती थी, जब लोग सेहत के प्रति जागरूक नहीं थे। जूस, शेक, लस्सी, छाछ और ग्रीन टी जैसे तरल पदार्थो का सेवन नहीं करते थे, पर बदलते वक्त के साथ ऐसी चीजें लोगों के खानपान का जरूरी हिस्सा बन चुकी हैं। इनके जरिये शरीर को पर्याप्त मात्रा में पानी मिल जाता है और हमें अतिरिक्त प्रयास करके पानी पीने की जरूरत नहीं होती।

    किन्हें हो सकता है खतरा?

    आमतौर पर खिलाडी और एथलीट बहुत ज्यादा पानी पीते हैं। इसलिए उन्हें पानी की अधिकता से होने वाली स्वास्थ्य समस्याएं परेशान कर सकती हैं।

    कितनी है जरूरत : सामान्यत: किसी भी स्वस्थ व्यक्ति के लिए प्रतिदिन 8 से 10 ग्लास पानी पर्याप्त होता है। वैसे, हमारा शरीर अपने लिए पानी की जरूरत प्यास के जरिये खुद बताता है। इसलिए जितनी प्यास हो उतना ही पानी पीएं।

    ओमेगा-3 फैटी एसिड

    ओमेगा-3 फैटी एसिड हमारे मस्तिष्क और हृदय के लिए बहुत जरूरी है। यह हृदय रोग और अल्जाइमर्स जैसी बीमारियों से बचाव करता है। मछली इसका प्रमुख स्रोत है। अत: इसकी प्राप्ति के लिए कुछ लोग अधिक मात्रा में मछली का सेवन करते हैं और फिश ऑयल से बने सप्लीमेंट्स भी लेते हैं, पर उन्हें यह नहीं मालूम होता कि अगर शरीर में ओमेगा-3 फैटी एसिड की मात्रा ज्यादा हो जाए तो इससे हमारा इम्यून सिस्टम प्रभावित होता है और इन्फेक्शन से लडने की क्षमता कम हो जाती है। इससे शरीर में नुकसानदेह कोलेस्ट्रॉल एलडीएल की मात्रा भी बढ सकती है।

    किन्हें हो सकता है खतरा?

    पानी में मौजूद मरकरी की वजह से गर्भवती स्त्रियों और छोटे बच्चों के लिए मछली का अधिक सेवन नुकसानदेह साबित हो सकता है। इसस उन्हें पाचन संबंधी गडबडियां और पेट में संक्रमण होने का डर रहता है। मछली का अत्यधिक सेवन ब्लडप्रेशर भी बढा सकता है।

    कितनी है जरूरत : समुद्र के बजाय नदी के मीठे पानी की मछलियों का सेवन करना चाहिए, क्योंकि इसमें नुकसानदेह मरकरी की मात्रा नहीं के बराबर होती है। प्रतिदिन 20 से 25 ग्राम (एक से दो पीस) मछली का सेवन पर्याप्त होता है।

    मल्टी विटमिन गोलियां

    आजकल लोगों में बिना सोचे-समझे ढेर सारी मल्टी विटमिन गोलियों के सेवन का चलन बढता जा रहा है। फ्रांस के नैंसी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने 8,000 लोगों पर पूरे छह साल तक अध्ययन किया तो यह पाया कि अगर ज्यादा लंबे समय तक इन गोलियों का सेवन किया जाए तो इससे कैंसर और हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियंा भी हो सकती हैं। ज्यादा लंबे समय तक कैल्शियम के सप्लीमेंट का सेवन यूरिनरी ट्रैक या गॉल ब्लैडर में स्टोन का भी कारण बन सकता है। दिल्ली स्थित आर्यन न्यूरो एंड हार्ट सेंटर के जनरल फिजिशियन डॉ. दीपक अरोडा के अनुसार, अगर स्वस्थ और संतुलित खानपान अपनाया जाए तो इससे शरीर को सभी आवश्यक विटमिन और मिनरल्स पर्याप्त मात्रा में मिल जाते हैं और अलग से सप्लीमेंट लेने की जरूरत नहीं होती।

    किन्हें हो सकता है खतरा?

    सेल्फ मेडिकेशन की आदत से ग्रस्त लोगों को इन दवाओं के दुष्प्रभाव का सबसे ज्यादा खतरा रहता है।

    कितनी है जरूरत : बिना डॉक्टर की सलाह के किसी विटमिन का सेवन न करें। जिस किसी विटमिन का सेवन किया जा रहा है, छह माह के अंतराल पर उसकी जांच भी बहुत जरूरी है, ताकि इस बात की जानकारी मिल जाए कि वास्तव में आपको उसकी जरूरत है या नहीं?

    क्या है ऑर्थोरेक्सिया नर्वोसा आपने अपने आसपास कुछ ऐसे लोगों को जरूर देखा होगा, जो हमेशा खाने-पीने की चीजों में पाए जाने वाले पोषक तत्वों के बारे में बातचीत करते हैं। ये हमेशा प्रकृति के खजाने से पौष्टिकता लूटने की तलाश में जुटे रहते हैं और अति उत्साह में आकर बिना सोचे-समझे इन चीजों का सेवन भरपूर मात्रा में करने लगते हैं। इनके मेन्यू में फलों, सब्जियों और अन्य खाद्य पदार्थो की विविधता बहुत ज्यादा देखने को मिलती है, पर ऐसे लोगों के खानपान में संतुलन नहीं होता। आहार विशेषज्ञों के अनुसार यह एक तरह की मनोवैज्ञानिक समस्या है, जिसे आर्थोरेक्सिया नर्वोसा कहा जाता है। अध्ययनों से यह साबित होता है कि 30 वर्ष से अधिक उम्र वाले उच्च मध्यवर्गीय और शिक्षित लोगों में यह समस्या ज्यादा देखने को मिलती है। इस संबंध में डाइटीशियन शेरॉन अरोडा कहती हैं, अगर व्यक्ति सचेत तरीके से अपने खानपान की आदतों पर गौर करते हुए उसमें सुधार लाने की कोशिश करे तो यह समस्या आसानी से दूर हो सकती है।

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