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ना कहना भी है ज़रूरी

कई परिस्थितियों में ना कहने से अनचाहे तनाव या दबाव से बचा जा सकता है, जबकि हर काम के लिए हां कह देने से मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। इंकार कई बार दुविधा और अपराध-बोध में भी डाल देता है, इसलिए ना कहने की कला सीखने की ज़्ारूरत है। कैसे

By Edited By: Published: Sat, 28 Nov 2015 04:41 PM (IST)Updated: Sat, 28 Nov 2015 04:41 PM (IST)
ना कहना भी है ज़रूरी

कई परिस्थितियों में ना कहने से अनचाहे तनाव या दबाव से बचा जा सकता है, जबकि हर काम के लिए हां कह देने से मुश्किलें खडी हो सकती हैं। इंकार कई बार दुविधा और अपराध-बोध में भी डाल देता है, इसलिए ना कहने की कला सीखने की ज्ारूरत है। कैसे कहें ना, जानें इस लेख में।

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आज तुम फिर लेट हो गई बेटा? मां ने प्यार से पूछा तो श्रेया बिना कहे रह नहीं पाई। क्या करूं मां 'ना न कहने की आदत कई बार मेरे जी का जंजाल बन जाती है। श्रेया का यह कहना था कि दोनों हंस पडे। चलो यहां तो श्रेया की मां का प्यार भरा बर्ताव उसकी परेशानी को मुस्कुराहट में बदल गया, पर हर समय ऐसा नहीं होता। हम कई बार ना कहने को लेकर भावनात्मक दबाव महसूस करते हैं। जैसे, ना कहने से दूसरा व्यक्ति निराश हो जाएगा....इससे वह आहत तो नहीं महसूस करेगा? कहीं ऐसा करके हम उसकी उपेक्षा तो नहीं कर रहे हैं?

ना कहने को हम स्वार्थ से भी जोड देते हैं और ऐसा करके अपराध-बोध से ग्रस्त हो जाते हैं। ना कहना इतना भी बुरा नहीं है और कई बार ना कहने से मुश्किलों से उबरा भी जा सकता है। ना कहने का सही तरीका जानने से दुविधा कम हो सकती है। ना को हां कहना कैसे सीखें, जानें यहां।

ऊर्जा को बचाए रखें

कई बार हम दूसरों को ख्ाुश करने के लिए उनकी बात के लिए हामी भर देते हैं और बाद में सोचते हैं कि ना कह देते तो ज्य़ादा अच्छा था। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम ना को नकारात्मक भाव से जोडते हैं। ऐसा करके हम अपना समय ख्ाुद ही बर्बाद करते हैं। उसका सबसे बडा कारण यह है कि हमें ना कहने की कला का ज्ञान नहीं होता। अपने समय, निजता और ऊर्जा को बचाने का आसान व सीधा तरीका है ना कहना। सही वक्त और सही बॉडी लैंग्वेज के साथ ना कहने का हुनर न सिर्फ समय की बचत करने में मदद करेगा बल्कि दूसरों से आपके रिश्ते भी अच्छे बने रहेंगे।

किस बात का रखें ध्यान

'न को किस जगह कैसे फिट करना है, यह आप पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए कुछ लिखना है तो फेसबुक या व्हॉट्सऐप से ध्यान हटाना, भोजन को मनोयोग से खाने के लिए फोन से दूर रहना, वजन कम करना है तो चीनी को 'न कहना आदि। 'न को कैसे शब्द और आवाज दी जाए, इस पर सोचना भी जरूरी है। कुछ चीजें जो हमारी सेहत, काम और परिवार से जुडी हैं, उन बातों पर विचार करें और अपनी प्राथमिकताएं चुनें। कोई अन्य व्यक्ति आपकी प्राथमिकताएं तय नहीं कर सकता।

ख्ाुद पर विश्वास करना

अकसर हम दोस्ती, रिश्तेदारी, आत्मविश्वास की कमी या दुविधा के कारण दूसरों की बातें मान लेते हैं। जैसे, 'पार्टी में दोस्तों के कहने पर मैंने एक पैग ले लिया..., 'ऑफिस के लोग बाहर खाने जा रहे थे तो मैं चली गई और अब बजट गडबड हो गया....। इन सब परिस्थितियों में दूसरों की बात मानी। हालांकि चाहते तो शालीनता से मना भी कर सकते थे। 'न कहने का मतलब है, अपने लिए खडे होना। सेहत को ठीक रखना है तो चॉकलेट-केक से मना करना ही होगा, कार ड्राइव करके घर तक सुरक्षित पहुंचना है तो पार्टी में हार्ड ड्रिंक लेने से इंकार करना होगा। यानी कुछ चीजों को 'न कहना दृढ इच्छाशक्ति विकसित करना है। ऐसा करके आप अनचाही स्थितियों में फंसने से बचते हैं, आत्मविश्वास बढता है और हर बात के लिए दूसरों पर ज्िाम्मेदारी डाल देने जैसी स्थिति से भी बच जाते हैं।

न सुनने को रहें तैयार

अपनी सुविधा और सजगता के लिए तो सब तैयार रहते हैं, लेकिन जब बात किसी दूसरे की हो तो ख्ाामी निकालने से बाज नहीं आते। जब आप 'न कहने का अभ्यास करते हैं तो आपको अपने करीबियों को भी इस बात की स्वतंत्रता देनी होती है। दूसरे की 'न को भी सहजता से स्वीकारना सीखें, ताकि दूसरों के प्रति सहानुभूति, करुणा और समझ विकसित कर सकेें। जब भी किसी से 'न सुनें तो उस पर विश्वास करें कि इस इंकार में कहीं न कहीं उसका हित छिपा हुआ है। ख्ाुद न कहने पर जो लाभ आपको मिलता है, वही सुख दूसरों के मुंह से न सुनने पर भी मिलना चाहिए। दूसरे की भावनाओं को समझने की क्षमता भी तभी बढती है, जब न कहना सीखते हैं।

मतलब को समझें

कभी-कभी कुछ बातें कही किसी और अर्थ में जाती हैं और सामने वाला उसे किसी और संदर्भ में ले जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमें अपनी बात को सही ढंग से समझाना नहीं आता। अगर हमारे पास सीमित समय है तो किसी को हां कह देने से ही उसका काम समय पर नहीं कर पाएंगे, यानी परिणाम तक पहुंचते-पहुंचते वह काम ना में ही बदल जाएगा, क्योंकि समय की कमी उसे समय पर पूरा करने नहीं देगी। हां कहते हुए अपनी परिस्थितियों को अच्छी तरह समझना और दूसरे के समय की कद्र करना भी ज्ारूरी है। इसमें किसी का अनादर करना या किसी को दुखी करने जैसा भाव नहीं होता। समय सीमित होता है तो प्राथमिकता तय करनी होती है। ऐसे में हर काम को हां नहीं कहा जा सकता। इसलिए ना कहने की कला सीखनी होती है। कम समय में सधे हुए लफ्जों में अपनी बात कहने का हुनर कई विषम परिस्थितियों से निकालने का काम करेगा।

अवसर को पहचानें

कई बार 'हां बोलना 'आ बैल मुझे मार जैसी कहावत को चरितार्थ करता है। ऐसा लगता है कि आफत मोल ले ली है और काम के बोझ तले दब गए हैं। 'हां बोलना, बेचैनी, ऊब और ग्ाुस्से का कारण बन जाता है, जबकि 'न कहना बेचैनी और अपराध बोध से मुक्त रखता है। दूसरी बेहतर चीजों के लिए समय निकाला जा सकता है। जरूरी नहीं है कि हम किसी को हां या ना तुरंत कह दें। कई बार इसके लिए थोडा समय मांगना भी दुविधाओं से उबारने में सहायक होता है। यानी धैर्य रखें, शांति बरतें और सामने वाले को थोडा इंतजार करने के लिए कहें। इस बीच जो समय मिले, उसमें अच्छी तरह सोच-समझ कर जवाब दें। धीरे-धीरे 'न कहना सीख जाएंगे। दिल-दिमाग को ना कहने के लिए तैयार रखें। अपनी सोच और प्राथमिकताएं स्पष्ट रखेंगे तो निर्णय लेना भी आसान होगा। इसलिए तय करें कि कौन सा काम आपके लिए महत्वपूर्ण है और जिस काम के लिए हां या ना कहना है, वह कितना महत्वपूर्ण है और उसे करना क्यों ज्ारूरी है।

समझाएं 'न का सही मतलब

आप 'न कह दें और 'न शब्द का इस्तेमाल भी न करना पडे, यही तो कला है 'न कहने की। अब इसे किस तरह बेहद सफाई के साथ इस्तेमाल किया जाए, आइए जानें-

* अगर कोई व्यक्ति आपके 'न कहने के बाद भी लगातार आग्रह कर रहा है तो आप उसे कह दें कि आपकी दिनचर्या पूरी तरह व्यस्त है, फिर भी अगर आपके पास उसका काम करने का समय निकल आया तो आपको बेहद ख्ाुशी होगी।

* हर किसी के साथ ईमानदार रहें। अगर आपके पास समय नहीं है तो दूसरे व्यक्ति को साफ-साफ बता दें। इस तरह आपके रिश्ते भी प्रभावित नहीं होंगे और आप झूठ बोलने से भी बच जाएंगे। रिश्ते का मान रखने के लिए अगर किसी काम के लिए आपने हां कह दिया और उसे समय पर न कर सके तो इससे रिश्ते बिगडेंगे ही।

*आपको 'न कहना है, इसका अर्थ यह नहीं कि आप उदासी, अपराध-बोध या नकारात्मक ऊर्जा के साथ बोलें। ख्ाुश होकर बात करें। दूसरे का आभार व्यक्त करें और उसके बाद अपनी असमर्थता ज्ााहिर कर दें।

*अगर लगता है कि निजी समय की जरूरत है, आपको कुछ आवश्यक काम करना है तो अपनी बात जरूर रखें। वजह बताने का अर्थ है कि आप दूसरों के विश्वास को तोडऩा नहीं चाहते।

*यदि जरूरत महसूस होती है तो सामने वाले व्यक्ति को एक विकल्प भी सुझाएं, ख्ाासतौर पर यदि आपकी 'न आपकी व्यस्तता व निजी कामों के कारण है और इससे काम पर फर्क पड सकता है, तो ऐसा जरूर करें। वंदना यादव

(क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. जयंती दत्ता से बातचीत पर आधारित)


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