बहारें फिर भी आएंगी
अटूट विश्वास और समर्पण का ही दूसरा नाम है शादी, लेकिन नियति पर किसी का वश नहीं होता। कई बार बीच राह में ही हमसफर का साथ छूट जाता है। ऐसे हालात में उदास होने के बजाय हमें जि़ंदगी को नए सिरे से संवारने की कोशिश करनी चाहिए।
अटूट विश्वास और समर्पण का ही दूसरा नाम है शादी, लेकिन नियति पर किसी का वश नहीं होता। कई बार बीच राह में ही हमसफर का साथ छूट जाता है। ऐसे हालात में उदास होने के बजाय हमें जिंदगी को नए सिरे से संवारने की कोशिश करनी चाहिए।
शादी शब्द के साथ जुडी है जीवन भर एक-दूसरे का साथ निभाने की सुंदर भावना। इस रिश्ते में बंधते वक्त युवा जोडों की आंखों में कई इंद्रधनुषी सपने बसे होते हैं, पर कई बार समय के साथ सपनों के ये रंग धुंधलाने लगते हैं। लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं होता कि वे कब और कैसे अपने साथी से दूर होते चले गए। कई बार हालात इतने बिगड जाते हैं कि एक ही छत के नीचे साथ रहने वाले दो इंसान एक-दूसरे के लिए बेगाने बन जाते हैं और नौबत तलाक तक पहुंच जाती है। अपने हमसफर से बिछडऩे या दूर होने की कई वजहें हो सकती हैं, पर कोई भी रिश्ता टूटने से जिंदगी थम नहीं जाती। अगर कभी ऐसे हालात पैदा हो भी जाएं तो इंसान को उदास और तनहा जिंदगी गुजारने के बजाय पुनर्विवाह के विकल्प पर विचार ज्ारूर करना चाहिए।
साथ छूटना हमसफर का
किसी भी स्त्री के लिए सबसे दुखद स्थिति तब होती है जब शादी के कुछ वर्षों बाद ही उसके पति का निधन हो जाए। ऐसी अवसादपूर्ण मन:स्थिति से बाहर निकलने के लिए एक-दो साल का समय जरूर लेना चाहिए। फिर उसके बाद आपको नए सिरे से अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिए। अगर पहली शादी से बच्चे न हों तो ऐसी स्थिति में दूसरी शादी और भी जरूरी हो जाती है, क्योंकि बच्चे बिना अकेले जीवन बिताने की कल्पना भी भयावह लगती है, लेकिन इस दिशा में बहुत सोच-समझकर कदम उठाना चाहिए। यदि आप किसी विधुर व्यक्ति का चुनाव करती हैं तो यह आपके लिए अच्छा रहेगा क्योंकि यहां दोनों की जीवन-स्थितियां लगभग एक सी होंगी और दोनों ही एक-दूसरे के दुख-दर्द को ज्य़ादा अच्छी तरह समझ पाएंगे, लेकिन अगर आप किसी बच्चे वाले विधुर या तलाकशुदा व्यक्ति से शादी का निर्णय लेने जा रही हैं तो पहले यह सुनिश्चित कर लें कि आप उन बच्चों की जिम्मेदारियां अच्छी तरह उठा पाएंगी या नहीं? ऐसी शादी के लिए हां कहने से पहले उन बच्चों से अपना मेल-जोल बढाने की कोशिश करें, जिनके साथ आपको आगे जीवन बिताना है। आपकी इस कोशिश से शादी के बाद एडजस्टमेंट में कोई परेशानी नहीं होगी।
बच्चे की जिम्मेदारी है अहम
अगर बच्चे के जन्म के बाद पति का निधन हो जाए तो यह स्थिति किसी भी स्त्री के लिए दुखद होने के साथ बहुत मुश्किल भी है। जब बच्चा छोटा हो तो ऐसी स्थिति में किसी भी स्त्री को पुनर्विवाह के लिए जरूर सोचना चाहिए। इससे केवल आपका ही नहीं, बल्कि बच्चे के जीवन का सूनापन भी दूर हो सकता है। हालांकि इस संबंध में कोई भी निर्णय लेने से पहले आपको भविष्य की कुछ स्थितियों पर विचार करना होगा। मसलन, जिस व्यक्ति से विवाह करने जा रही हैं, कहीं पहले से उसके भी बच्चे तो नहीं हैं? अगर हैं तो आप दोनों को मिलकर यह देखना होगा कि क्या उन बच्चों का आपस में एडजस्टमेंट हो पाएगा? क्या भावी पति आपके बच्चों को इतना प्यार और संरक्षण दे पाएंगे कि उन्हें भविष्य में पिता की कमी महसूस न हो? शादी के बाद अगर पति आपसे बच्चे की इच्छा रखें तो ऐसे में आपका निर्णय क्या होगा, क्या आप अपने सभी बच्चों के साथ समान रूप से न्याय कर पाएंगी? पुनर्विवाह से पहले आपके पास ऐसे सभी सवालों के स्पष्ट जवाब जरूर होने चाहिए। अपने और बच्चे के भविष्य के प्रति पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद ही दूसरी शादी का निर्णय लें।
तलाक के बाद जिंदगी
लोगों की सवालिया निगाहें हमेशा तलाकशुदा स्त्री का पीछा करती रहती हैं और तलाक के बाद किसी भी स्त्री के लिए अकेले जीवन बिताना काफी मुश्किल होता है। अगर आपके साथ भी कुछ ऐसा हो चुका है तो आपको नए सिरे से दोबारा जिंदगी शुरू करने के बारे में जरूर सोचना चाहिए, लेकिन अपने लिए दोबारा लाइफ पार्टनर ढूंढते समय उन छोटी-छोटी बातों का ध्यान जरूर रखें, जिनकी वजह से आपकी शादी टूटी थी। कोशिश यही होनी चाहिए कि आपसे दोबारा वही गलती न हो, लेकिन पिछली शादी के टूटने को लेकर अपने मन में अपराध-बोध न रखें, क्योंकि इसका आपकी नई जिंदगी पर बुरा प्रभाव पडेगा। साथ ही जिस व्यक्ति से आप शादी करने जा रही हैं, उसके बारे में अच्छी तरह छानबीन कर लें। अगर आपको ऐसा लगता है कि वह व्यक्ति आपसे अपना अतीत छिपा रहा है तो आपको ऐसे रिश्ते के लिए हां नहीं करनी चाहिए। इसी तरह आप भी अपने भावी जीवनसाथी से कुछ भी न छिपाएं, बल्कि सच्चाई के साथ नए जीवन की शुरुआत करें।
पुरुष और पुनर्विवाह
कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि पुरुषों के लिए पुनर्विवाह कोई समस्या नहीं है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। तलाकशुदा लडकों के लिए दूसरा विवाह बेहद पेंचीदगी भरा होता है, क्योंकि अकसर लडकियों के मन में यह संशय रहता है कि कहीं लडका तलाक का असली कारण तो नहीं छिपा रहा या कहीं उसकी पहली पत्नी ने आत्महत्या तो नहीं की थी? शायद लडके में ही कोई कमी रही होगी, तभी तो तलाक हुआ होगा आदि। इसलिए अगर आप तलाक के बाद दोबारा शादी करना चाहते हैं तो अपनी भावी लाइफ पार्टनर से कुछ भी छिपाएं नहीं और अपनी सच्चाई के बल पर उसका विश्वास हासिल करने के बाद ही शादी का निर्णय लें। पुनर्विवाह करते समय अकसर लडके अपने लिए अविवाहित और कम उम्र की लडकी का चुनाव करना चाहते हैं, जो कि अकसर गलत साबित होता है। दरअसल कम उम्र की अविवाहित लडकी के मन में शादी और भावी पति को लेकर ढेर सारे ख्ाूबसूरत सपने बसे होते हैं। ऐसे में अगर उसकी शादी किसी बच्चों वाले विधुर या तलाकशुदा व्यक्ति से हो जाती है तो उसके सारे सपने पल भर में टूट जाते हैं। अचानक सामने आने वाली जिम्मेदारियों से वह घबरा उठती है। नतीजतन शादी के बाद दांपत्य जीवन बेहद तनावपूर्ण हो जाता है। इसलिए अगर आपके साथ बच्चा भी हो तो आपको अपने लिए परिपक्व विचारों वाली समझदार लडकी का चुनाव करना चाहिए, ताकि वह आपके बच्चों की जिम्मेदारी अच्छी तरह उठा सके।
अंत में, सबसे जरूरी बात यह है कि चाहे स्त्री हो या पुरुष, सभी को अपने नए जीवन की शुरुआत हमेशा सकारात्मक सोच के साथ करनी चाहिए।
लौट आईं ख्ाुशियां
यहां पुनर्विवाह करने वाले कुछ लोग अपने अनुभव बांट रहे हैं सखी के साथ। उनके आग्रह पर नाम बदल दिए गए हैं :
मेरी बेटी के जन्म के कुछ ही महीने बाद डेंगू की वजह से मेरी पत्नी का निधन हो गया। यह मेरे लिए बहुत बडा सदमा था, पर वक्त के साथ मुझे यह एहसास होने लगा कि मैं अकेले बच्ची की परवरिश नहीं कर पाऊंगा। फिर मेट्रमोनियल वेबसाइट की मदद से मुझे एक विधवा स्त्री के बारे मालूम हुआ। दो-चार मुलाकातों के बाद जब मुझे पूरा यकीन हो गया कि हम इस रिश्ते को अच्छी तरह निभा पाएंगे, तभी मैंने शादी का निर्णय लिया। हमारी शादी को छह साल हो चुके हैं। हम अपने परिवार में बेहद ख्ाुश हैं।
सुमित जोशी, मुंबई
मेरी अरेज्ड़ मैरिज हुई थी। शादी के बाद मुझे मालूम हुआ कि मेरे पूर्व पति पहले से ही किसी लडकी के साथ लिव-इन में रह रहे थे। खैर, आपसी सहमति के आधार पर हमारा तलाक हो गया। उसके तीन साल बाद जब एक अविवाहित कलीग ने मेरे सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तो मैंने उन्हें सब कुछ सच-सच बता दिया, लेकिन वह अपने निर्णय पर अडिग रहे। फिर हमारी शादी हो गई।
रीमा, दिल्ली
जब मेरे बेटे की उम्र 2 वर्ष थी, तभी मेरा तलाक हो गया। फिर मैंने ब्यूटीशियन का कोर्स किया और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनी। कुछ वर्षो के बाद एक सहेली ने जिम चलाने वाले एक ऐसे विधुर व्यक्ति से मेरा परिचय करवाया, जिनका पहले से एक बेटा था। कुछ दिनों के बाद हमें ऐसा लगने लगा कि हमारी जिंदगी एक जैसी है। इसलिए हम एक-दूसरे को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। हमने बच्चों की रजामंदी से शादी कर ली और यह निर्णय बिलकुल सही साबित हुआ।
स्नेहा, लखनऊ
सखी फीचर्स (मनोवैज्ञानिक डॉ. अशुम गुप्ता से बातचीत पर आधारित)