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भावनात्मक संतुलन है खुशियों का आधार

आज की जटिल जीवन स्थितियों में खुशी और कामयाबी हासिल करने के लिए व्यक्ति का केवल मेहनती और बुद्घिमान होना ही काफी नहीं, बल्कि इसके लिए भावनात्मक परिपक्वता भी बहुत जरूरी है।

By Edited By: Published: Tue, 31 Mar 2015 12:16 AM (IST)Updated: Tue, 31 Mar 2015 12:16 AM (IST)
भावनात्मक संतुलन है खुशियों  का आधार

आज की जटिल जीवन स्थितियों में खुशी और कामयाबी हासिल करने के लिए व्यक्ति का केवल मेहनती और बुद्घिमान होना ही काफी नहीं, बल्कि इसके लिए भावनात्मक परिपक्वता भी बहुत जरूरी है।

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आपने यह अनुभव किया होगा कि एक ही जैसी स्थितियों में लोग अलग-अलग ढंग से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। कुछ लोग छोटी-छोटी परेशानियों से हताश हो जाते हैं तो कुछ बेहद मुश्किल हालात में भी घबराने के बजाय शांतिपूर्ण ढंग से अपनी समस्याओं का हल ढूंढने की कोशिश करते हैं। इसमें से दूसरी तरह के लोग भावनात्मक रूप से बुद्धिमान माने जाते हैं और वे जीवन के हर मोर्चें पर कामयाब होते हैं।

क्या है इमोशनल इंटेलिजेंस

आजकल मनोवैज्ञानिक भावनात्मक विवेक को बहुत ज्यादा महत्व देने लगे हैं, क्योंकि इसके बिना कोई भी इंसान अपने अर्जित ज्ञान का सही इस्तेमाल नहीं कर सकता। भावनात्मक विवेक के सिद्धांत के प्रतिपादकों का ऐसा मानना है कि पारंपरिक रूप से जिसे हम आइक्यू कहते हैं, उसका क्षेत्र बहुत सीमित है, लेकिन इमोशनल इंटेलिजेंस का दायरा बहुत विस्तृत है। इसके अंतर्गत समस्त मानवीय व्यवहार समाहित हैं। जीवन में सफल होने के लिए केवल मेहनत करके तकनीकी कौशल सीखना और जानकारियां हासिल करना ही काफी नहीं, बल्कि इंसान को अपनी भावनाओं के बीच संतुलन स्थापित करना भी आना चाहिए। बौद्धिक रूप से कोई भी इंसान चाहे कितना ही सक्षम क्यों न हो लेकिन भावनात्मक परिपक्वता के अभाव में वह असफल हो सकता है।

अंतर्मन के आईने में

अपने व्यक्तित्व को अच्छी तरह समझना भी भावनात्मक विवेक का ही एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। आपको यह मालूम होना चाहिए कि आप किन बातों से खुश होते हैं, कौन सी बातें आपको नापसंद हैं, अगर कभी आपका मूड खराब है तो आपको यह मालूम होना चाहिए कि किस वजह से आपका मूड खराब है। किन बातों को लेकर आप चिंतित और परेशान होते हैं, आपके मन में किन बातों को लेकर असुरक्षा है, यह आपको स्पष्ट रूप से मालूम होना चाहिए। जब कभी आप शांतिपूर्वक अकेले बैठे हों तो तटस्थ हो कर दूसरों की नजर से आत्मविश्लेषण करें। जब आप ईमानदारी के साथ अपने व्यक्तित्व का मूल्यांकन करेंगे, तभी आप अपनी भावनाओं को अच्छी तरह समझने में सक्षम होंगे। इससे अपने मनोभावों को नियंत्रित और संतुलित करना आपके लिए सहज होगा।

भावनात्मक अनुशासन

अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन ऐसा कर पाने में जो इंसान सक्षम होता है, उसे लगभग आधी समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है। जीवन में अनुशासन लाकर भावनाओं को एक सीमा तक नियंत्रित किया जा सकता है। अगर आप अच्छी प्रेरणादायक किताबें पढेंगे और जीवन के लिए यह दिशा-निर्देश तय करेंगे कि मन में नकारात्मक भावनाओं को आने नहीं देना है तो क्रोध, ईष्र्या-द्वेष जैसी भावनाओं से काफी हद तक ऊपर उठ सकते हैं। अगर कोई क्रोध में आकर आपके साथ बुरा व्यवहार करता है तो उसकी प्रतिक्रिया में आपका नाराज होना उचित नहीं है। उस वक्त आप शांत रहें और बाद में जब उस व्यक्ति का गुस्सा शांत हो जाए तब आप उसे उसकी गलती का एहसास कराएं। कोई भी निर्णय लेते समय इंसान को अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए क्योंकि भावावेश में आकर जल्दबाजी में लिया गया निर्णय अकसर गलत साबित होता है।

भावनात्मक परिपक्वता

जब इंसान अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना सीख लेता है तो वह स्वत: भावनात्मक परिपक्वता की ओर बढऩे लगता है। जीवन में सफलता और सच्ची खुशी हासिल करने के लिए किसी भी व्यक्ति का भावनात्मक रूप से परिपक्व होना बहुत जरूरी है। कोई भी इंसान भावनात्मक रूप से कितना परिपक्व होगा, यह इस बात पर निर्भर है कि वह अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के प्रति कितना सचेत है।

महात्मा बुद्ध के उपदेशों में आठ सम्यक सूत्रों का उल्लेख मिलता है, जिनके माध्यम से जीवन के हर क्षेत्र में संतुलित आचरण अपनाने की शिक्षा दी गई है। गौतम बुद्ध ने एक बार अपने शिष्यों से कहा था, 'तुम वीणा के तारों को इतना न कसो कि वे टूट जाएं और न ही इतना ढीला छोडो कि उनसे स्वर न निकले। कहने का अर्थ यह है कि भावनाओं की अभिव्यक्ति के मामले में हमेशा संतुलन होना चाहिए।

समझें दूसरों की भावनाएं

भावनात्मक रूप से संतुलित होने के लिए खुद को समझने के साथ दूसरों की भावनाओं को भी समझने और उनके अनुरूप व्यवहार करने की कोशिश करनी चाहिए। इमोशनली इंटेलिजेंट लोगों का सामाजिक व्यवहार हमेशा संतुलित होता है। दूसरों के व्यक्तित्व की खूबियों-खामियों को पहचानने और उनके मन की बातों को पढ पाने का गुर जीवन के हर क्षेत्र में आपके काम आता है। चाहे वह आपका व्यक्तिगत जीवन हो या सार्वजनिक। अगर आप दूसरों को समझते हैं तो यह आपके लिए भी अच्छा होगा। दूसरों की भावनाओं को बारीकी से समझ पाना भावनात्मक विवेक का एक महत्वपूर्ण पहलू है। दफ्तर में जो व्यक्ति अपने साथियों के व्यक्तित्व को समझने में सफल होता है, अगर कभी उसके सामने कोई मुश्किल आती है तो वह आसानी से उसका हल ढूंढ लेेता है। पारिवारिक और सामाजिक जीवन में भी भावनात्मक रूप से संतुलित लोग अपने सभी संबंधों का निर्वाह अच्छी तरह कर पाते हैं। वे अपने जीवनसाथी, दोस्तों और रिश्तेदारों के व्यवहार को ध्यान से देखते हुए उनके व्यक्तित्व के सकारात्मक-नकारात्मक पक्षों को समझने की कोशिश करते हैं। लोगों के साथ उनका व्यवहार बेहद संयत होता है। उन्हें मालूम होता है कि अगर किसी से अपनी बात मनवानी भी है तो उसके सामने किस ढंग से पेश आना चाहिए। बच्चों की परवरिश के मामले में भावनात्मक संतुलन की भूमिका काफी अहम होती है।

सामाजिक व्यवहारकुशलता

समाज में लोगों के साथ व्यक्ति के व्यवहार के आधार पर भी उसके भावनात्मक विवेक को आंका जाता है। भले ही किसी व्यक्ति से आपके वैचारिक मतभेद हों या किसी कारण से आप उसे नापसंद करते हों, लेकिन जब वह सामने मिले तो उसके साथ आपका व्यवहार हमेशा सहज और संतुलित होना चाहिए। जीवन के हर मोर्चे पर कामयाबी हासिल करने के लिए यह बहुत जरूरी है।

बिजनेस मैनेजमेंट के पाठ्यक्रम में अब इंप्रेशन मैनेजमेंट को भी शामिल कर लिया गया है। जिसके अनुसार छात्रों को यह सिखाया जाता है कि व्यक्तिगत रूप से चाहे आप कितने ही परेशान या तनावग्रस्त क्यों न हों, लेकिन सार्वजनिक जीवन में लोगों के साथ बातचीत करते समय आपके चेहरे पर तनाव बिलकुल भी नहीं होना चाहिए। कुछ लोग अकसर यह शिकायत करते देखे जाते हैं कि हमारे आसपास के लोग अच्छे नहीं हैं या कार्यस्थल पर स्थितियां अनुकूल नहीं हैं, पर उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि समाज और माहौल को बदलना बहुत मुश्किल है, लेकिन कोशिश करके खुद को माहौल के अनुकूल बनाया जा सकता है।

अगर आप सचेत ढंग से इन सुझावों पर अमल करेंगे तो आपके लिए भावनात्मक संतुलन स्थापित करना आसान हो जाएगा।

संतुलन के कुछ सरल नियम

-अपने लिए एक इमोशन मैनेजमेंट डायरी बनाएं, रोजाना रात को सोने से पहले उसमें दर्ज करें कि पूरे दिन में आपने कितनी बार और किन स्थितियों में नकारात्मक व्यवहार किया, ताकि अगली बार वैसी स्थिति में आप अपने व्यवहार में सुधार ला सकें।

-समस्याओं से दुखी होने के बजाय उन्हें हल करने की आदत डालें।

-घर और बाहर दोनों जगहों पर लोगों के साथ अच्छे संबंध बनाने और बिगडे हुए संबंध को सुधारने की कोशिश करें।

-अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति पर नियंत्रण रखें और सहनशक्ति को मजबूत बनाएं।

- भावुक क्षणों में कोई भी निर्णय न लें क्योंकि इसमें अकसर गलतियां हो जाती हैं।

-ऐसे लोगों से दोस्ती बढाएं, जिनसे बातें करके आपको खुशी मिलती है। अच्छे सामाजिक संबंध भावनात्मक संतुलन बनाने में मददगार होते हैं।

-करियर के क्षेत्र में मिलने वाली छोटी-छोटी असफलताओं को पहले से ही अपने जीवन का जरूरी हिस्सा मानकर चलें। अपनी नाकामी से निराश होने के बजाय यह संकल्प लें कि दोबारा आपके साथ ऐसा नहीं होगा।

-अगर आप छात्र हैं या करियर बनाने की दिशा में प्रयासरत हैं तो अपनी क्षमताओं का सही मूल्यांकन करना सीखें।

-अपनी क्षमता के अनुरूप ही परिणाम की आशा रखें। अति महत्वाकांक्षा और उसके पूर्ण न होने की स्थिति में कोई भी व्यक्ति भावनात्मक रूप से असंतुलित हो जाता है।

-सीखने की कोई उम्र नहीं होती। अपने प्रोफेशन के संबंध में निरंतर नई जानकारियां हासिल करें और काम की नई तकनीकें सीखते रहें। इससे आप स्वयं को हमेशा युवा और ऊर्जावान महसूस करेंगे।

-अगर ऐसा लगता है कि वाकई आपका भावनात्मक संतुलन बिगड रहा है तो अपने ऊपर पूरा ध्यान दें। पर्याप्त नींद लें, योगाभ्यास और ध्यान करें।

-परिवार के साथ पूरा समय बिताएं। छुट्िटयों में कहीं घूमने जाएं। हमेशा अच्छा सोचें। इससे जीवन में सकारात्मक बदलाव महसूस करेंगे।

विनीता

(क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. पुलकित शर्मा से बातचीत पर आधारित)


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