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पहली नजर में ही प्यार हो गया: शेखर सुमन-अलका

दिल्ली यूनिवर्सिटी में हुई एक मुलाकात ने शेखर सुमन और अलका को हमसफर बना दिया। शेखर जितने अच्छे अभिनेता, टीवी कलाकार और प्रे•ोंटर हैं, अलका उतनी ही अच्छी होम मैनेजर और फैशन डिजाइनर। समान सोच और पसंद वाले इस बेबाक दंपती से मिलते हैं इस बार।

By Edited By: Published: Wed, 01 Aug 2012 12:55 AM (IST)Updated: Wed, 01 Aug 2012 12:55 AM (IST)
पहली नजर में ही प्यार हो गया: शेखर सुमन-अलका

अपने आत्मविश्वास के बलबूते शेखर  सुमन ने प्रोफेशनल और पर्सनल स्तर पर सफलता हासिल की। संघर्ष व सफलता की इस राह में मजबूती से साथ खडी रहीं इनकी हमसफर अलका, जिनसे पहली ही मुलाकात में इन्हें प्यार हो गया था। रिश्तों को लेकर क्या सोचते हैं ये दोनों, जानते हैं।

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शादी को व्याख्या की जरूरत नहीं

शेखर :  शादी सलेब्रिटी के लिए भी उतनी ही अहम है जितनी आम व्यक्ति के लिए। लेकिन पति ग्लैमर की दुनिया में हो तो शायद पत्नी को थोडा ज्यादा  एडजस्टमेंट  करना पडता है। हालांकि मैं नहीं मानता कि शादी एडजस्टमेंट  है। मुझे लगता है कि यह एक-दूसरे को जानने का निरंतर अभ्यास है।

अलका : सलेब्रिटी  होने न होने से फर्क नहीं पडता। मैं मानती हूं कि शादी दो मेच्योर लोगों को साथ रहने का मौका देती है।

पहली मुलाकात में हो गया प्यार

शेखर :  मैं इनसे दिल्ली यूनिवर्सिटी में मिला। 1980  की बात है, मैं रामजस  में था और अलका इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय में थीं। विंटर फेस्टिवल में एक कॉमन  दोस्त ने हमें मिलाया। उसी पल लगा कि इनके साथ पूरी जिंदगी  बिता सकता हूं। बस प्यार हो गया।

अलका : ग्रेजुएशन  होते ही शादी कर ली। शादी इनसे ही करनी थी तो फिर इंतजार  क्यों करते। निर्णय कम उम्र में लिया, पर सही निकला। मैं इनके बिना नहीं रह सकती थी।

जोडियां तो ऊपर वाला बनाता है

शेखर :  ऊपर वाला ही हमारा जीवनसाथी चुन कर रखता है। मैं विंटर  फेस्टिवल में नहीं जाना चाहता था, दोस्त जबरन ले गए। फिर इनसे मुलाकात हुई। ऐसा लगा जैसे सारी स्थितियां मुझे इनसे मिलाने में लगी थीं।

अलका :  हां- लेकिन ख्ाुद भी प्रयास करने पडते हैं। हम अलग-अलग जाति और प्रांत के हैं, लिहाजा परिवार वालों को मनाने में समय लगा। अंत में सब तैयार हो गए।

सादगी पर मर मिटा

शेखर :  इनकी सादगी पर ही मैं मर मिटा। दिल्ली जैसे शहर में रहने के बावजूद ये रिजर्व  नेचर की थीं। मैं मध्यवर्गीय हूं। अपनी मां, बुआ या बहन को मैंने जैसे देखा, वैसा ही पत्नी में भी चाहता था।

शादी संस्था नहीं है

शेखर :  कुछ लोग शादी को संस्था मानते हैं। मैं इसे गठबंधन मानता हूं। दो इंसान अलग-अलग पृष्ठभूमि से आकर एक हो जाते हैं, एक-दूसरे से भावनात्मक व शारीरिक तौर पर एकाकार होते हैं। जब आप किसी से प्यार करते हैं तो धीरे-धीरे यह प्यार शारीरिक आकर्षण से होते हुए रूहानी इश्क की ओर बढता है। जिस पल आपको लगता है कि आप उसके बिना नहीं रह सकते, उसी पल शादी की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

अलका:  शेखर  ने ठीक कहा। साथ रहना संस्था नहीं है। यह अलग व व्यापक रिश्ता है। ख्ासतौर पर प्रेम विवाह अपेक्षाओं और जिम्मेदारियों  से भरा कदम है। यहां किसी किस्म की बेपरवाही रिश्तों को सहेजे रखने में दिक्कत पैदा कर सकती है। पति के साथ कभी तकरार तो कभी प्यार चलता रहता है। सच कहूं तो लाइफ पार्टनर के साथ हल्की खटपट हो तो प्यार बढता है। शादी से पहले लडकियां खुद  बंधन में बंधना चाहती हैं और बाद में हैरान-परेशान होती हैं। हंसी-मजाक के बहाने गम भुलाने की कोशिश करती हैं।

सलेब्रिटी भी आम इंसान है

शेखर : सलेब्रिटी किसी अलग दुनिया से नहीं आते। आप किसी भी फील्ड में हों, घर से बाहर जाएंगे। सबसे बडी चीज है, रिश्ते में भरोसा होना। औरतें इस मामले में समझदार होती हैं। उन्हें पता है कि अगर पति संबंधों की गरिमा नहीं समझता तो उसे जो करना है-वह करेगा ही। फिर भले ही वह सलेब्रिटी हो या कोई और। पुरुष होना ही काफी है।

अलका:  शुरू-शुरू में निभाना मुश्किल लगता था। खासकर फिल्म उत्सव के समय। जब दूसरी हीरोइन इनके करीब आती थी तो अंदर से कुछ टूट जाता था। समय के साथ सोच बडी हुई। साथ रहते-रहते इनके बारे में बहुत-कुछ पता चला। यह भी एहसास हुआ कि इनके लिए करियर सब कुछ नहीं है। ये बहुत पारिवारिक व्यक्ति हैं। अपने पेरेंट्स के साथ इन्होंने मेरे पेरेंट्स का भी खयाल  रखा। इन पर ग्लैमर  का नशा नहीं चढा।

लिव-इन में कोई बुराई नहीं

शेखर :  शादी सोशल स्टैंप ही तो है। दो वयस्क स्त्री-पुरुष प्रेम के साथ रहते हैं तो उन्हें शादी के ठप्पे की कोई जरूरत नहीं है।

जमाना  बदल रहा है, सोच बदल रही है। अब युवा सोचते हैं कि साथ रह कर देख लें कि रिश्ते को कितनी दूर तक ले जा सकते हैं। नहीं रह सकते तो शादी नहीं करेंगे।

अलका :  शेखर  की बातों से मैं सहमत हूं। पहले लोग शादी के बाद निभाने के बारे में सोचते थे, अब पहले सोच लेते हैं। किसी की नीयत बुरी हो तो उसका कोई क्या कर सकता है। वह शादी के बाद भी धोखा दे सकता है।

लिव-इन में कोई बुराई नहीं

शेखर  : हमारे बीच वाद-विवाद की नौबत कम ही आती है। हमारी सोच एक सी है। अलका ने अलग से ऐसा कोई प्रयास नहीं किया, बल्कि ऐसा खुद होता है। इन्हें फैशन डिजाइनिंग का शौक है और मैं इन्हें सपोर्ट करता हूं। एक-दूसरे की पसंद-नापसंद का खयाल  रखते हुए आगे बढना जरूरी है। यही तो खूबसूरती है रिश्ते की। तकरार है, प्यार है, इसके बावजूद रिश्ता बना रहता है।

अलका :  कभी-कभी आश्चर्य होता है कि जो बात मैं सोच रही हूं, वही ये कुछ दिन पहले सोचे हुए होते हैं। हमारी सोच इतनी मिलती है। नाराज होने पर मैं तुरंत प्रतिक्रिया नहीं करती, शांत होने के बाद ही जवाब देती हूं। रिश्तों में धैर्य बहुत जरूरी है।

असहमति तो होती है

शेखर :  हम जानवर तो हैं नहीं कि तू-तू मैं-मैं होगी, हां, असहमति होती ही है। मुझे ग्ाुस्सा आता था पहले। समय और उम्र के साथ संतुलित हो गया हूं। अलका को गुस्सा  नहीं आता। अलका को कोल्ड ड्रिंक्स पसंद है, मुझे इस बात पर गुस्सा  आता है।

अलका :  इनकी सिगरेट की लत मुझे नापसंद थी। इन्होंने मेरी बात मानी और सिगरेट छोड दी। एक बात कहूं, एकाध पैग लेने के बाद ये खासे रोमैंटिक हो जाते हैं, हालांकि पहले मुझे गुस्सा आता था इनके रोमैंस प्रदर्शन पर। अब ये काफी सुधर गए हैं।

मजबूती से साथ खडे रहना जरूरी

शेखर : बेटे की मौत के बाद टूट गया था मैं। कोई अनहोनी हो सकती थी। ऐसे समय में अलका ने मजबूती से परिवार को सहेजे रखा, जबकि ये मां थीं। ये साथ न होतीं तो मैं धराशाई हो जाता। ऐसे कई क्षण आए, जब ये शक्ति बन कर सामने खडी हुई हैं।

अलका :  इनमें न कहने की आदत नहीं है। घर खरीदना  था तो लोखंडवाला  में एक इमारत का पूरा फ्लोर पसंद आ गया। जेब में भले ही पैसे न हों, लेकिन सोच लिया तो सोच लिया। इनका एक ही मंत्र है-ज्यादा सोचो मत, गडबड हो जाता है। जिंदगी रेस की तरह है, इसमें दौडना है और जीतना है। इन्होंने प्लान बी कभी नहीं बनाया।


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