तारीफ तो बनती है
तारीफ तो सभी को चाहिए। अपने श्रम, अच्छे कार्य और प्रयासों के लिए सराहना व प्रोत्साहन की दरकार हर एक को होती है। प्रशंसा मिलती है तो व्यक्ति दोगुनी मेहनत से काम करता है और आगे बढ़ता है। प्रशंसा श्रम या कार्य के प्रति सम्मान व्यक्त करना भी है। तारीफ क्यों जरूरी है और यह कब और किस तरह की जानी चाहिए, जानें इस लेख में।

कुछ लोग शब्दों या व्यवहार के मामले में इतने मितव्ययी होते हैं कि दूसरे के अच्छे कार्यो की तारीफ भी खुल कर नहीं कर पाते, जबकि कुछ लोग इतनी तारीफ करते हैं कि सामने वाला शर्मिदा हो जाए और उसे लगने लगे कि या तो तारीफ के पैकेट में चापलूसी भरी है या फिर सामने वाला उसे बेवकूफ समझता है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें किसी बात से फर्क नहीं पडता। वे कभी किसी की तारीफ नहीं कर पाते। दूसरा बडे से बडा काम कर गुजरे, ये तटस्थ और निर्विकार भाव से शून्य की ओर देखते हैं। कई बार बडे-बुजुर्ग पेरेंटिंग के गुर सिखाते हुए कहते हैं कि बच्चों की ज्यादा तारीफ नहीं करनी चाहिए, इससे वे बिगड सकते हैं। दूसरी ओर मनोवैज्ञानिक और एक्सपर्ट्स मानते हैं कि तारीफ बच्चे का मनोबल बढाती है और उन्हें आगे बेहतर काम करने को प्रेरित करती है।
क्यों जरूरी है प्रशंसा
प्रोत्साहन की जरूरत बच्चों ही नहीं, बडों को भी होती है। घर से लेकर स्कूल-कॉलेज, सार्वजनिक स्थलों और कार्यस्थल तक इसकी आवश्यकता पडती है। शिक्षक की जरा सी तारीफ से बच्चे का आत्मविश्वास बढ सकता है तो पेरेंट्स का प्रोत्साहन उसे बेहतर भविष्य की ओर बढने को प्रेरित करता है। अरे वाह! तुमने तो इतना मुश्किल सवाल हल कर दिखाया, शाबाश! यह छोटा सा वाक्य नन्हे मस्तिष्क पर बडा प्रभाव पैदा करता है। सराहना के चंद लफ्ज रिश्तों को खुशगवार बना सकते हैं। मां, तुम्हारे हाथों में तो कमाल है! बच्चे की छोटी सी तारीफ मां की डिक्शनरी का सबसे खूबसूरत वाक्य बन सकती है। इसी तरह कार्यस्थल में अच्छे कार्य की तारीफ कर्मचारी को बेहतर काम करने को प्रेरित करती है। अप्रेजल या उसके कार्य का सही आकलन उसे भविष्य में कर्मठ कर्मचारी बनने की प्रेरणा देता है।
लोग बाहर खाना खाते हैं तो बैरे को टिप देते हैं। टिप उसकी सेवाओं की तारीफ ही है। यह शिष्टाचार भी है और दूसरे की मेहनत का सम्मान भी। घर में खाने के बदले टिप नहीं दिया जाता, मगर धन्यवाद और सराहना में बोले गए शब्द खाना बनाने वाले को एहसास दिलाते हैं कि उसकी मेहनत और कार्य को सम्मान मिल रहा है। मेहनतकश, सफाई कर्मचारी, घरेलू हेल्पर, कुक, सोसाइटी का गार्ड, ड्राइवर, दूध वाला, हॉकर.. ऐसे कई लोग हैं, जिनकी सेवाओं के बिना जिंदगी सहज नहीं हो सकती।
इतनी कंजूसी अच्छी नहीं
तारीफ सबको अच्छी लगती है। यह कई कुंठाओं और तनाव से मुक्ति भी दिलाती है। व्यक्ति को जीवन में आगे बढने के लिए सकारात्मक प्रोत्साहन की जरूरत पडती है। प्रोत्साहन या प्रशंसा आत्मा के लिए ऑक्सीजन की तरह है। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि तारीफ से किसी का जीवन बदल सकता है और तारीफ करने वाला भी सुखद एहसास से भर उठता है। ईमानदार प्रशंसा दूसरे की योग्यता व क्षमता में इजाफा करती है। तो फिर तारीफ में इतनी कंजूसी क्यों?
तारीफ करें कुछ ऐसे
शोध बताते हैं कि व्यक्ति की नहीं, उसके प्रयासों, मेहनत एवं काम की तारीफ की जानी चाहिए। जैसे, तुमने इस प्रोजेक्ट में बहुत मेहनत की है, तुम्हारी मेहनत रंग लाई है जैसे वाक्यों में यह संदेश छिपा है कि सफलता मेहनत व प्रयास से ही मिलती है। इसे वैज्ञानिक भाषा में प्रक्रिया की प्रशंसा (प्रोसेस प्रेज) कहा जा सकता है। दूसरी ओर तुम बहुत स्मार्ट हो, तुम इस काम को बेहतर कर सकते हो जैसे वाक्यों का अर्थ है कि सफलता एक निश्चित गुण के कारण मिलती है। इसे व्यक्ति की प्रशंसा (पर्सन प्रेज) कहा जा सकता है।
शिकागो यूनिवर्सिटी और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में पांच वर्ष तक बच्चों की इन दो तरीकों से की गई तारीफ के कई दिलचस्प नतीजे निकले। ऐसे बच्चे, जिनके माता-पिता या टीचर्स ने उनके काम या प्रयास की तारीफ की, दूसरे बच्चों के मुकाबले चुनौतीपूर्ण काम हाथ में लेना पसंद करते थे, विफलता से जल्दी उबरते थे, क्योंकि इससे उन्हें सीखने को मिलता था। वे मेहनत से उपजी योग्यता पर भरोसा करते थे।
प्रशंसा व्यक्ति के कार्य का सम्मान और पुरस्कार है। तारीफ करें, क्योंकि सराहना के थोडे से शब्द किसी को आत्मिक खुशी प्रदान कर सकते हैं तो किसी की जिंदगी भी बदल सकते हैं।
इंदिरा
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