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    अच्छी नहीं होती जिद इतनी

    बच्चों का जि़द्दी व्यवहार पेरेंट्स के लिए सिरदर्द बन जाता है। अगर परवरिश में शुरुआत से ही सजगता बरती जाए तो उनकी ऐसी आदत को आसानी से बदला जा सकता है। यही ट्वॉय मुझे भी चाहिए, मुझे दूध नहीं पीना ...आपके साथ मैं भी बाहर जाऊंगा। शुरुआत में बच्चों के

    By Edited By: Updated: Fri, 28 Aug 2015 04:31 PM (IST)
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    बच्चों का जिद्दी व्यवहार पेरेंट्स के लिए सिरदर्द बन जाता है। अगर परवरिश में शुरुआत से ही सजगता बरती जाए तो उनकी ऐसी आदत को आसानी से बदला जा सकता है।

    यही ट्वॉय मुझे भी चाहिए, मुझे दूध नहीं पीना ...आपके साथ मैं भी बाहर जाऊंगा। शुरुआत में बच्चों के मुंह से ऐसी प्यारी बातें सुन कर पेरेंट्स ख्ाुश होते हैं, पर धीरे-धीरे जब यही व्यवहार उनके बच्चे की आदत में शामिल हो जाता है तो वे परेशान हो जाते हैं। उनके लिए यह समझ पाना मुश्किल होता है कि आख्िार हमारा बच्चा ऐसी हरकतें क्यों करता है? पेरेंट्स उनके ऐसे व्यवहार को नियंत्रित करने में कोई कसर नहीं छोडते, पर बच्चे तो बच्चे हैं। वे इतनी आसानी से कहां मानते हैं।

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    क्या कहता है मनोविज्ञान

    हर बच्चे का व्यक्तित्व दूसरे से अलग होता है। आपने भी यह महसूस किया होगा कि कुछ बच्चे जन्मजात रूप से बहुत ज्यादा जिद्दी होते हैं और अपनी हर मांग पूरी करवाने के लिए वे बहुत ज्य़ादा शोर मचाते हैं। आनुवंशिकता बच्चे के जिद्दी व्यवहार की प्रमुख वजह है। तभी तो अपने बच्चों को ऐसी हरकतों के लिए डांटने वाले पेरेंट्स अपने माता-पिता से अकसर यही जुमला सुनते हैं, 'तुम तो इससे भी ज्य़ादा जिद्दी थे/थी।

    किसी भी मानवीय व्यवहार की तरह जिद भी बेहद सहज प्रतिक्रिया है। अगर बच्चे की इच्छाएं आसानी से पूरी न हों या मनचाही वस्तु हासिल करने में उसके सामने कोई बाधा आए तो उसे पाने के लिए वह अपनी तरफ से हर संभव कोशिश करता है। इसी क्रम में वह रोने-चिल्लाने या रूठकर अपनी नाराजगी दिखाने जैसी प्रतिक्रियाएं व्यक्त करता है। इस पर बहुत ज्य़ादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है। समय के साथ बच्चे अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करना सीख जाते हैं। हां, इसके लिए माता-पिता का सही मार्गदर्शन बहुत जरूरी है। बच्चों का जिद्दी व्यवहार निश्चित रूप से पेरेंट्स के धैर्य की कडी परीक्षा लेता है, पर उनकी ऐसी हरकतों पर ओवर रिएक्ट करने के बजाय संतुलित ढंग से उनके ऐसे व्यवहार को नियंत्रित करने की कोशिश करनी चाहिए।

    ज्य़ादा न हो सख्ती

    पेरेंट्स के पास अपने बच्चे के हर व्यवहार को नियंत्रित करने की पूरी शक्ति होती है। वे अपने बच्चों के लिए यह तय करते हैं कि उन्हें क्या करना है, क्या नहीं, कहां जाना है, कहां नहीं, क्या खाना है, क्या नहीं...। पेरेंट्स के पास ऐसी बंदिशों की लंबी लिस्ट होती है। ऐसे में जब बच्चे को हर छोटी-छोटी बात के लिए मना किया जाता है, तो उसे ऐसा महसूस होने लगता है कि उसे अपनी पसंद से जुडी चीजों को चुनने की आजादी नहीं है। इससे उसके मन में हताशा और गुस्से की भावना पनपने लगती है। फिर वह बडों से अपनी बातें मनवाने के लिए दूसरे तरीके ढंूढने की कोशिश करता है, जिसका नतीजा उसके जिद्दी व्यवहार के रूप में सामने आता है। बच्चों के जिद्दी व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए अगर उनके साथ ज्य़ादा सख्ती बरती जाती है तो वे सुधरने के बजाय बिगडऩे लगते हैं, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि उन्हें मनमानी करने की पूरी छूट दे दी जाए। जिद्दी बच्चों की परवरिश के मामले में अनुशासन और लाड-प्यार के बीच सही तालमेल बहुत जरूरी है।

    जरूरत पॉजिटिव पेरेंटिंग की

    बच्चों से जबरन अपनी बात मनवाने की कोशिश अकसर नाकाम होती है। इसलिए उन्हें अनुशासित करने के लिए हमें नकारात्मक के बजाय सकारात्मक वाक्यों का इस्तेमाल करना चाहिए। मसलन, अगर आप उसे धूप में बाहर खेलने जाने से रोकना चाहती हैं तो 'तुम बाहर मत जाओ, कहने के बजाय उससे यह भी कह सकती हैं, 'आज मम्मी तुम्हारे साथ कैरम खेलना चाहती हैं। इसलिए आज हम घर पर ही साथ मिलकर खेलते हैं। इससे वह आसानी से आपकी बात मान लेगा। बच्चों को निर्देश देने के दौरान 'यह काम तुम्हें अभी ही पूरा करना पडेगा, वरना आज तुम्हें टीवी नहीं देखने दिया जाएगा...। ऐसे बल प्रयोग दर्शाने वाले वाक्यों से बचने की कोशिश करें। बल्कि, आप उससे कहें कि 'अगर तुम जल्दी से अपना यह काम ख्ात्म कर लोगे तो तुम्हारे पास टीवी देखने के लिए पूरा वक्त होगा। बच्चे को डांट-फटकार कर उससे अपनी बात मनवाने के बजाय, अगर उसके साथ दोस्ताना व्यवहार अपनाया जाए तो वह आपके साथ सहज और सुरक्षित महसूस करेगा। उसके मन में यह विश्वास पैदा होगा कि बिना जिद के भी माता-पिता उसकी बात मान लेंगे।

    विकल्प चुनने की आजादी

    बच्चों में जिद की प्रवृत्ति बढऩे की एक प्रमुख वजह यह भी है कि जब उनके सामने अपनी पसंद से विकल्प चुनने का कोई अवसर नहीं होता तो उनके व्यवहार में चिडचिडापन बढऩे लगता है। ज्य़ादा बंदिशों से उन्हें बोरियत महसूस होती है। फिर वे छोटी-छोटी बातों के लिए जिद करने लगते हैं। बच्चे पर अपना कोई एक आदेश थोपने के बजाय अगर आप उसके सामने दो-तीन मिलते-जुलते विकल्प रखकर उनमें से कोई एक चुनने को कहेंगी तो इससे वह ख्ाुद को आजाद महसूस करते हुए आपकी बात आसानी से मान लेगा।

    ना कहना भी सीखें

    बच्चों के साथ ज्य़ादा प्यार जताने वाले पेरेंट्स छोटी उम्र से ही उनकी हर बात मान लेते हैं। इसलिए ऐसे बच्चे किसी भी बात के लिए ना सुनने को तैयार नहीं होते। कुछ समय के बाद जब उन्हें किसी बात के लिए मना किया जाता है तो वे जिद पर अड जाते हैं और बहुत ज्य़ादा रोने-चिल्लाने लगते हैं। अगर आप अपने बच्चे को ऐसी आदत से बचाना चाहती हैं तो उसकी हर बात मानने के बजाय शुरुआत से ही उसमें ना सुनने की भी आदत विकसित करें। जहां भी आपको टोकने की जरूरत महसूस हो उसे स्पष्ट रूप से मना करें। इसके बाद वह चाहे कितनी ही जिद क्यों न करे, पर आप अपने निर्णय में कोई बदलाव न लाएं। इससे शुरुआत से ही उसमें ऐसी समझ विकसित होगी कि हमेशा उसकी मनमानी नहीं चलेगी। इससे बच्चे के मन में यह सीमा रेखा स्पष्ट होगी कि उसकी कौन सी बातें मानी जा सकती हैं और किन बातों के लिए उसे जिद नहीं करनी चाहिए।

    जिद को दें सही दिशा

    यह जरूरी नहीं है कि जिद्दी बच्चे हमेशा स्वार्थी और आत्मकेंद्रित हों। मनोवैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययनों से यह तथ्य पूरी तरह सच साबित हो चुका है कि जिद्दी बच्चे ज्य़ादा मेहनती और संघर्षशील होते हैं। ऐसे बच्चे जिस कार्य को शुरू करते हैं, उसे पूरा करके ही दम लेते हैं। दूसरे बच्चों की तरह इनका ध्यान इधर-उधर नहीं भटकता। नई चुनौतियां स्वीकारना इन्हें बहुत अच्छा लगता है। ये कामयाबी की राह में आने वाली बाधाओं से जरा भी नहीं घबराते। अगर किसी वजह से इन्हें पहले या दूसरे प्रयास में कामयाबी नहीं मिलती तो ये दोबारा नए उत्साह के साथ मेहनत में जुट जाते हैं। अगर आपका बच्चा भी जिद्दी है तो उसके लिए चिंतित होने के बजाय प्यार भरे मार्गदर्शन से उसकी जिद को सही दिशा दें, ताकि वह कामयाबी की राह में आगे बढ सके।

    कुछ जरूरी बातें

    -अगर छोटी उम्र से ही बच्चों को अपनी बारी का इंतजार, दोस्तों के साथ शेयरिंग और हार को सहजता से स्वीकारना सिखाया जाए तो वे जिद्दी नहीं बनेंगे।

    -अगर शुरू से ही बच्चे को अनुशासित करने पर ध्यान न दिया गया हो तो पांच साल की उम्र के बाद अचानक बहुत ज्य़ादा सख्ती से उसका जिद्दीपन दूर करने की जल्दबाजी न करें। बच्चे पर इसका उलटा असर पडेगा।

    - स्कूल जाने वाले बच्चे के जिद्दी व्यवहार को बदलने में थोडा वक्त लगता है। ऐसी स्थिति में पेरेंट्स को धैर्य नहीं खोना चाहिए।

    -उसे हर छोटी-छोटी बात के लिए मना न करें, इससे उसके व्यवहार में स्थायी रूप से चिडचिडापन आ जाएगा और वह ज्य़ादा जिद करने लगेगा।

    -उसके रोने-चिल्लाने पर अपना निर्णय कभी न बदलें। इससे वह आपकी कमजोरी समझ जाएगा और अपनी बात मनवाने के लिए हर बार यही तरीका अपनाएगा।

    -अपने बच्चे केसाथ नियमित रूप से क्वॉलिटी टाइम बिताएं। उस दौरान उसे कोई उपदेश न दें, बल्कि ख्ाुशनुमा माहौल में हल्की-फुल्की बातचीत करें।

    -अगर वह कोई अच्छा कार्य या व्यवहार करता है तो उसकी तारीफ करना न भूलें।

    -अगर अनुशासन और लाड-प्यार के बीच संतुलन रखा जाए तो बच्चों के जिद्दी व्यवहार को आसानी से सुधारा जा सकता है।

    विनीता

    (चाइल्ड काउंसलर पूनम कामदार से बातचीत पर आधारित)