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    इतनी जल्दी बड़े मत बन जाओ

    बच्चे जल्दी बड़े हो रहे हैं। दो दशक पहले तक प्यूबर्टी की उम्र लड़कियों में 12-13 और लड़कों में 14-15 थी, लेकिन अब यह उम्र घट कर 9-10 और 11-12 हो चुकी है। क्यों हो रहा है ऐसा और क्या इससे नुकसान भी हो सकता है? इस स्थिति में माता-पिता अपने बच्चों का मार्गदर्शन कैसे करें, जानें इस लेख में।

    By Edited By: Updated: Sat, 01 Feb 2014 02:19 PM (IST)
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    दिल्ली के एक प्रतिष्ठित स्कूल में चौथी कक्षा में पढने वाली कृतिका  ने अभी दो महीने पहले ही नवां बर्थडे मनाया था। कुछ दिन पहले वह स्कूल से लौटी तो बदहवास सी थी। उसने अपनी मम्मी को रोते हुए बताया कि उसे चोट लग गई है। बाद में पता चला कि उसे पीरियड्स  शुरू हो गए हैं। उसकी मम्मी उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले गई। डॉक्टर ने बताया कि इसमें घबराने वाली कोई बात नहीं, इस उम्र में प्यूबर्टी अब आम बात है। तब जाकर कृतिका की मां को कुछ तसल्ली हुई। उन्होंने कृतिका को पीरियड्स और इससे जुडी हर जानकारी दी। लेकिन मासूम बच्ची हर महीने 2-3  दिन डर और झिझक के कारण अपनी क्लास मिस कर देती है। उसे वॉमिटिंग  हो जाती है और वह डरती है कि कहीं बच्चों को पता न चल जाए कि उसे पीरियड्स  शुरू हो गए हैं..।

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    दिल्ली स्थित रॉकलैंड  हॉस्पिटल  में वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. मधु गोयल कहती हैं, जल्दी प्यूबर्टी के लक्षण अब आम हैं। लडकियों में इसकी औसत उम्र 10-11  है, जबकि लडकों में 11-12  है। लेकिन कई बार 8-9 की उम्र में भी ये लक्षण दिख जाते हैं। शहरी बच्चों में न्यूट्रिशन  की अधिकता, ओबेसिटी व फैट डिपोजिशन इसके प्रत्यक्ष कारण हैं। मगर तनाव, अवसाद व सूचनाओं की अधिकता से भी ऐसा हो रहा है।

    पर्यावरण में छिपे कारण

    फसलों में रासायनिक खाद की अधिकता और उनके अवशिष्ट तत्व जैसे डीडीई  (डीडीटी के बाद बचने वाला पदार्थ), पीसीबी (पॉलीक्लोरीनेटेड बाइफिनाइल्स)  से शरीर का हॉर्मोनल सिस्टम बदलता है। इससे बच्चों का वजन बढता है और प्यूबर्टी  जल्दी होती है। हालांकि डीडीटी प्रतिबंधित पेस्टीसाइड  है, मगर यह केमिकल्स या खाद की दुकानों में धडल्ले से बिकता है। इसके अलावा प्लास्टिक के बढते चलन से होने वाले पर्यावरण प्रदूषण से भी बच्चों में समय से पहले प्यूबर्टी के लक्षण दिख रहे हैं।

    ओबेसिटी

    बॉडी  फैट  से पैदा होने वाला हॉर्मोन  लैप्टिन  मस्तिष्क को प्यूबर्टी  शुरू होने का संकेत देता है। भारतीयों के खानपान में पौष्टिकता बढने के कारण लैप्टिन व इंसुलिन  के स्तर में तेजी  आती है। पशुओं से प्राप्त होने वाले प्रोटीन के कारण भी ऐसा होता है। ओवर-न्यूट्रिशन वाले समाजों में बच्चों में समय से पहले यौवन के लक्षण ज्यादा तेजी से नजर  आ रहे हैं।

    तनाव

    पढाई में बढती प्रतिस्पर्धा, घर का कलहपूर्ण  माहौल या माता-पिता में अलगाव, दोस्तों से लडाई-झगडा, बॉडी इमेज  को लेकर कुंठा जैसे कई कारण भी प्यूबर्टी  को समय से पहले आमंत्रित करते हैं।

    विटमिन  डी की कमी

    जिन बच्चों में विटमिन  डी की कमी होती है या जो बच्चे सूर्य की रोशनी के संपर्क में कम रहते हैं, उनमें प्यूबर्टी  के लक्षण बाकी बच्चों की तुलना में जल्दी दिखते हैं। व्यायाम और आउटडोर गेम्स की कमी भी एक कारण है।

    एडल्ट कंटेंट

    हाल के वर्षो में टीवी व फिल्मों में एडल्ट कंटेंट बढा है, यह भी अर्ली प्यूबर्टी का एक कारण है। अर्ली प्यूबर्टी के लिए हाइपोथेलामस  जिम्मेदार  है। यह पिट्यूटरी  ग्लैंड  को उन हॉर्मोस के रिलीज  का संदेश भेजता है, जिनके कारण लडकियों की ओवरीज  और लडकों के टेस्टिकल्स  सेक्स हॉर्मोन  बनाने लगते हैं। बचपन में ही एडल्ट  कंटेंट  के संपर्क में आने से ये हॉर्मोस जल्दी रिलीज  होने लगते हैं।

    जल्दी बडा होने के प्रभाव

    समय से पहले प्यूबर्टी के प्रभाव शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर नजर आते हैं। इसके दुष्प्रभाव इस तरह दिखते हैं-

    1. कम उम्र में शरीर में हो रहे परिवर्तनों को बच्चे स्वीकार नहीं कर पाते। इससे कई बार उनके भीतर हीन-भावना पैदा होने लगती है और वे खुद को बाकी बच्चों से अलग समझने लगते हैं। वे इंट्रोवर्ट होने लगते हैं।

    2. कम उम्र में पीरियड्स  शुरू होने पर लडकियां हाइजीन का खयाल नहीं रख पातीं। उनका शारीरिक विकास तो होता है, लेकिन मानसिक तौर पर वे बच्ची होती हैं। इसके कारण उन्हें स्वास्थ्य समस्याएं या संक्रमण घेर सकते हैं।

    3. हॉर्मोनल बदलावों के कारण अपॉजिट सेक्स के प्रति आकर्षण शुरू होता है, लेकिन समझदारी कम होने से कई बार बच्चियां शारीरिक शोषण का शिकार बन जाती हैं या अनचाहे संबंधों में पड जाती हैं। कई बार वे शारीरिक-मानसिक परेशानियों से गुजरती  हैं।

    4. आजकल स्कूली छात्र-छात्राओं के बीच कम उम्र में संबंध बनना और ब्रेकअप होना एक सामान्य बात हो गई है। इससे बच्चों में तनाव, दबाव, कुंठा, अवसाद, हीन-भावना, अपराध-बोध के अलावा यौन अपराधों में लिप्तता जैसी प्रॉब्लम्स बढ रही हैं।

    5. जल्दी प्यूबर्टी बच्चों को इंपल्सिव  बिहेवियर, स्मोकिंग-एल्कोहॉल, डिप्रेशन  और असुरक्षित सेक्स संबंधों की तरफ ले जाती है।

    6. जल्दी प्यूबर्टी से भविष्य में ब्रेस्ट कैंसर जैसी समस्याएं हो सकती हैं। पोलीसिस्टिक  ओवरी  सिंड्रोम  रिस्क भी बढ सकता है। इसके अलावा एंडोमैट्रियल  हाइपर प्लेजिया और फायब्रॉयड्स जैसी स्वास्थ्य समस्याएं घेर सकती हैं। एस्ट्रोजन की अधिकता से जल्दी प्यूबर्टी के अलावा मेनोपॉज देरी से होता है। इससे रीप्रोडक्टिव  एज  बढती है और हृदय संबंधी समस्याएं कम होती हैं।

    क्या करें अभिभावक

    1.  बच्चों को हेल्दी, न्यूट्रीशियस और घर का बना ताजा खाना दें। गर्म तासीर वाले खाद्य पदार्थो की मात्रा सीमित रखें।

    2.  उन्हें सुबह वॉक  पर ले जाएं। नियमित व्यायाम और योग की आदत डालें। इसके अलावा आउटडोर गेम्स के लिए प्रेरित करें।

    3.  बच्चों को 9-10  की उम्र में शरीर में होने वाले बदलावों  के बारे में बताएं। खासतौर पर लडकियों को अच्छे व बुरे स्पर्श के बारे में बताएं। प्यूबर्टी  के लक्षण शुरू होने के बाद उन्हें हाइजीन के बारे में जरूर बताएं। साथ ही उन्हें प्रजनन अंगों और मां बनने की प्रक्रिया के बारे में पूरी जानकारी दें।

    4.  शारीरिक बदलावों के दौर से गुजरने  वाले बच्चे अकसर अपनी बॉडी  इमेज  को लेकर सजग होने लगते हैं। उनके पहनावे का खयाल  रखें। बेटियों को इस उम्र में सूती और आरामदेह कपडे पहनने को प्रेरित करें। टाइट फिट कपडे उनके लिए न खरीदें। शारीरिक बदलावों के दौर में उन्हें ऐसे कपडे पहनने चाहिए जिससे वे सहज और केयरफ्री महसूस करें।

    5.  बच्चों की मॉनिटरिंग  करते रहें। उनकी गतिविधियों व दोस्तों की जानकारी लें। उनसे भावनात्मक शेयरिंग करें। उन्हें जिम्मेदारियां भी दें, ताकि वे मानसिक तौर पर शारीरिक बदलावों को स्वीकार कर सकें।

    6. बच्चे में प्यूबर्टी  के लक्षण 8 या 9 की उम्र में ही दिखने लगें तो एक बार डॉक्टर की सलाह अवश्य लें। हो सकता है डॉक्टर उसे हॉर्मोनल  ट्रीटमेंट दें। क्योंकि कई बार जनन अंगों में ट्यूमर  बनने से भी अर्ली प्यूबर्टी हो सकती है। अगर बेटी सिर या पेट में दर्द महसूस कर रही हो, प्यूबर्टी के लक्षणों के साथ उसका वजन भी घट रहा हो तो तुरंत डॉक्टर से जांच कराएं।

    इंदिरा राठौर