माइक्रोन्यूट्रिएंटस क्यों है जरूरी
कुपोषण की बात करते ही संतुलित आहार का सवाल उठता है। इसका अर्थ है कि हर व्यक्ति को भोजन के सभी पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में मिल सकें। कुपोषण का एक बड़ा कारण है माइक्रोन्यूट्रिएंट्स का न मिल पाना। आइए, इस बार जानें, कौन से तीन माइक्रोन्यूट्रिएंट्स हैं सबसे जरूरी।
कुपोषण को मिटाने के लिए जितनी भी कोशिशें की जा रही हैं, नाकाफी दिख रही हैं। यही वजह है कि लक्ष्य से अभी तक हम बहुत दूर हैं। देश में कम से कम नौ राज्यों के 112 जिलों में कुपोषण की सर्वाधिक मार है। खुद प्रधानमंत्री ने कहा है कि समाज और अर्थव्यवस्था की भलाई के लिए अगली पीढी का स्वस्थ होना जरूरी है। लेकिन भयावह सच यह है कि भारत में अभी भी छह करोड दस लाख बच्चे भूख व कुपोषण से ग्रस्त हैं। यह संख्या वयस्क पुरुषों-स्त्रियों से अलग है। कुपोषण की बात करते ही पोषक तत्वों से भरपूर एक थाली ज्ोहन में आती है, जो अधिसंख्य लोगों की पहुंच से दूर होती जा रही है। अन्य पोषक तत्वों के साथ ही तीन माइक्रोन्यूट्रिएंट्स भी स्वस्थ विकास के लिए बहुत जरूरी हैं।
माइक्रोन्यूट्रिएंट्स
माइक्रोन्यूट्रिएंट्स जिनमें विटमिन और मिनरल्स शामिल हैं, स्वस्थ विकास के लिए सबसे जरूरी हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाजेशन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक विकासशील देशों (भारत में भी) में तीन में से एक व्यक्ति विटमिन और मिनरल्स की कमी से ग्रस्त है। तीन जरूरी माइक्रोन्यूट्रिएंट्स हैं, जिनका न होना कुपोषण की सबसे बडी वजह बन सकता है। ये हैं-
विटमिन ए
विटमिन ए की कमी से रतौंधी या नाइट ब्लाइंडनेस जैसी बीमारी घेर सकती है। इसकी कमी से शरीर कमजोर होता है और बीमारियों से लडने की क्षमता क्षीण हो जाती है। बच्चों में विटमिन ए की कमी से उनका विकास अवरुद्ध हो जाता है। साथ ही उन्हें निमोनिया, वायरल संक्रमण और चिकन पॉक्स जैसी समस्याएं घेरने लगती हैं। डब्ल्यूएचओ के आंकडों के मुताबिक हर साल ढाई से पांच लाख बच्चे रतौंधी से ग्रस्त होते हैं। इनमें से लगभग आधे बच्चों की मौत बीमारी होने के एक वर्ष के भीतर ही हो जाती है।
स्त्रोत
हरी पत्तेदार सब्जियों के अलावा शकरकंद, खरबूजा, खुमानी, पपीता, संतरा, आम, ब्रॉकली (हरी फूल गोभी), टमाटर, बींस, हरी मटर, गाजर और लाल मिर्च में विटमिन ए पर्याप्त मात्रा में मिलता है।
लाभ
विटमिन ए शरीर की रोग-प्रतिरोधात्मक क्षमता को बढाता है। बैक्टीरियल-वायरल इन्फेक्शंस से बचाता है। यह इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है। सफेद रक्त कणिकाओं के निर्माण में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है, जो शरीर को संक्रमण से लडने में मदद करती हैं। शोध यह भी बताते हैं कि कई कैंसर रोगों में भी इससे मदद मिलती है।
क्विक रेसिपी
शाकाहारी लोगों को गहरी हरी पत्तियों या ऑरेंज-पीले फलों की पांच सर्विग्स रोज लेनी चाहिए। मिंट के साथ गाजर-खीरे का सैलेड एक बेहतरीन क्विक रेसिपी है।
अधिकता से हानि
विटमिन ए की अधिकता हानिकारक भी हो सकती है। इससे पीलिया, जी मिचलाने, भूख में कमी, वमन (वोमिटिंग) और बाल झडने जैसी समस्याएं घेर सकती हैं।
आयोडीन
बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए आयोडीन अनिवार्य है। गर्भावस्था के दौरान इसकी कमी से समय-पूर्व प्रसव, गर्भपात और बच्चे में विकृति आ सकती है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक दुनिया की लगभग 13 फीसदी आबादी आयोडीन की कमी से ग्रस्त है। इसकी कमी से थकान, थायरॉयड ग्लैंड में सूजन, हाई कोलेस्ट्रॉल, अवसाद, हाइपोथायरॉयड, वजन बढने और मानसिक विकृति जैसी तमाम समस्याएं होती हैं। प्रतिदिन 100-150 माइक्रोग्राम आयोडीन एक सामान्य व्यक्ति के लिए पर्याप्त होता है। इसके बावजूद भारत में कई ऐसे राज्य हैं जहां आयोडीन डिफिशिएंसी ज्यादा है।
स्त्रोत
आयोडीन-युक्त नमक इसका सबसे आसान विकल्प है। इसके अलावा अंडे की जर्दी, फिश, सी-फूड, चीज, मेयोनीज, कंडेंस्ड मिल्क में भी भरपूर आयोडीन मिलता है।
लाभ
आयोडीन की पर्याप्त मात्रा शरीर में थायरॉयड के कार्य को सुचारु करती है। इससे हार्र्मोस संतुलित रहते हैं। मेटाबॉलिक सिस्टम सही ढंग से काम करता है। ऊर्जा में इजाफा होता है। रिप्रोडक्टिव हेल्थ के लिए भी यह लाभदायक है। यह शरीर के डिटॉक्सीफिकेशन के लिए भी जरूरी है। आधुनिक समय में पर्यावरण में मौजूद मर्करी, लेड व फ्लोराइड जैसे टॉक्सिक रसायनों से भी लडने में आयोडीन मददगार है। बालों और नाखूनों के स्वास्थ्य के लिए भी यह जरूरी है।
अधिकता से हानि
आयोडीन शरीर के लिए बहुत जरूरी है, लेकिन इसकी अधिकता नुकसान भी पहुंचा सकती है। 1000 माइक्रोग्राम से अधिक आयोडीन के सेवन से मुंह और गले में जलन, नॉजिया, वोमिटिंग, पेट दर्द जैसी तकलीफ हो सकती है। कई बार तो यह विष जैसा घातक प्रभाव भी डाल सकता है।
(स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. वारिजा से बातचीत पर आधारित)
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