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    उदयपुर राजघराने में घमासान: 1984 का वो फैसला... राजतिलक के बाद भी नए महाराणा विश्वराज सिंह को क्यों नहीं मिली सिटी पैलेस में एंट्री?

    Updated: Tue, 26 Nov 2024 10:33 PM (IST)

    सोमवार को उदयपुर पैलेस में राजघरानों द्वारा महलों और मंदिरों के प्रबंधन को लेकर लंबे समय से चले आ रहे विवाद इतना बढ़ गया कि दोनों पक्षों में पथराव होने लगे। जिसमें तीन लोग घायल हो गए। शाही परिवार के बीच इस टकराव से शहर में माहौल काफी अशांत हो गया है। जिला प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए हैं। उदयपुर पैलेस पर भारी संख्या में पुलिसबल तैनात है।

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    दयपुर के पूर्व राजघराने का विवाद (Photo Jagran)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सोमवार को राजस्थान के उदयपुर के पूर्व राजघराने का विवाद अब सड़क पर आ गया है। महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद उनेक बड़े बेटे विश्वराज सिंह मेवाड़ का राजतिलक हुआ। राजतिलक की रस्म के बाद वह धूणी माता के दर्शन के लिए सिटी पैलेस जा रहे थे। इस दौरान उनके चाचा अरविंद सिंह मेवाड़ के परिवार ने उन्हें सिटी पैलेस में जाने से रोक दिया और दरवाजों को बंद कर दिया। इसके वहां विवाद हो गया और तीन लोग घायल हो गए। आइए जानते हैं क्या है उदयपुर राजघराने का पूरा विवाद...

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    सोमवार को शाही परिवार में क्यों हुआ विवाद?

    महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद सोमवार 25 नवंबर 2024 को विश्वराज सिंह को मेवाड़ के पूर्व राज परिवार का मुखिया नियुक्त किया गया था। राजतिलक के बाद गद्दी पर बैठने के लिए पगड़ी दस्तूर की रस्म निभाई गई। पगड़ी रस्म के बाद उदयपुर सिटी पैलेस में धूणी स्थल के दर्शन के लिए जाना था, लेकिन उनके चाचा अरविंद सिंह मेवाड़ और चचेरे भाई डॉ. लक्ष्य राज सिंह द्वारा संचालित महल ट्रस्ट ने प्रवेश देने से मना कर दिया। जिसके बाद उदयपुर पैलेस में पथराव का ये पूरा बवाल शुरू हुआ।

    शाही परिवार के झगड़े में क्या क्या हुआ?

    बता दें कि अरविंद सिंह का परिवार महाराणा प्रताप का वंशज है और उन्होंने राजतिलक के बाद भी नए महाराणा विश्वराज सिंह को परंपरा निभाने से मना किया। उदयपुर पैलेस ट्रस्ट ने सोमवार सुबह दो नोटिस जारी किए गए। एक नोटिस में कहा गया कि उसके महलों और ट्रस्टों में अनधिकृत प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाएगी। सार्वजनिक नोटिस में यह भी बताया गया कि परिवार के सदस्यों द्वारा शाही संपत्तियों का प्रबंधन कैसे किया जाता था।

    विश्वराज सिंह मेवाड़ को क्यों नहीं मिली एंट्री?

    महल ट्रस्ट के नोटिस में बताया गया है कि विश्वराज सिंह न तो ट्रस्टी हैं और न ही उनके पास ट्रस्ट में कोई कानूनी अधिकार है। संपत्तियों में अनधिकृत प्रवेश से इनकार करने वाला नोटिस सोमवार सुबह अखबारों में प्रकाशित हुआ और जब विश्वराज सिंह महल के द्वार पर पहुंचे, तो उन्हें वापस भेज दिया गया।

    • विश्वराज सिंह मेवाड़ को एंट्री नहीं मिलने से उनके समर्थक नाराज हो गए, जिन्होंने प्रशासन द्वारा लगाए गए बैरिकेड्स को तोड़ने की कोशिश की। तस्वीरों में दोनों तरफ से पथराव होने लगा और फिर पुलिस भीड़ ने भीड़ को नियंत्रित किया।
    • दूसरे नोटिस में कहा गया कि विश्वराज सिंह अपने निजी हितों को पूरा करने के लिए रैली के साथ महल में 'आपराधिक अतिक्रमण' करने की कोशिश कर रहे थे। उनकी दुर्भावनापूर्ण मंशा, शांति को बाधित करना है।

    • लेकिन नए महाराणा विश्वराज सिंह ने कहा कि संपत्ति विवादों को शाही परंपराओं से दूर रखा जाना चाहिए और मैं सिर्फ देवी के दर्शन करना चाहता था।
    • राज्य सरकार ने एक रिसीवर नियुक्त करने का आदेश पारित किया है, इसके बाद धूनी माता मंदिर परिसर को उन्होंने अपने कब्जे में ले लिया है। विश्वराज सिंह को अब उम्मीद है कि प्रशासन इस आदेश के जरिए उनके लिए मंदिर के द्वार खुलवा देगा।

    कैसे शुरू हुई राजपरिवार की लड़ाई?

    श्री एकलिंगजी ट्रस्ट का गठन 1955 में मेवाड़ परिवार के महलों, मंदिरों और किलों के प्रबंधन के लिए किया गया था। 75वें महाराणा और विश्वराज सिंह के दादा भगवत सिंह के दो बेटे थे बड़े बेटे का नाम महेंद्र सिंह और छोटे बेटे का नाम अरविंद सिंह था। अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने ट्रस्ट का नियंत्रण अपने छोटे बेटे अरविंद सिंह को दे दिया था और विश्वराज सिंह के पिता महेंद्र सिंह को इससे बाहर रखा था।

    इस फैसले से बदल गई पूरी कहानी

    जब भागवत सिंह जीवित थे, महेंद्र सिंह ने अपने पिता के खिलाफ अदालत में मामले भी दायर कर दिया था। इसके कारण भागवत सिंह ने 15 मई 1984 को अपनी अंतिम वसीयत में अपने सबसे बड़े बेटे को परिवार से 'प्रतिबंधि (बहिष्कृत) कर दिया और अपने छोटे बेटे को इसका निष्पादक नियुक्त किया। उसी वर्ष नवंबर में अपने पिता की मृत्यु के बाद अरविंद सिंह ट्रस्ट के अध्यक्ष बने।

    इस वर्ष सबसे बड़े बेटे महेंद्र सिंह की मृत्यु के बाद उनके बेटे विशराज सिंह (राजसमंद से भाजपा विधायक) का ऐतिहासिक चित्तौड़गढ़ किले में पारंपरिक राज्याभिषेक समारोह में मेवाड़ के 77वें महाराणा के रूप में अभिषेक किया गया। परंपरा के अनुसार, खून से उनका राजतिलक किया गया।

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