Trending Video : मंत्रियों का गुस्सा, अधिकारियों पर खीज, रंग-रंगीले राजस्थान में तल्खियों के रंग
गहलोत सरकार के चार साल पूरे हो रहे हैं। मंत्रियों को अब जनता के बीच जाना है। जाहिर सी बात है काम पूरे न होने की खीज किसी न किसी पर तो निकलेगी। राजस्थान में अधिकारियों पर नाराजगी की किस्से बढ़ते ही चले जा रहे हैं।
अमित शर्मा, जयपुर।
रंग रंगीले राजस्थान में ये बीते चार साल कई अजीबो गरीब रंग भी देखने को मिले। कांग्रेसी खेमे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट पहले दिन से ही सुर ताल नहीं मिला पाए। मसला अभी तक छींटाकशी के रंगों से सना है। वहीं सरकार और प्रशासन का तालमेल भी चोखा रंख नहीं दिखा पाया। सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों में आए दिन टसल देखने को मिलती रही। बीकानेर में ग्रामीण विकास मंत्री रमेश मीणा और कलेक्टर भगवती प्रसाद कलाल का वीडियो सोमवार से ही वायरल होता रहा। यह अकेला ऐसा मामला नहीं है। एक लम्बी फेहरिस्त है जहां अधिकारियों और मंत्रियों के बीच तालमेल न बैठने के उदाहरण पब्लिक डोमेन में आते रहे।
चांदना का 'जलालत ट्वीट'
छह महीने पहले खेल मंत्री अशोक चांदना ने ट्विटर पर पद छोड़ने तक की धमकी दे दी थी। आईएएस और मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव कुलदीप रांका पर सीधे निशाना साधते हुए चांदना ने ट्वीट किया था कि उन्हें जलालत भरे मंत्री पद से मुक्त किया जाए। उनके सभी विभागों का चार्ज कुलदीप रांका को दे दिया जाए। पीड़ा ट्वीट में साफ झलक रही थी। चांदना ने अंत में ये भी लिखा था कि वैसे भी वो ही (कुलदीप रांका) सभी विभागों के मंत्री हैं। इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सीधे दखल देना पड़ा था और चांदना को व्यक्तिगत बुलाकर समझाइश की गई थी।
खाचरियावास को गुस्सा क्यों आया
हाल ही में ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर और तेज तर्रार नेता प्रताप सिंह खाचरियावास अधिकारियों की एसीआर भरे जाने के फॉर्मेट पर काफी खफा रहे। उन्होंने सीधे चैलेंज किया था कि अधिकारियों की एसीआर मुख्यमंत्री की बजाए विभाग के मंत्रियों को भरनी चाहिए। कई अन्य राज्यों के उदाहरण भी खाचरियावास ने दिए थे। इस मसले पर उन्हीं के कैबिनेट के दूसरे मंत्री महेश जोशी से उनकी टकराहट भी हो गई थी।
जब मंत्री ने कहा 'गेट आउट'
नवम्बर के ही महीने में अधिकारियों से तनाव का मामला दौसा में भी देखने को मिला था। जब राजस्थान सरकार के मंत्री परसादी लाल मीणा ने जिला परिषद सीईओ शिवचरण मीणा को गेट आउट तक कह दिया था। परसादी लाल मीणा विधायक निधि कोष से स्वीकृत हुए काम नहीं होने पर नाराज थे और इसका गुस्सा उन्होंने ब्यूरोक्रेसी पर निकाला था। ये वीडियो भी इंटरनेट पर काफी वायरल हुआ था।
जब मंत्री ने रोक दी थी जनसुनवाई
पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह भी ब्यूरोक्रेसी से खफा ही चल रहे हैं। अगस्त के महीने में एक जनसुनवाई के दौरान वे अधिकारियों पर आदेश न मानने के कारण भड़क उठे थे। जनसुनवाई भी बंद कर दी।
बसपा से जीतकर विधायक बने और पहले गहलोत सरकार के तारणहार और मौजूदा समय में बहुत बड़ा संकट बने राजेन्द्र गुढ़ा भी राजस्थान के अधिकारियों पर आए दिन कुछ न कुछ बयान देते रहते हैं। खेल मंत्री अशोक चांदना के अधिकारियों-कर्मचारियों को को फोन पर धमकाने, मीटिंग में हड़काने और थप्पड़ तक मार देने के मामले पहले भी आ चुके हैं।
सरकार के चार साल, जनता के बीच जाना है
राजस्थान में इस दिसम्बर में गहलोत सरकार चार साल पूरे कर लेगी। आने वाला एक साल चुनावी साल रहेगा। मंत्रियों को अब जनता के बीच जाना है। अपने काम का रिपोर्ट कार्ड देना है। ऐसे में सबसे पहली खीज ब्यूरोक्रेसी पर निकलना स्वाभाविक है। पर सवाल कई हैं, विभाग में अधिकारी तो क्या कर्मचारी तक मंत्रियों की डिजायर पर लगाए जाते हैं, फिर गुस्सा क्यों? अगर काम के प्रति इतनी ही जवाबदेही है तो सरकार के चौथे साल क्यों? अगर मंत्री का गुस्सा बेजा है, अधिकारी ने काम में कोई कसर नहीं छोड़ी, तो फिर चुप क्यों? पहले तो एक जमाना था कि ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अफसर के सामने जाने से नेता कतराते थे, अब ऐसा क्यों नहीं? ये सवाल हमारे नहीं, राजस्थान की जनता के हैं जो गाहे बगाहे इस तरह के वीडियो और खबरें आने पर चर्चाओं में सुनने को मिलते हैं।
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