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राजस्थान में निर्दलीय ने लिखी छात्र राजनीति में नई इबारत

Ravindra Singh Bhati. राजस्थान में रवींद्र सिंह भाटी विश्वविद्यालय इतिहास में पहले निर्दलीय रूप में जीते हुए अध्यक्ष बने।

By Sachin MishraEdited By: Published: Fri, 30 Aug 2019 12:43 PM (IST)Updated: Fri, 30 Aug 2019 12:43 PM (IST)
राजस्थान में निर्दलीय ने लिखी छात्र राजनीति में नई इबारत

जोधपुर, रंजन दवे जोधपुर के जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय में हुए छात्रसंघ चुनावों के परिणाम में पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी ने चुनाव जीतकर दोनों छात्र संगठनों के दावों की पोल खोल दी है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह नगर के साथ-साथ केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की राजनीतिक जन्मभूमि की पहली पाठशाला रहे व्यास विश्वविद्यालय के चुनाव के परिणाम में इस बार नए रंग देखने को मिले हैं। इसके अलावा नया इतिहास भी रचा गया है। रवींद्र सिंह भाटी विश्वविद्यालय इतिहास में पहले निर्दलीय रूप में जीते हुए अध्यक्ष बने।

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जोधपुर का जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय पश्चिमी क्षेत्र का बड़ा विश्वविद्यालय है। संभाग के अन्य जिलों के विद्यार्थी भी उच्च शिक्षा के साथ-साथ राजनीति में अपनी पैठ जमाने के लिए भी यहां दाखिला लेते हैं। विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष के रूप में चंद्रराज सिंघवी का जिक्र किया जाता है। वह राजस्थान में मंत्री रहे हैं और प्रदेश की राजनीति के चाणक्य के रूप में देखे जाते हैं।

इसके अलावा वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, हरीश चौधरी, डॉ जालम सिंह रावलोत, बाबू सिंह राठौड़ सहित कई अन्य ऐसे नाम हैं, जिन्होंने विभिन्न छात्र संगठनों के साथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत इसी विश्वविद्यालय से की और आगे चलकर प्रदेश और देश की राजनीति में मुकाम हासिल किया। लेकिन वर्ष 2019 के छात्र संघ चुनावों ने नई इबारत लिखी गई है। जातिगत राजनीति को धता बताकर और पार्टी संगठनों के दावों को दरकिनार कर इस विश्वविद्यालय के छात्रों ने निर्दलीय रवींद्र सिंह भाटी पर विश्वास जताया और उन्हें 1294 मतों से विजयी बनाया है।

रवींद्र सिंह की विजय से एनएसयूआइ अपनी जीत की तिकड़ी बनाने से चूक गई तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने अपनी हार की हैट्रिक पूरी की है। हालांकि यह अलग बात है कि एबीवीपी से टिकट नहीं मिलने पर रवींद्र सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ा, जिसका खामियाजा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को उठाना पड़ा है। गत चुनाव की अपेक्षा इस बार हार-जीत का अंतर भी अधिक है। वहीं दो राजपूत उम्मीदवारों के अध्यक्ष की लड़ाई लड़ने पर जातिगत वोटों का भी ध्रुवीकरण हुआ है। सिर्फ अपने समाज के जातिगत वोटों के आधार पर ही नहीं, बल्कि दलित और अन्य वर्ग के विद्यार्थियों ने भी निर्दलीय पर विश्वास जताया।

विगत दो बार से लगातार अध्यक्ष पद पर कब्जा जमाए बैठी एनएसयूआइ के हाथ इस बार उच्च पद आए हैं, लेकिन अध्यक्ष अध्यक्ष पद पर हार का सामना करना पड़ा। ऐसा ही हाल एबीवीपी का रहा। उसने महज संयुक्त सचिव पद पर जीत हासिल की है।

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