Move to Jagran APP

Rajasthan गाड़ोलिया लोहार परिवार पिछले पांच सौ सालों से निभाते आ रहे हैं महाराणा प्रताप को दिए वचन को

राजस्थान के गाड़ोलिया लोहार जिनकी कहानी बेहद अजीब है। अतीत से जुड़े वचन को वह पिछले पांच सौ साल से निभाते आ रहे हैं और यायावर जिंदगी जी रहे हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 26 Sep 2019 12:19 PM (IST)Updated: Thu, 26 Sep 2019 12:26 PM (IST)
Rajasthan गाड़ोलिया लोहार परिवार पिछले पांच सौ सालों से निभाते आ रहे हैं महाराणा प्रताप को दिए वचन को
Rajasthan गाड़ोलिया लोहार परिवार पिछले पांच सौ सालों से निभाते आ रहे हैं महाराणा प्रताप को दिए वचन को

उदयपुर, सुभाष शर्मा। राजस्थान के गाड़ोलिया लोहार जिनकी कहानी बेहद अजीब है। अतीत से जुड़े वचन को वह पिछले पांच सौ साल से निभाते आ रहे हैं और यायावर जिंदगी जी रहे हैं। ज्यादातर बच्चे आज भी शिक्षा से महरूम हैं। वे अपनी कहानी इन पंक्तियों में बताते हैं जो सटीक साबित होती हैं- हम लोहा तोड़ते हैं, आकाश ओढ़ते हैं। संकल्पों में बंधे अतीत को जोड़ते हैं। हम जिंदा इतिहास हैं, फिर भी क्यों मायूसियों के पलों को जीवन से जोड़ते हैं।

loksabha election banner

बहुतया मेवाड़-मारवाड़ में पाए जाने वाले गाड़ोलिया लोहार आजकल समूचे राज्य में देखे जा सकते हैं। कभी मेवाड़ के यौद्धा महाराणा प्रताप के सैनिक रहे गाड़ोलिया लोहारों ने तब यह कसम खाई थी कि जब तक मेवाड़ आजाद नहीं हो जाता, तब तक वह पक्के मकानों में नहीं रहेंगे और यायावर जिंदगी बिताएंगे। इन पांच सौ सालों में सब-कुछ बदल गया।

मेवाड़ ही नहीं, भारत भी आजाद हो गया लेकिन आज भी ये लोग खाना बदोशी जिंदगी जीते आ गए हैं। आजकल इनकी गाड़ियों के चक्के थम से गए हैं लेकिन जिंदगी की रफ्तार अभी भी बाकी है। आज भी यह लोहे से बने सामान बेचते आ रहे हैं। पहले जहां तलवार एवं अन्य हथियार बनाते थे अब इनकी जगह खेती, निर्माण कार्य तथा रसोई में हाथ से काम आने वाले सामान बनाते हैं। अभी भी लकड़ी से बनी गाड़ियों में ही जिंदगी बसर करते हैं।

हालांकि अब सौ फीसदी गाड़ियां लोहार लकड़ी से बनी गाड़ियों में नहीं रहते लेकिन आज भी बीस फीसदी से अधिक परिवारों के लिएसर्दी, गर्मी और बारिश इनके लिए उनकी गाड़ी ही सहारा साबित होती है।

यायावर जिंदगी के चलते उनके ज्यादातर बच्चे आज भी शिक्षा से दूर हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें नहीं मिल पाता। हालांकि उनमें से कुछ लोग शिक्षित भी हैं लेकिन अभी तक सरकारी सेवा तक नहीं पहुंच पाए। बुजुर्ग किशना बताते हैं कि अपनी आन-बान के लिए वह आज तक इसी तरह की जिंदगी जीते आ रहे हैं। मुगलों का आधिपत्य बढ़ा तो उन्हेंं युद्ध अपराधी मान लिया और अंग्रेजों ने भी उनके साथ गैरों सा बर्ताव किया। इसके बाद वह दशकों से थाने, छावनी या अन्य सुरक्षित जगहों पर डेरा डालकर रहने लगे। किन्तु अब उनके डेरे अतिक्रमण हटाओ अभियान की भेंट चढ़ जाते हैं। फिर से नई जगह की तलाश शुरू हो जाती है और काम की चिंता बढ़ जाती है।

आज भी वह लोहा पीटने का काम करते हैं। गाड़ोलिया लोहारों को राज्य सरकार की ओर से उन्हें स्थायी रूप से बसाने के लिए नि:शुल्क एवं रियायती दर पर ग्रामीण क्षेत्र में 150 वर्ग गज भूमि तथा शहरी क्षेत्र में पचास वर्ग गज भूमि आवंटन की योजना लागू हैं। उन्हें आवास निर्माण के लिए 35 हजार रुपए अनुदान मिलता है लेकिन वे अशिक्षा एवं आवश्यक दस्तावेजों की कमी के चलते इस योजना का लाभ नहीं उठा पा रहे। इनके पुनर्वास की जिम्मेदारी सरकारी न्याय एवं अधिकारिता विभाग की है लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि विभाग के पास प्रदेश में कितने गाड़ोलिया लोहार हैं कि जानकारी नहीं। बताया जाता है कि इनका नए सिरे से सर्वे कराया जाना प्रस्तावित है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.