लोगों को स्वास्थ्य का अधिकार देने वाला देश का पहला राज्य बना राजस्थान, डॉक्टरों का प्रदर्शन दूसरे दिन भी जारी
राजस्थान विधानसभा में मंगलवार को स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक पारित हो गया है। प्रदेशवासियों को स्वास्थ्य का अधिकार देने वाला राजस्थान देश का पहला राज्य हो गया है। विधानसभा में विधेयक पर चर्चा के दौरान भाजपा विधायकों ने सदन से बहिगर्मन किया। File Photo
जागरण संवाददाता, जयपुर। राजस्थान विधानसभा में मंगलवार को स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक पारित हो गया है। प्रदेशवासियों को स्वास्थ्य का अधिकार देने वाला राजस्थान देश का पहला राज्य हो गया है। विधानसभा में विधेयक पर चर्चा के दौरान भाजपा विधायकों ने सदन से बहिगर्मन किया।
प्रतिपक्ष के उप नेता राजेंद्र राठौड़ ने विधेयक का विरोध कर रहे निजी अस्पताल के मालिकों और चिकित्सकों पर सोमवार को लाठीचार्ज व मंगलवार को वाटर कैनन चलाने की न्यायिक जांच की मांग करते हुए जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही की मांग की।
लाठीचार्ज में घायल हुए डॉक्टर्स
राठौड़ ने कहा कि पुलिस के बल प्रयोग के कारण डेढ़ दर्जन चिकित्सक घायल हुए हैं। उधर विधेयक का विरोध कर रहे निजी अस्पताल मालिक और चिकित्सकों के बीच मंगलवार को लगातार दूसरे दिन झड़प हुई। चिकित्सक विधानसभा की तरफ कूच कर रहे थे। इस दौरान पुलिसकर्मियों ने उन्हे रोकने का प्रयास किया। चिकित्सक नहीं रूके तो पुलिसकसमि्रयों ने वाटर कैनन चलाकर उन्हे खदेड़ा।
सोमवार को भी पुलिसकर्मियों ने चिकित्सकों पर लाठीचार्ज किया था। चिकित्सकों ने सोमवार पूरी रात जयपुर के स्टेच्यू सर्किल पर धरना दिया। उधर सरकारी अस्पतालों के चिकित्सक भी आंदोलनकारियों के समर्थन में आ गए । उन्होंने मंगलवार को दो घंटे काम का बहिष्कार किया। जिससे चिकित्सा व्यवस्था चरमरा गई। अस्पतालों में पहुंचे मरीजों का इलाज नहीं हो सका।
चिकित्सकों का आरोप है कि सरकार उनकी शर्तों और सुझावों को विधेयक में शामिल नहीं कर रही है। विधेयक पारित होने के बाद चिकित्सकों ने आत्मदाह करने की चेतावनी दी है।
सीएम गहलोत की अपील
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चिकित्सकों से आंदोलन वापस लेने की अपील की। उन्होंने कहा, 'मैं सभी चिकित्सकों से व्यक्तिगत तौर पर भी अपील कर रहा हूं कि सरकार की सोच सकारात्मक है। चिकित्सक काम पर लौट आएं।' उधर, चिकित्सा मंत्री परसादी लाल मीणा ने विधानसभा में कहा कि स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक जनता के हित में है। सरकार का 60 प्रतिशत बजट चिकित्सा पर खर्च किया जा रहा है। 90 प्रतिशत परिवार सरकार की चिंरजीवी योजना से जुड़े हैं।
उन्होंने कहा कि बड़े अस्पताल इलाज के नाम पर लोगों से बेईमानी करते हैं। उन्होंने कहा कि मूल विधेयक में आपातकालीन इकाई को लेकर विरोध था। चिकित्सकों की आपत्ति पर इसमें बदलाव किया गया। सरकार ने तय किया है कि निजी अस्पतालों के आपातकालीन इकाई में मरीज का इलाज होने पर पुनर्भरण सरकार करेगी। इसके लिए कोष बनेगा।
विधेयक में यह प्रावधान हैं
प्रदेश में प्रत्येक व्यक्ति को इलाज की गारंटी मिलेगी। सरकारी और निजी अस्पताल अब किसी भी मरीज के इलाज के लिए मना नहीं कर सकेंगे। आपातकालीन स्थिति में निजी अस्पतालों नि:शुलक उपचार करना होगा। निजी अस्पतालों में आपातकालीन इकाई में इलाज के लिए अलग से कोष बनेगा। अस्पतालों में निगरानी के लिए प्रदेश एवं जिला स्तर पर प्राधिकरण बनेगा।
प्राधिकरण में अस्पतालों एवं चिकित्सकों के खिलाफ सुनवाई होगी। दोषी पाए जाने पर 10 से 25 हजार तक का जुर्माना हो सकेगा। प्राधिकरण के किसी फैसले को सिविल न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकेगी। विधेयक में जैव आतंकवाद, वायरस, जहरीले तत्वों से होने वाले नुकसान को इसमें शामिल किया गया है। साथ ही महामारी के दौरान स्वास्थ का अधिकार लोगों को इलाज का सुरक्षा कवच देगा। प्रत्येक व्यक्ति को बीमारी की पहचान, जांच, इलाज और संभावित जटिलताओं के साथ ही खर्चों के बारे में जानकारी मिल सकेगी।
चिकित्सकों की मांग
आपातकालीन इकाई की व्यवस्था से प्रसव को हटाया जाए। प्रदेश एवं जिला स्तर पर बनने वाले प्राधिकरण में निजी अस्पताल मालिकों व चिकित्सकों के प्रतिनिधि शामिल हों। शिकायतों के लिए एकल खिड़की हो। मरीज को दूसरे अस्पताल में भेजने पर एंबुलेंस का खर्च सरकार या मरीज के स्वजन वहन करें।