Rajasthan Assembly By Election 2019: भाजपा के लिए अच्छे संकेत नहीं दिए उपचुनाव परिणाम ने
Rajasthan Assembly By Election 2019 राजस्थान भाजपा ने यह चुनाव राज्य सरकार के दस माह के कामकाज और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर लड़ा था।
जयपुर, मनीष गोधा। Rajasthan By Election Result 2019 राजस्थान में दो सीटों मंडावा और खींवसर के चुनाव परिणाम ने प्रतिपक्ष में बैठी भाजपा के लिए अच्छे संकेत नहीं दिए हैं। पार्टी ने अपने दम पर मंडावा का चुनाव लड़ा और वहां करारी हार हुई, वहीं खींवसर का चुनाव राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के साथ मिल कर लड़ा था, ऐसे में वहां की जीत का लगभग पूरा श्रेय पार्टी के अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल के खाते में चला गया। पार्टी ने यह चुनाव राज्य सरकार के दस माह के कामकाज और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर लड़ा था, लेकिन परिणाम बता रहा है कि पार्टी के यह दोनों ही मुद्दे असर नहीं डाल पाए। ऐसे में नवंबर में होने वाले निकाय चुनाव पार्टी के लिए भारी साबित होते दिख रहे हैं। इसके साथ ही इस परिणाम से पार्टी में खेमेबाजी और बढ़ने की आशंका भी जताई जा रही है।
राजस्थान में उपचुनाव के परिणाम से विधानसभा में भाजपा को एक सीट का नुकसान तो हुआ ही है। इस परिणाम ने भाजपा के लिए बहुत अच्छे संकेत भी नहीं दिए हैं। मंडावा में पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज कर सुशीला देवी को टिकट दिया था, जो पहले कांग्रेस में थी और उन्हें भाजपा में शामिल किया गया और सीधे टिकट दे दिया गया। पार्टी को यहां करारी हार का सामना करना पड़ा है। पार्टी ने चुनाव से कुछ समय पहले ही सतीश पूनिया के रूप में एक जाट नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था और हनुमान बेनीवाल जैसे बड़े जाट चेहरे के साथ गठबंधन किया था। माना जा रहा था कि जाट मतदाता बाहुल्य वाली इस सीट पर इससे पार्टी को फायदा मिलेगा, लेकिन यह अनुमान गलत साबित हुआ।
वहीं, खींवसर में भाजपा से गठबंधन कर चुनाव लड़ी रालोपा के प्रत्याशी नारायण बेनीवाल ने जीत तो हासिल कर ली, लेकिन कांग्रेस ने यहां रालोपा प्रत्याशी को कड़ी टक्कर दी। भाजपा ने यहां अपने नेताओं के साथ प्रचार तो किया था, लेकिन इस जीत के लिए पूरी मेहनत और इसका पूरा श्रेय हनुमान बेनीवाल के खाते में ही जा रहा है। बेनीवाल यहां से लगातार तीन बार चुनाव जीत चुके हैं और नारायण बेनीवाल उनके सगे भाई हैं। ऐसे में यह चुनाव भी एक तरह हनुमान बेनीवाल ही लड़ रहे थे। जीत का अंतर भी यहां ज्यादा नहीं रह पाया और इसके लिए बेनीवाल ने इशारों में यहां के भाजपा नेताओं को पहले ही जिम्मेदार ठहरा चुके थे। यानी कुल मिला कर भाजपा एक जगह हारी और दूसरी जगह जीत का श्रेय गठबंधन के नेता को चला गया।
नहीं चले राष्ट्रीय मुद्दे
इस उपचुनाव में पार्टी ने अनुच्छेद 370, ट्रिपल तलाक और देश की सुरक्षा जैसे राष्ट्रीय मुद्दों को जनता के सामने रखा था। पार्टी को उम्मीद थी कि कश्मीर पर हुए फैसले के बाद जो माहौल बना है, उसका फायदा पार्टी को मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। मंडावा में तो ये मुददे पूरी तरह फेल साबित हुए। खींवसर मे भी मुददों से ज्यादा बेनीवाल का चेहरा हावी था। इसके अलावा पार्टी ने राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति, किसानों और बेरोजागरी की नाराजगी को भी मुद्दा बनाया, लेकिन ये मुददे भी असर न हीं दिखा पाए।
संगठन पर दिखेगा असर
इस उपचुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे कहीं भी सक्रिय नजर नहीं आई। खींवसर में तो उन्हें जाना ही नहीं था, क्योंकि गठबंधन के बावजूद चुनाव के दौरान भी हनुमान बेनीवाल लगातार राजे के खिलाफ बयानबाजी कर रहे थे, लेकिन मंडावा भी वे नहीं गई। पार्टी यह चुनाव जीत जाती तो राजे को राजस्थान भाजपा की राजनीति से पूरी तरह बाहर मान लिया जाता, लेकिन मण्डावा की हार के बाद संगठन में राजे और उनके समर्थकों को नजरअंदाज करना पार्टी के लिए मुश्किल होगा। इसका असर संगठन चुनाव और आगे प्रदेशअध्यक्ष सतीश पूनिया के कार्यकाल में नजर आता रहेगा। माना जा रहा है कि यह परिणाम खेमेबाजी को और बढ़ा सकता है। गौरतलब है कि अध्यक्ष बनने के बाद अभी तक पूनिया और राजे की एक भी सार्वजनिक मुलाकात नहीं हो पाई है।
निकाय चुनाव हो सकते है भारी
नवंबर में होने वाले 49 नगरीय निकायों के चुनावों में भी पार्टी राष्ट्रीय मसलों और राज्य सरकार के कामकाज को मुद्दा बनाने की तैयारी कर रही थी, लेकिन उपचुनाव के परिणाम ने स्थितियां कुछ बदल दी है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि इस परिणाम के बाद अब रणनीति में कुछ बदलाव करना पड़ सकता है और मेहनत भी पहले से ज्यादा करनी पड़ेगी।
सतीश पूनिया बोले, सरकार गलतफहमी न पाले
परिणम के बाद मीडिया से बातचीत में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा कि यह जनादेश पूरी तरह स्थानीय मुद्दों के आधार पर है। सरकार को गलतफहमी जरूर हो जाएगी कि यह परिणाम सरकार के पक्ष में हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। मुद्दे आज भी बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि खींवसर में रालोपा के पास पहले ही बढ़त थी, इसलिए हमने गठबंधन किया। कांग्रेस की प्रतिष्ठा की सीट खींवसर ही थी, जहां वह हार गई। मंडावा कभी भी हमारा क्षेत्र नहीं रहा। इस सीट पर सांसद के पुत्र को टिकट देने की बात थी, लेकिन पूरे देश के लिए नीति बनाई गई थी कि रिश्तेदारो को टिकट नहीं देना है। आलाकमान का दुस्साहसिक फैसला था और यह कहा गया कि आप परिणाम की चिंता के बिना चुनाव की तैयारी कीजिए। हमने प्रयास किया, मेहनत की, लेकिन अब आगे और मेहनत करेंगे।
यह भी पढ़ेंः राजस्थान उपचुनाव में खींवसर से RLP के बेनीवाल व मंडावा से कांग्रेस की रीटा की जीत