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    Rajasthan : क्या है मानगढ़ धाम का इतिहास, जहां आ रहे हैं देश के प्रधानमंत्री मोदी

    By Jagran NewsEdited By: PRITI JHA
    Updated: Mon, 31 Oct 2022 01:26 PM (IST)

    राजस्थान का जलियांवाला है मानगढ़ धाम जहां आजादी के आंदोलन में हजारों वनवासी हो गए थे बलिदान मानगढ़ धाम पर हजारों वनवासियों को 1913 में अंग्रेजी सरकार ने गोलियों ने भून दिया था जलियांवाला बाग हत्याकांड से भी बड़ा बलिदान जिसमें पंद्रह हजार से अधिक वनवासी हो गए थे शहीद

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    बांसवाड़ा जिले में गुजरात तथा राजस्थान की सीमा पर बना मानगढ़ धाम में बना शहीद स्मारक। जागरण

    उदयपुर, सुभाष शर्मा। पंजाब में अमृतसर स्थित जलियांवाला बाग के हत्याकांड से ज्यादातर लोग परिचित है, जहां लगभग चार सौ लोग शहीद हो गए। किन्तु इससे लगभग छह साल पहले तत्कालीन अंग्रेजी सरकार ने उदयपुर संभाग के बांसवाड़ा स्थित मानगढ़ धाम पर जलियांवाला बाग से भी बड़े हत्याकांड को अंजाम दिया। जहां मेले में मौजूद हजारों वनवासियों पर अंग्रेजी सरकार ने जमकर गोलियां बरसाई और पंद्रह सौ से अधिक वनवासी शहीद हो गए। जानिए मानगढ़ धाम और इसके इतिहास के बारे में, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को पहुंचेंगे।

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    तीन राज्यों की सीमा पर है मानगढ़ धाम

    बांसवाड़ा जिले में मध्यप्रदेश और गुजरात सीमा से सटा मानगढ़ धाम अमर बलिदान का साक्षी है, जहां 17 नवंबर 1913 को वार्षिक मेले का आयोजन होने जा रहा था। वनवासियों के नेता गोविन्द गुरु के आह्वान पर उस कालखंड में पड़े अकाल से प्रभावित हजारों वनवासी खेती पर लिए जा रहे कर को घटाने, धार्मिक परम्पराओं का पालना की छूट के साथ बेगार के नाम पर परेशान किए जाने के खिलाफ एकजुट हुए थे। तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने उनकी सुनवाई करने के बजाय मानगढ़ धाम को चारों ओर से घेर लिया और मशीनगन और तोपें तैनात कर दी।

    अंग्रेजी सरकार ने गोविन्द गुरु तथा वनवासियों को पहाड़ी छोड़ने के आदेश दिए लेकिन वे अपनी मांग पर अड़े रहे। जिस पर अंग्रेजी शासन की ओर से कर्नल शटन ने वनवासियों पर गोलीबारी के आदेश दिए और एकाएक हुई फायरिंग में हजारों वनवासी मारे गए। अलग-अलग पुस्तकों में शहीद वनवासियों की संख्या पंद्रह सौ से दो हजार तक बताई जाती है।

    गोविन्द गुरु आजीवन लोक सेवा में लगे रहे

    अंग्रेजी शासन ने वनवासियों के नेता गोविन्द गुरु को हिरासत में ले लिया और अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई। हालांकि बाद में अदालत ने उनकी फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था। सजा काटने के बाद गोविन्द गुरु 1923 में जेल से रिहा हुए और भील सेवा सदन के माध्यम से आजीवन लोक सेवा में लगे रहे। 30 अक्टूबर 1931 में उनके निधन के बाद मानगढ़ धाम में उनका अंतिम संस्कार किया गया और वहां समाधि बनाई गई। उनकी समाधि पर हर साल मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर लाखों वनवासी आदिवासी भील समाज उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करने उमड़ता है।

    दो दशक पहले गहलोत सरकार ने विकसित किया था मानगढ़ धाम

    लगभग दो दशक पहले तत्कालीन अशोक गहलोत सरकार ने मानगढ़ धाम का विकास किया था। जहां साल 2002 में राजस्थान सरकार ने तीन करोड़ रुपए की लागत से शहीद स्मारक का निर्माण गुजरात तथा राजस्थान की सीमा पर कराया गया। जिसका लोकार्पण तब मुख्यमंत्री रहे अशोक गहलोत ने ही किया था।

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