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    Raksha Bandhan: राजस्थान में राजसमंद का पिपलांत्री गांव, जहां बहनें पेड़ों को बांधती है राखियां

    By Priti JhaEdited By:
    Updated: Sun, 22 Aug 2021 10:06 AM (IST)

    राजसमंद जिले की पहचान बनी निर्मल ग्राम पंचायत में अब गांव की बेटियां ही नहीं शहरों से भी पेड़ों को राखी बांधने बहनें पहुंचती हैं। रक्षाबंधन पर्व पर इस अनूठे आयोजन को देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचने लगे हैं।

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    राजसमंद जिले का पिपलांत्री गांव जहां महिलाएं पेड़ों को रक्षासूत्र बांधती हैं।

    सुभाष शर्मा, उदयपुर। बहनों के लिए रक्षाबंधन का पर्व बेहद महत्वपूर्ण है। इस दिन सभी बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं। किन्तु उदयपुर संभाग के राजसमंद जिले का पिपलांत्री गांव की कहानी ही बेहद अजूबी है। पर्यावरण की रक्षा के लिए यहां की महिलाएं पिछले डेढ़ दशक से पेड़ों को राखी बांधती हैं। यही नहीं यहां जिस परिवार में बेटी पैदा होती है, वह परिवार 111 पौधे लगाता है।

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    राजसमंद जिले की पहचान बनी निर्मल ग्राम पंचायत में अब गांव की बेटियां ही नहीं, शहरों से भी पेड़ों को राखी बांधने बहनें पहुंचती हैं। रक्षाबंधन पर्व पर इस अनूठे आयोजन को देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचने लगे हैं।

    बेटी के जन्म पर लगाते हैं 111 पेड़

    पिपलांत्री गांव में रक्षाबंधन पर पेड़ों को राखी बांधने के साथ एक और खास बात जुड़ी है। लगभग ढाई हजार की आबादी वाले इस गांव में बेटी के जन्म पर परिवार के लोग 111 पौधे लगाते हैं। यह परम्परा डेढ़ दशक से चली आ रही है। पर्यावरण रक्षा की अनोखी मिसाल की शुरूआत यहां के तत्कालीन सरपंच श्यामसुंदर पालीवाल ने की थी। बेटी की मौत से टूटे पालीवाल ने उसकी याद में इसकी शुरूआत की और इससे अब पूरा गांव ही नहीं, बल्कि आसपास के गांव भी जुड़ चुके हैं। पालीवाल बताते हैं कि पिपलांत्री बेहद खूबसूरत था लेकिन मार्बल खनन क्षेत्र में बसे होने के चलते यहां की पहाड़ियां खोद दी गई। भूजल पाताल में चला गया और प्रकृति के नाम पर कुछ भी नहीं बचा।

    पथरीला गांव अब हरियाली में बदला

    डेढ़ दशक पहले पिपलांत्री गांव पथरीला था। संगमरमर की खदानों के चलते यहां पेड़ पौधों की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा था। जब से बेटियों की याद में यहां पौधे लगाने की शुरूआत हुई, तब से यहां की किस्मत ही बदल गई। अब यह क्षेत्र हरियाली से पूरी तरह आच्छादित हो चुका है। रक्षाबंधन पर पेड़ों की राखी बांधने की ही नहीं, बल्कि उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी यहां की महिलाएं रखती हैं। यहां लगाए गए पौधे अब तीस फीट ऊंचाई के हो चुके हैं। आज पिपलांत्री गांव कश्मीर की वादियों से कमतर नहीं।

    विदेश में पढ़ाई जाती है इस गांव की कहानी

    पिपलांत्री गांव की कहानी विदेशों में पढ़ाई जाती है। डेनमार्क सरकार के लिए यह गांव किसी अजूबे से कम नहीं है। इस गांव की कहानी डेनमार्क के स्कूलों में बच्चों को पढ़ाई जाती है। डेनमार्क से मास मीडिया यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स यहां स्टडी करने आते हैं।