राजस्थान के पाक विस्थापित परिवारों को मिला अपना राजस्व गांव 'छाछरो', दशकों बाद मिली खोई पहचान
पाक विस्थापित परिवार के लोग जब पाकिस्तान छोड़कर भारत आए थे तब उनके घर तथा धन दौलत उन पुराने गांव में बॉर्डर के उस पार ही रह गए थे। अब जब सरकार ने बाड़मेर में नए राजस्व गांव के रूप में छाछरो को स्वीकार किया है तब से उन लोगो की खुशी परवान पर है। राजस्थान में व्यक्ति की पहचान उसके गांव के नाम के साथ की जाती रही है।

डॉ. रंजन दवे, जोधपुर। राजस्थान सरकार ने महीने महीने पहले पंचायती राज के पुनर्गठन के साथ - साथ नए राजस्व गांव बनाने की मुहिम के तहत सरहद के समीप बाड़मेर के बावड़ी कला के राजस्व गांव में छाछरों राजस्व गांव बनाने के आदेश ने यहां निवास कर रहे पाक विस्थापित परिवारों की खुशी का ठिकाना नहीं है।
पाक हिंदू परिवार बंटवारे के समय अपने मूल गांव छाछरो (वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित) जो की सरहद से महज 40 किलोमीटर दूर है, को छोड़कर यहा भारत आकर बस गए थे।
अब उनके पुरखो के गांव के नाम की पहचान यहां भारत में मिलने से 1965 तथा 1971 में आए पाक विस्थापित परिवारों और गांव वासियों में खुशी का माहौल है। दरसअल, राजस्थान और विशेष कर पश्चिमी राजस्थान में व्यक्ति की पहचान उसके गांव के नाम के साथ की जाती रही है।
सभी गाँव अब पाकिस्तान की सरहद में
आज भी पाक विस्थापित हिन्दू अपना परिचय करवाते हैं तो भी वे अपने मूल गांव से अपनी पहचान दिलवाते हैं। पाकिस्तान से विस्थापित अधिकतर लोग छाछरो , खीसर , अरबडियार , गहरा , डाहली , मिठी से आए थे , ये सभी गाँव अब पाकिस्तान की सरहद में है। इन गांवों में हिंदू परिवार अधिक रहते थे। इनमें राजपूत , मेघवाल , माहेश्वरी , सुथार , नाई , कुंभार , लोहार जाति बहुतायत में रहती थी।
ये पाक विस्थापित परिवार के लोग जब पाकिस्तान छोड़कर भारत आए थे तब उनके घर तथा धन दौलत उन पुराने गांव में बॉर्डर के उस पार ही रह गए थे। अब जब सरकार ने बाड़मेर में नए राजस्व गांव के रूप में छाछरो को स्वीकार किया है, तब से उन लोगो की खुशी परवान पर है।
गांव के लोगों ने दिया था भारतीय सेना का सहयोग
1971 के युद्ध में जब भारतीय सेना पाकिस्तान के छाछरो गांव में पहुंची थी तब वहां की तत्कालीन कैबिनेट सरकार में रेल मंत्री लक्ष्मण सिंह सोढ़ा तथा उनके भाई पदम सिंह ने भारतीय सेना का सहयोग दिया तथा भारतीय सेना ने पाकिस्तान स्थित छाछरो स्थित अपनी हवेली पर भारतीय तिरंगा फहराया था।
1975 युद्ध के पश्चात यह सारे परिवार अपना मूल गांव छाछरो को छोड़कर 40किमी दूर स्थित सीमा के इस पर बावड़ी कला में अपना आशियाना जमा लिया। लगातार जन सरोकार और राजनीति से जुड़े परिवारों ने आखिरकार अपने मूल गांव के नाम को लेकर प्रयास जारी रखें इसके बाद अब उन्हें भारत में भी छाछरो गांव मिला है।
लोगों ने एक दूसरे के गले मिलकर मुबारकबाद दी
छाछरो नया गांव बनकर न केवल पाक विस्थापित परिवार को खुशी हुई बल्कि एक दूसरे के गले मिलकर मुबारक के साथ- साथ बधाइयां दी तथा अपने पुराने अस्तित्व को चिरस्थाई बनाए रखने के लिए एक दूसरे हमेशा सहयोग देने की बातें कही।
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