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    'नो गारंटी-नो वारंटी' के तर्क को जिला उपभोक्ता अदालत ने किया खारिज, खराब फर्नीचर बेचने पर दुकानदार को देना होगा हर्जाना

    By Priti JhaEdited By:
    Updated: Thu, 01 Apr 2021 01:35 PM (IST)

    फर्नीचर विक्रेता की ओर से आयोग के समक्ष ज़बाब प्रस्तुत कर बताया कि उसने बैड बेचते समय दुकान में रखे सभी आइटम्स की क्वालिटी के बारे में बता दिया था। माल पर नो गारंटी-नो वारंटी होने से अब वह जिम्मेदार नहीं है।

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    खराब फर्नीचर बेचने पर दुकानदार को देना होगा हर्जाना

    जोधपुर, जागरण संवाददाता। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वितीय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में ग्राहक को खराब फर्नीचर विक्रय करने के मामले में दुकानदार पर पन्द्रह हजार रुपए हर्जाना लगाया है। मामले के अनुसार जोधपुर निवासी विजय प्रसाद कक्कड़ ने आयोग के समक्ष परिवाद प्रस्तुत कर जोधपुर के सरदारपुरा, शनिश्चर जी का थान स्थित एक फर्नीचर शौरूम से जुलाई, 2017 में डबल बैड खरीद किया था, जिसे मजबूत शीशम की लकडी का होना बताया था किन्तु कुछ दिनों बाद ही इसका कलर खराब होने लगा व इससे यह साफ दिखाई देने लगा कि घटिया प्लाई व खराब लकड़ियों से दरारों में मसाला व कलर कर पुराना माल नये के रूप में उसे बेच दिया गया है।

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    फर्नीचर विक्रेता की ओर से आयोग के समक्ष ज़बाब प्रस्तुत कर बताया कि उसने बैड बेचते समय दुकान में रखे सभी आइटम्स की क्वालिटी के बारे में बता दिया था । ग्राहक ने सभी आइटम्स को अच्छी तरह देख कर इस बैड को पसंद किया था। माल पर 'नो गारंटी-नो वारंटी' होने से अब वह जिम्मेदार नहीं है।

    आयोग के अध्यक्ष डॉ श्याम सुन्दर लाटा व सदस्य डॉ अनुराधा व्यास, आनंद सिंह सोलंकी की न्यायपीठ ने सुनवाई के बाद अपने निर्णय में कहा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को विधायिका ने उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा व विक्रेताओं की मनमानियों पर अंकुश लगाने के लिए ही लागू किया है। 'नो गारंटी-नो वारंटी' की शर्त अब अवैध होने से मान्य नहीं है। परिवादी ग्राहक ने विपक्षी विक्रेता से तयशुदा कीमत देकर यह माल खरीदा है, जिसकी क्वालिटी के लिए विक्रेता पूर्ण रूप से जिम्मेदार है तथा वह गारंटी नहीं होने की शर्त के आधार पर खराब उत्पाद विक्रय करने के अपने दायित्व से मुक्त नहीं हो सकता है।

    आयोग ने अपने निर्णय में फर्नीचर विक्रेता को खराब माल विक्रय करने व अनुचित व्यापार-व्यवहार का दोषी मानते हुए परिवादी ग्राहक को मानसिक व शारिरिक वेदना की क्षतिपूर्ति के रूप में पन्द्रह हजार रुपए व परिवाद व्यय पांच हजार रुपए अदा करने का विक्रेता को आदेश दिया है।