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गिरवी रखे ये आदिवासी बच्चे अपाहिज होकर लौटते अपने घर, माता-पिता को सालों से बच्चों का इंतजार

इन बच्चों को दलाल के माध्यम से गिरवी रखे गए ये बच्चे जब वापस घर लौटे तो या तो अपाहिज थे या फिर उनका शरीर इतना खराब हो चुका था कि वे काम करने की स्थिति में नहीं रहे।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 13 Feb 2020 12:40 PM (IST)Updated: Thu, 13 Feb 2020 01:06 PM (IST)
गिरवी रखे ये आदिवासी बच्चे अपाहिज होकर लौटते अपने घर, माता-पिता को सालों से बच्चों का इंतजार
गिरवी रखे ये आदिवासी बच्चे अपाहिज होकर लौटते अपने घर, माता-पिता को सालों से बच्चों का इंतजार

डूंगरपुर,उदयपुर, नरेन्द्र शर्मा। डूंगरपुर के टेंगरवाड़ा गांव का रामजी, गुड्डी हो या चाहे चुंडई गांव के सोमा, राम्या और नरसी हो अथवा उदयपुर के उमरिया, सामोली एवं कुकावास गांवों के मोहना, बख्शी, रणजी हो इन सभी बच्चों को दलाल के मार्फत इनके माता-पिता ने गुजरात की फैक्टियों में मजदूरी करने और गड़रियों के पास भेड़ चराने के लिए रखा था।

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गिरवी रखने के बदले बच्चों को दोनों समय का भोजन और परिवार के मुखिया को 2,500 से 3000 मासिक दिए गए थे। तीन साल पहने इन बच्चों को दलाल भोमिया के माध्यम से गिरवी रखे गए ये बच्चे जब पिछले कुछ माह में वापस घर लौटे तो या तो अपाहिज थे या फिर उनका शरीर इतना खराब हो चुका था कि वे काम करने की स्थिति में नहीं रहे। कुछ बच्चों की मौत के समाचार ही उनके परिजनों को मिले। ये हालात गुजरात से सटे राजस्थान के आदिवासी क्षेत्र डूंगरपुर, बांसवाड़ा और उदयपुर जिलों के हैं।

इन जिलों के कई गांवों से सैंकड़ों बच्चे गुजरात और महाराष्ट्र में मजदूरी के लिए गए। लेकिन जब वापस लौटे तो किसी का हाथ नहीं था तो किसी का पांव कटा हुआ था। दलाल के माध्यम से फैक्ट्रियों अथवा खेतों में मजूदरी के लिए गए बच्चों को स्कूल जाने की उम्र में कुदाली, फावड़ा, गैंती और अन्य उपकरण थमा दिए गए।

पूरा खेल दलालों का, दिनभर दौड़ती है जीपें

दैनिक जागरण प्रतिनिधि ने डूंगरपुर और उदयपुर जिलों के ग्रामीण इलाकों में भयावह हालात देखे। यहां कई कच्चे घरों के बाहर आंगन में बैठे माता-पिता अपने बच्चों का इंतजार कर रहे हैं। इन्होंने अपने बच्चों को सालों पहले दलाल के माध्यम से गिरवी रखा था। लेकिन अब ना तो दलाल का पता है और ना ही बच्चे वापस घर लौटे हैं। कई बच्चे ऐसे नजर आए जो मजदूरी करने गए थे, लेकिन वे अपंग होकर लौटे।

मामेर गांव के सुंदर, सायरा गांव के लाडू, गणपत और कसेड़ा के सुंदर की उम्र 16 से 17 साल है। ये मजदूरी करने गए थे, लेकिन किसी का मशीन से हाथ कट गया तो किसी का पैर खराब हो गया। कोटड़ा की रतनी महाराष्ट्र में फैक्ट्री में काम करने गई थी, वहां उसका हाथ कट गया और तीन माह में ही वापस लौट आई। अब वह कोई काम करने लायक नहीं रही। इसी तरह के हालात आदिवासी अंचल के कई गांवों के है। यहां मानव तस्करी का पूरा खेल दलालों का है।

गुजरात और महाराष्ट्र के व्यापारी हो या फिर किसान हो जिसको भी बच्चों जरूरत होती है, वे दलालों से संपर्क करते हैं। दलाल गरीब आदिवासियों के बच्चों को गिरवी रख देते हैं। बच्चों को बाहर ले जाने का सिलसिला सुबह पांच बजे से शुरू हो जाता है, इसके बाद दिनभर चलता है। बच्चों को जीपों के माध्यम से सीमा पार कराई जाती है।

बच्चों का लौटना इसलिए मुश्किल

गड़रियों के पास गिरवी रखे गए बच्चों का वापस घर लौटना काफी मुश्किल होता है। अनपढ़ बच्चों को दलाल गड़रियों के पास छोड़ देता है। गड़रिये जानवर चराते हुए कई एक से दूसरे राज्य में पहुंच जाते हैं। बच्चे वहां से निकल नहीं पाते ना तो उन्हे अपने प्रदेश के नाम का पता होता है और ना ही जिले का नाम ध्यान में रहता है। इस कारण वे वापस नहीं लौट सकते।

पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी बोले,पता चलने पर कार्रवाई करते हैं

डूंगरपुर जिला पुलिस अधीक्षक जय यादव ने बताया कि पुलिस हमेशा सतर्क रहती है। बच्चों की तस्करी की जैसे ही सूचना मिलती है तत्काल कार्रवाई की जाती है। कई बार बच्चों को दलालों से छुड़ाकर वापस परिजनों को सौंपा गया है। उदयपुर में तैनात आईएएस अधिकारी डॉ.मंजू का कहना है कि पिछले दिनों ही ऐसे बच्चों को छुड़वाया गया है। प्रशासन आदिवासियों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास कर रहा है। बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रेरित करने के साथ ही रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने की कोशिश हमेशा रहती है। 

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