Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Right To Health Bill: जानें, राजस्थान विधानसभा में क्यों नहीं पारित हो सका राइट टू हेल्थ बिल, किसने-क्या कहा

    Right To Health Bill राजस्थान विधानसभा में राइट टू हेल्थ बिल लाया गया। हालांकि यह विधेयक विधानसभा में पारित नहीं हो सका। विधायकों ने विधेयक में कई कमी बताई। विपक्ष के साथ सत्तापक्ष के विधायकों ने भी विधेयक को आधा-अधूरा बताया।

    By Sachin Kumar MishraEdited By: Updated: Fri, 23 Sep 2022 09:31 PM (IST)
    Hero Image
    जानें, राजस्थान विधानसभा में क्यों नहीं पारित हो सका राइट टू हेल्थ बिल, किसने-क्या कहा। फाइल फोटो

    जयपुर, जागरण संवाददाता। Rajasthan News: राजस्थान का मुख्यमंत्री पद छोड़ने से पहले अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) का सपना पूरा नहीं हो सका। गहलोत चाहते थे कि देश में पहली बार राजस्थान (Rajasthan) में स्वास्थ्य का अधिकार कानून बने इसके के लिए शुक्रवार को जल्दबाजी में राइट टू हेल्थ बिल (राजस्थान स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक-2022) लाया गया। हालांकि यह विधेयक विधानसभा में पारित नहीं हो सका। विधायकों ने विधेयक में कई कमी बताई। विपक्ष के साथ सत्तापक्ष के विधायकों ने भी विधेयक को आधा-अधूरा बताया। चर्चा के बाद विधेयक प्रवर समिति को सौंप दिया गया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जानें, किसने-क्या कहा

    प्रतिपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया ने कहा कि विधेयक जल्दबाजी में श्रेय लेने के लिए लाया गया था। कांग्रेस की विधायक दिव्या मदेरणा ने चिरंजीवी स्वास्थ्य योजना में निजी अस्पतालों की मनमानी के मुद्दे पर सरकार को जमकर घेरा। दिव्या ने जोधपुर जिला प्रशासन को विफल बताया। दिव्या ने कहा कि हम स्वास्थ्य के अधिकार की बात कर रहे हैं। लेकिन हमारी योजना की निजी अस्पताल धज्जियां उड़ा रहे हैं। मुख्यमंत्री के क्षेत्र जोधपुर में चिरंजीवी योजना मुंह के बल गिरती है।उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा से कहा,आप सुन रहे हैं क्या निजी अस्पतालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

    विधेयक में यह प्रावधान किए गए

    विधेयक में प्रदेश के आठ करोड़ नागरिकों को स्वास्थ्य का अधिकार देने की बात कही गई। मरीजों को निजी अस्पतालों में भी आपातकालीन स्थिति में नि:शुल्क इलाज मिलेगा । प्रत्येक नागरिक का स्वास्थ्य बीमा सरकार अपने स्तर पर करवाएगी। चिकित्सकों द्वारा किए जा रहे इलाज की जानकारी अब मरीजों और उनके स्वजनों को मिल सकेगी। किसी भी तरह की महामारी के दौरान होने वाले रोगों के इलाज को इसमें शामिल किया गया है। इलाज के दौरान मरीज की अस्पताल में मौत होने पर भुगतान नहीं होने पर शव रोका नहीं जा सकेगा। बीमारी की प्रकृति और उसकी जांच,इलाज परिणाम और उसके खर्चों की जानकारी मरीज के स्वजनों को देनी होगी।मरीज का नाम उसको दिए जा रहे इलाज और उसके रोग की जानकारी किसी अन्य व्यक्ति को नहीं दी जा सकेगी। चिकित्सा पर राज्य सरकार हर साल 14 करोड़ 55 लाख रुपये खर्च करेगी। अस्पतालों में जातिगत भेदभाव नहीं हो सकेगा। राज्य व जिला स्वास्थ्य प्राधिकरण गठित किया जाएगा।

    निजी अस्पताल विरोध में उतरे

    निजी अस्पतालों ने विधेयक का विरोध किया है। जयपुर मेडिकल एसोसिएशन का कहना है कि स्वास्थ्य प्राधिकरण में मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य एवं अस्पताल के अधीक्षक को शामिल नहीं किया गया है। चिकित्सकों व उनके संगठनों से विधेयक के बारे में सुझाव नहीं लिए गए । स्वास्थ्य के अधिकार कानून में चिकित्सकों के निर्बाध चिकित्सा देने को परिभाषित नहीं किया गया है। आपातकालीन परिस्थिति में निजी अस्पतालों में निशुल्क इलाज का प्रावधान किया गया है,लेकिन इसका भुगतान कौन करेगा इसका उल्लेखनहीं किया गया है। विधेयक से अनावश्यक सरकारी हस्तक्षेप बढ़ेगा।

    अस्पतालों की हालत खराब

    सरकार स्वास्थ्य का अधिकार तो नागरिकों को देना चाहती है, लेकिन प्रदेश के सरकारी अस्पतालों की हालत खराब है। भरतपुर के जिला अस्पाल में एक बेड पर चार बच्चों का इलाज हो रहा है। बेड की कमी के कारण कारण जमीन पर बच्चों को लिटाकर इलाज किया जा रहा है। जयपुर स्थित प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एसएमएस में जांच की सुविधा पर्याप्त नहीं है।प्रदेश में चिकित्सा का 14 हजार करोड़ से ज्यादा का बजट है, लेकिन प्रतिवर्ष 3300 महिलाएं लेबर रूम में जिंदा बाहर नहीं आती है। सीटी स्कैन और एमआरआइ करवाने के लिए मरीजों को दो-दो महीने तक इंतजार करना पड़ रहा है।

    कोटा के जेके लोन अस्पताल मे साल 2020 में 100 बच्चों की मौत हुई थी

    ईएनटी विभाग की अधिकांश मशीनें खराब पड़ी है।राजधानी के ही जयपुरिया और कांवटिया अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी के साथ ही आवश्यक संसाधनों का अभाव है। अव्यवस्थाओं के चलते कोटा के जेके लोन अस्पताल मे साल 2020 में 100 बच्चों की मौत हुई थी। इससे पहले 2018 में इसी अस्पताल में 77 बच्चों की मौत हुई थी। मई महीनें में कोटा के एमबीएस अस्पताल में महिला की आंख को चुहा कुतर गया था।

    राजस्थान सरकार नई खनन नीति बनाएगी

    राजस्थान सरकार नई खनन नीति बनाएगी। नई खनन नीति में आदिवासियों के उत्थान से जुड़े प्रावधान किए जाएंगे। खान मंत्री प्रमोद जैन ने शुक्रवार को विधानसभा में प्रश्नकाल में बताया कि 2019 से 2023 के बीच अधिसूचित क्षेत्र में 121 खनन पट्टे जारी किए गए जिसमें से 27 पट्टे आदिवासियों को आंवटित किए गए है। प्रदेश में आदिवासियों के लिए अधिसूचित क्षेत्र में अप्रधान खनिज नियमों के माध्यम से नीलामी पट्टों में स्थानीय लोगों को आरक्षण दिया जाता है। इन्ही नियमों के तहत आदिवासियों को पंजीकृत सोसायटी में भी प्राथमिकता से खनन पट्टे आवंटित करने के निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने बताया कि प्रधान खनिज नियम के तहत खुली नीलामी के माध्यम से खनन आवंटन दिया जाता है। यह प्रावधान है कि आदिवासी खनन पट्टे का एक साल तक स्थानान्तरण नहीं कर सकते। विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने हस्तक्षेप करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिए कि पेशा एक्ट का अनुसरण करते हुए राज्य में आदिवासियों को अधिसूचित क्षेत्र में खनन पट्टे जारी करने चाहिए, जिससे उन्हें ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके।

    महिलाओं-बालिकाओं को निशुल्क सेनेटरी नेपकिन के लिए योजना

    राजस्थान की महिला व बाल विकास मंत्री ममता भूपेश ने शुक्रवार को विधानसभा में बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं व बालिकाओं को दिए जा रहे निःशुल्क सेनेटरी नेपकिन के आकार में कोई बदलाव नहीं किया गया है। इस योजना के तहत सेनेटरी नेपकिन इस्तेमाल करने वाली बालिकाओं और महिलाओं से साइज के संबंध में जो सुझाव आएंगे, उन पर विशेषज्ञों और चिकित्सकों के साथ चर्चा के बाद निर्णय लिया जाएगा। प्रश्नकाल में भाजपा विधायक राजेंद्र राठौड़ के सवाल के जवाब में भूपेश ने कहा कि नि:शुल्क सेनेटरी नेपकिन के लिए सरकार ने उड़ान योजना संचालित की है। यह प्रदेश में चरणबद्ध रूप में लागू की जा रही है। राजस्थान देश में पहला राज्य है जहां इतने बड़े पैमाने पर यह योजना चलाई जा रही है।

    यह भी पढ़ेंः जयपुर की महापौर सौम्या गुर्जर को सुप्रीम कोर्ट से झटका, पद से हटा सकती है सरकार