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Rajasthan News: जयपुर की महापौर सौम्या गुर्जर को सुप्रीम कोर्ट से झटका, पद से हटा सकती है सरकार

Rajasthan जयपुर नगर निगम की महापौर सौम्या गुर्जर को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सर्वोच्च न्यायालय सरकार की ओर से पेश की गई जांच रिपोर्ट को सही मानते हुए राज्य सरकार को कार्रवाई के लिए स्वतंत्र कर दिया है।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Fri, 23 Sep 2022 08:16 PM (IST)Updated: Fri, 23 Sep 2022 08:16 PM (IST)
Rajasthan News: जयपुर की महापौर सौम्या गुर्जर को सुप्रीम कोर्ट से झटका, पद से हटा सकती है सरकार
जयपुर की महापौर सौम्या गुर्जर को पद से हटा सकती है राजस्थान सरकार। फाइल फोटो

जयपुर, जागरण संवाददाता। Rajasthan News: राजस्थान की राजधानी जयपुर नगर निगम (ग्रेटर) की महापौर सौम्या गुर्जर (Soumya Gurjar) को सुप्रीम कोर्ट से शुक्रवार को बड़ा झटका लगा है। सर्वोच्च न्यायालय सरकार की ओर से पेश की गई जांच रिपोर्ट को सही मानते हुए राज्य सरकार को कार्रवाई के लिए स्वतंत्र कर दिया है। हालांकि न्यायालय ने कार्रवाई दो दिन बाद यानी 25 सितंबर के बाद करने के निर्देश दिए हैं।

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जस्टिस संजय किशन कौल का आदेश

सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद संभावना है कि सरकार सौम्या गुर्जर को किसी भी समय बर्खास्त कर सकती है। जस्टिस्स अजय ओक और जस्टिस संजय किशन कौल ने ये आदेश सुनाए। राज्य सरकार की तरफ से अतिरिक्त महाधिवक्ता मनीष सिंघवी ने बताया कि न्यायालय ने सुनवाई के बाद निर्देश दिए हैं कि सरकार न्यायिक जांच की रिपोर्ट के बाद नियमानुसार कार्रवाई करें। हालांकि दो दिन तक कार्रवाई नहीं करने की बात भी कही है। महापौर की तरफ से पैरवी वकील रुचि कोहली ने की।

तीन पार्षदों को बर्खास्त कर चुकी है सरकार

सौम्या गुर्जर के साथ ही तीन पार्षदों के के खिलाफ जून, 2021 में शुरू की गई न्यायिक जांच की रिपोर्ट पिछले महीने की दस तारीख को सरकार को पेश की गई थी। रिपोर्ट में महापौर और तीन पार्षदों को दोषी पाया गया था। इस रिपोर्ट को सरकार ने न्यायालय में पेश किया था। सरकार ने मामले की जल्द सुनवाई का आग्रह किया था। सरकार इससे तीन पार्षदों पारस जैन, अजय सिंह और शंकर शर्मा को पहले ही बर्खास्त कर चुकी है। अब न्यायालय का फैसला आने के बाद महापौर को भी बर्खास्त किया जा सकता है।

जानें, क्या है मामला

चार जून, 2021 को नगर निगम मुख्यालय में महापौर के कक्ष में एक बैठक चल रही थी, जिसमें तत्कालीन मुख्य कार्यकारी अधिकारी यज्ञमित्र सिंह देव और पार्षद मौजूद थे। किसी फाइल पर हस्ताक्षर किए जाने को के मामले में पार्षदों और अधिकारियों के बीच विवाद हो गया था। महापौर और पार्षदों ने मुख्य कार्यकारी अधिकारी के बीच काफी बहस हुई। इस दौरान मुख्य कार्यकारी अधिकारी और पार्षदों के बीच धक्का-मुक्की हो गई। मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने महापौर ओर पार्षदों के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाई थी।

निलंबन के फैसले को महापौर ने दी थी चुनौती

पांच जून को सरकार ने मामले में हस्तक्षेप करते हुए महापौर और पार्षदों के खिलाफ मिली शिकायत की जांच स्वायत्त शासन निदेशालय की क्षेत्रिय निदेशक को सौंप दी। रिपोर्ट में चारों को दोषी माना गया था। इस पर पार्षदों को निलंबित कर दिया गया था। सरकार ने इन सभी के खिलाफ न्यायिक जांच शुरू करवा दी। सरकार ने शील धाबाई को कार्यवाहक महापौर बना दिया गया। निलंबन के फैसले के बाद महापौर ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, लेकिन 28 जून को उच्च न्यायालय ने महापौर को निलंबित किए जाने के आदेश पर स्टे देने से मना कर दिया था। जुलाई में महापौर ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर न्यायिक जांच रुकवाने की मांग की थी।

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